थाईलैंड के पूर्व PM को जेल, फोटो ( सो. सोशल मीडिया )
Thailand Former PM Thaksin Shinawatra: थाईलैंड की सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को देश के प्रधानमंत्री और अरबपति थाकसिन शिनावात्रा को एक साल की कैद की सजा सुनाई। अदालत ने पिछले साल उनके लंबे समय तक अस्पताल में भर्ती रहने को अवैध ठहराया और आदेश दिया कि अब उन्हें अपनी सजा बैंकॉक रिमांड जेल में काटनी होगी।
सीएनएन की रिपोर्ट के अनुसार, 76 वर्षीय थाकसिन 2001 से 2006 तक थाईलैंड के प्रधानमंत्री रहे। हालांकि, सैन्य तख्तापलट के जरिए उन्हें पद से हटा दिया गया। लगभग 15 साल विदेश में रहने के बाद वे 2023 में नाटकीय ढंग से स्वदेश लौटे। प्रधानमंत्री रहते समय उन पर हितों के टकराव, सत्ता का दुरुपयोग और भ्रष्टाचार के आरोप लगे, जिसके चलते अदालत ने उन्हें आठ साल की सजा सुनाई थी।
थाईलैंड के राजा महा वजीरालोंगकोर्न ने थाकसिन की सजा कम कर एक साल कर दी। इसके बाद फरवरी 2024 में उन्हें महज छह महीने में पैरोल पर रिहा कर दिया गया। खास बात यह रही कि सजा मिलने के बावजूद थाकसिन ने जेल की कोठरी में एक भी रात नहीं गुजारी। सीने में दर्द, ब्लड प्रेशर और ऑक्सीजन की कमी जैसी बीमारियों का हवाला देते हुए उन्होंने जेल जाने के बजाय सीधे बैंकॉक के पुलिस जनरल अस्पताल के लग्जरी सुइट में ही सजा पूरी की।
उच्चतम न्यायालय ने मंगलवार को निर्णय दिया कि थाकसिन का अस्पताल में बिताया गया समय उनकी सजा में शामिल नहीं किया जाएगा। गौरतलब है कि इसी साल जून में थाईलैंड की मेडिकल काउंसिल ने उन दो डॉक्टरों को निलंबित कर दिया था, जिन्होंने थाकसिन को अस्पताल में सजा काटने में मदद की थी। फैसले के दौरान थाकसिन अदालत में मौजूद थे। इससे पहले, गुरुवार को वह अपने निजी विमान से स्वास्थ्य जांच के लिए दुबई गए थे, जिसके बाद यह अटकलें लगाई जा रही थीं कि वह देश छोड़कर फरार हो गए हैं।
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थाकसिन के अदालत में पेश होने और फैसले से ठीक एक दिन पहले उनके देश लौटने के बाद, स्थानीय मीडिया में अटकलें उठीं कि वे सजा से बचने के लिए भागने की कोशिश कर सकते हैं। रिपोर्टों के अनुसार, पूर्व प्रधानमंत्री ने संभावित फैसले की भनक लगते ही एक निजी विमान से थाईलैंड छोड़ दिया था। हालांकि, अदालत की सुनवाई से पहले ही वे वापस आ गए।
न्यायालय के आदेश के तहत अब उन्हें एक साल की सजा जेल में काटनी होगी। खास बात यह है कि स्वास्थ्य संबंधी कारणों से उनकी सजा कम किए जाने की कोई गुंजाइश नहीं है। यह फैसला देश में शीर्ष नेताओं और गणमान्य व्यक्तियों के लिए न्यायिक दृष्टिकोण में एक अहम बदलाव माना जा रहा है।