
कोल्हापुरी चप्पल, (फाइल फोटो)
Prada Launches Kolhapuri Chappal: कोल्हापुरी चप्पलें महाराष्ट्र, कर्नाटक समेत कई राज्यों में मशहूर हैं। फिल्मों में भी कोल्हापुरी चप्पलों का जिक्र कई बार हुआ है। अब इसकी मांग इटली तक बढ़ गई है। भारत में इस चप्पल की कीमत 500 रुपये से 1000 रुपये तक में मिल जाएगी। लेकिन इटली में इसकी कीमत 83,000 रुपये होगी।
दरअसल, इटैलियन लग्जरी फैशन ब्रांड प्राडा ने भारत में देसी कारीगरों के साथ मिलकर एक लिमिटेड-एडिशन सैंडल कलेक्शन लॉन्च करने का फैसला किया है। प्राडा ने कहा कि वह भारत के कारीगरों के साथ मिलकर काम करेगी। कंपनी फरवरी 2026 में कोल्हापुरी चप्पल लॉन्च करेगी।
यह कलेक्शन दुनिया भर के करीब 40 प्राडा स्टोर्स और ऑनलाइन उपलब्ध होगी। रॉयटर्स में छपी खबर के मुताबिक, इटैलियन लग्ज़री ग्रुप ने दो सरकारी संस्थाओं के साथ एक डील के तहत महाराष्ट्र और कर्नाटक के इलाकों में 2,000 जोड़ी सैंडल बनाने का प्लान बनाया है। इसमें महाराष्ट्र की लिडकॉम और कर्नाटक की लिडकार सरकारी संस्थान शामिल है। इस पहल के तहत प्राडा ग्रुप लिडकॉम और लिडकार लोकल ट्रेनिंग प्रोग्राम भी आयोजित करेंगे। इससे कारीगर पारंपरिक तकनीकी के साथ मॉर्डन स्किल भी सीख सकेंगे।
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, 6 महीने पहले प्राडा ने मिलान फैशन शो में ऐसे सैंडल दिखाए थे जो कोल्हापुरी चप्पलों जैसे लगते थे। तस्वीरें इंटरनेट पर फैलते ही भारत में लोगों की नाराजगी बढ़ गई थी। बाद में प्राडा ने माना कि डिजाइन पुरानी भारतीय शैली से प्रेरित थी। अब कंपनी ने महाराष्ट्र के LIDCOM और कर्नाटक के LIDKAR इन दो सरकारी संस्थाओं के साथ समझौता किया है। ये संस्थाएं उन कारीगरों का समर्थन करती हैं, खासकर वंचित समुदायों के, जो हाथ से पारंपरिक चप्पलें बनाते हैं।
कोल्हापुरी चप्पल महाराष्ट्र और कर्नाटक के कारीगर सदियों से बनाते रहे हैं और इसकी कीमत 500 से 1000 रुपये के बीच है। माना जाता है कि बेमिसाल कारीगरी और मजबूती माने जाने वाले कोल्हापुरी पहले राजा-महाराजा पहनते थे, मगर वक्त के साथ यह आम आदमी की चप्पल बन गई।
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कोल्हापुरी चप्पलों का निर्माण 12वीं या 13वीं शताब्दी से चला आ रहा है। मूल रूप से इस क्षेत्र के राजघरानों की ओर से संरक्षित मोची समुदाय के कारीगर वनस्पति और टैन्ड चमड़े का उपयोग कर हाथ से बनाते थे। इसकी एक और खासियत है कि इसे बनाने में कील नहीं लगाई जाती है। साल 2019 में कारीगरों ने लंबी लड़ाई के बाद कोल्हापुरी चप्पलों के लिए GI टैग हासिल किया था।






