
ट्रंप का C-5 प्लान, फोटो (सो. सोशल मीडिया)
What is C-5 Forum: अमेरिका एक ऐसे नए ग्लोबल फोरम पर काम कर रहा है, जो पारंपरिक आर्थिक पैरामीटर से आगे बढ़कर जनसंख्या, भू-राजनीतिक प्रभाव और शक्ति संतुलन पर आधारित होगा। इस प्रस्तावित ग्रुप को ‘कोर-5’ या ‘C-5’ नाम दिया गया है। इसका मुख्य उद्देश्य दुनिया के चार बड़े देशों भारत, चीन, रूस और जापान को एक ही टेबल पर लाना है।
हालांकि मौजूदा भू-राजनीतिक तनावों को देखते हुए यह प्रयास बेहद जटिल नजर आता है। भारत-चीन और चीन-जापान के बीच गहरा अविश्वास है, जबकि अमेरिका और रूस के संबंध भी कई बार टकरावपूर्ण रहे हैं।
अमेरिकी मैगजीन पॉलिटिको के 12 दिसंबर के आर्टिकल के मुताबिक, C-5 को G7 और G20 जैसे परंपरागत समूहों की सीमाओं को देखते हुए एक अधिक प्रभावशाली मंच के रूप में पेश किया जा रहा है। पहली मीटिंग में मिडिल ईस्ट की सुरक्षा, खासकर इजरायल-सऊदी अरब संबंधों के सामान्यीकरण से जुड़े मुद्दों पर चर्चा की योजना है। ट्रंप प्रशासन का यह प्लान नॉन-आइडियोलॉजिकल माना जा रहा है, जो विचारधारा के बजाय क्षेत्रीय प्रभाव और ताकतवर नेताओं की भूमिका को प्राथमिकता देगा।
C-5 का कॉन्सेप्ट व्हाइट हाउस की विस्तारित नेशनल सिक्योरिटी स्ट्रैटेजी से निकला है, जिसका बड़ा हिस्सा आधिकारिक रूप से प्रकाशित नहीं हुआ था। डिफेंस वन ने इस दस्तावेज़ का हवाला देते हुए इसकी जानकारी दी। G7 की तरह नियमित समिट्स तो होंगी, लेकिन C-5 विशेष मुद्दों पर केंद्रित रहेगा, जिससे इसे अधिक परिणाम-उन्मुख प्लेटफॉर्म के रूप में पेश किया जा सके।
बाइडेन प्रशासन में यूरोपियन अफेयर्स डायरेक्टर रह चुके टॉरी टॉसिग मानते हैं कि यह प्लान पूरी तरह ‘ट्रंपियन’ एप्रोच को दर्शाता है, जिसमें ताकतवर क्षेत्रीय नेताओं से सहयोग की प्रवृत्ति झलकती है। उनका कहना है कि यूरोप को C-5 में जगह न मिलना यूरोपियन देशों को असहज कर सकता है, क्योंकि इससे रूस को यूरोप का प्रमुख प्रभावी राष्ट्र माना जाएगा।
ट्रंप प्रशासन के पूर्व अधिकारी माइकल सोबोलिक का कहना है कि यह कदम पहले टर्म की उस रणनीति से बिल्कुल अलग होगा, जिसमें चीन को प्रमुख प्रतिस्पर्धी माना जाता था। ऐसे में C-5 बनाना अमेरिकी विदेश नीति में बड़ा बदलाव साबित हो सकता है।
भारत के लिए यह मंच मिडिल ईस्ट और इंडो-पैसिफिक रणनीतियों पर अपनी भूमिका मजबूत करने का अवसर दे सकता है। लेकिन चीन और रूस के साथ एक ही फोरम में शामिल होना रणनीतिक संतुलन की चुनौती भी ला सकता है। दूसरी ओर, यूरोपीय एलाइज इस पहल को ‘स्ट्रॉन्गमेन पॉलिटिक्स’ को वैधता देने वाला मानते हैं, जो NATO और वेस्टर्न यूनिटी को कमजोर कर सकता है।
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हालांकि अभी तक C-5 पर कोई आधिकारिक पुष्टि नहीं हुई है, लेकिन इसके संकेत बताते हैं कि यह ट्रंप की विदेश नीति के सबसे बड़े बदलावों में से एक हो सकता है।






