संदर्भ चित्र (डिजाइन)
Nepal Violence: भारत का पड़ोसी देश नेपाल सुलग उठा है। संसद जल चुकी है। प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली इस्तीफा दे चुके हैं। कहा तो यह भी जा रहा है कि वह देश छोड़कर दुबई निकल गए हैं। इस प्रदर्शन में 20 से ज्यादा लोग मारे जा चुके हैं तो सैकड़ों घायल हैं।
इस प्रदर्शन के पीछे की वजह कई सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर लगा प्रतिबंध है। कहा यह भी जा रहा है कि नेपाल में भ्रष्टाचार के खिलाफ लोग सड़कों पर उतर आए हैं। इन सबके बीच बड़ा सवाल यह है कि जब सोशल मीडिया पर प्रतिबंध लगा था, तो इतने सारे लोग कैसे इकट्ठा हुए?
नेपाल में सोशल मीडिया बैन करने की बात सामने आते ही सोशल मीडिया पर एक ट्रेंड चल निकला। जिसे ‘नेपो बेबी’ और ‘नेपो किड’ नाम दिया गया है। हालांकि, यह जानना भी ज़रूरी है कि यह ट्रेंड कहां से शुरू हुआ और सोशल मीडिया से सड़कों पर कैसे आया?
नेपाल में एक अनोखा और मजबूत आंदोलन शुरू हुआ है, जिसने युवाओं को सोशल मीडिया से सड़कों पर ला खड़ा किया है। इसकी शुरुआत ‘नेपो किड’ नाम के एक ऑनलाइन ट्रेंड से हुई, जो अब भ्रष्टाचार के खिलाफ एक बड़े अभियान में बदल गया है। नेपाल में टिकटॉक और रेडिट पर प्रतिबंध नहीं था और यहीं से इस ट्रेंड की शुरुआत हुई।
जहां टिकटॉक और रेडिट जैसे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर युवाओं ने नेपाल के राजनेताओं और प्रभावशाली लोगों के बच्चों को ‘नेपो किड’ या ‘नेपो बेबी’ कहना शुरू कर दिया। ये दोनों शब्द भाई-भतीजावाद से आए हैं। इस अभियान के जरिए युवा इन बच्चों की विलासितापूर्ण जिंदगी पर सवाल उठा रहे हैं और आरोप लगा रहे हैं कि ये सारी सुख-सुविधाएं भ्रष्टाचार से हासिल पैसों से खरीदी गई हैं।
भारत में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी अक्सर विपक्षी राजनैतिक दलों पर भाई-भतीजावाद और परिवारवाद के आरोप लगाते रहे हैं। इतना ही नहीं भारतीय जनता पार्टी भी इस मुद्दे पर विपक्षी दलों को घेरती है। वहीं, विपक्षी दल भी कई मौकों पर सत्ताधारी दल के नेताओं पर वंशवाद का आरोप लगाते हुए देखे जाते हैं।
इस अभियान में सोशल मीडिया यूज़र्स ने राजनेताओं के बच्चों की महंगी कारों, विदेश में पढ़ाई और आलीशान छुट्टियों की तस्वीरें और वीडियो शेयर किए हैं। ये तस्वीरें देखकर लोग भड़क गए हैं, क्योंकि ये उनकी अपनी मुश्किलों से बिल्कुल अलग हैं।
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बताया गया कि आम नेपाली युवा अक्सर नौकरी की तलाश में विदेश जाते हैं और संघर्ष करते हैं, जबकि राजनेताओं के बच्चे बिना किसी मेहनत के ऐशो-आराम की ज़िंदगी जीते हैं। इस तुलना ने लोगों को काफी परेशान किया और इसलिए यह आंदोलन आग की तरह फैल गया।