
शहबाज सरकार, फोटो (सो. सोशल मीडिया)
Pakistan News In Hindi: इस्लामाबाद में एक बार फिर पाकिस्तान की राजनीति में उथल-पुथल देखने को मिल रही है। विपक्षी दलों के गठबंधन तहरीक तहफ्फुज आईन-ए-पाकिस्तान (टीटीएपी) ने सरकार की नाकामियों को लेकर मोर्चा खोलते हुए 8 फरवरी को ‘ब्लैक डे’ मनाने का ऐलान किया है।
यह वही तारीख है, जब फरवरी 2023 में मौजूदा सरकार सत्ता में आई थी। विपक्ष का कहना है कि यह सरकार न तो लोकतांत्रिक रूप से वैध है और न ही देश को आर्थिक व राजनीतिक संकट से निकालने में सफल रही है।
21 दिसंबर को आयोजित टीटीएपी के राष्ट्रीय सम्मेलन में विपक्षी नेताओं ने पाकिस्तान की बदहाल अर्थव्यवस्था, बिगड़ती कानून-व्यवस्था और लोकतांत्रिक संस्थाओं के कमजोर होने पर गंभीर सवाल उठाए। सम्मेलन में यह भी कहा गया कि देश मौजूदा हालात में एक नए ‘डेमोक्रेटिक चार्टर’ का हकदार है जिसमें सरकार और विपक्ष के बीच संवाद की स्पष्ट रूपरेखा तय हो।
विपक्ष के इस ऐलान के बाद सरकार की बेचैनी साफ नजर आई। पहले जहां सत्तारूढ़ दल के नेता इमरान खान का नाम लेने से बचते दिख रहे थे, वहीं अब प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ ने खुद सामने आकर बातचीत की पेशकश दोहराई है। इस्लामाबाद में हुई संघीय कैबिनेट बैठक के दौरान शहबाज शरीफ ने कहा कि यदि विपक्ष तैयार है तो सरकार भी संवाद के लिए पूरी तरह तैयार है, लेकिन यह बातचीत केवल ‘वैध और संवैधानिक मुद्दों’ पर ही होगी।
प्रधानमंत्री ने यह भी साफ किया कि बातचीत की आड़ में किसी तरह की ब्लैकमेलिंग बर्दाश्त नहीं की जाएगी। उन्होंने देश की तरक्की और स्थिरता के लिए राजनीतिक दलों के बीच सद्भाव और सहयोग को जरूरी बताया।
कैबिनेट बैठक में कानून मंत्री आजम नजीर तरार ने सहिष्णुता और संवाद आधारित एक नए राष्ट्रीय राजनीतिक चार्टर की जरूरत पर जोर दिया। वहीं प्रधानमंत्री के सलाहकार राणा सनाउल्लाह ने कहा कि राजनीतिक स्थिरता केवल संयम, आपसी सम्मान और निरंतर बातचीत से ही संभव है।
हालांकि, यह पहली बार नहीं है जब सरकार ने बातचीत का प्रस्ताव दिया हो। डॉन अखबार के अनुसार, दिसंबर 2024 के आखिर में भी सरकार और विपक्ष के बीच बातचीत शुरू हुई थी, लेकिन 9 मई 2023 और 26 नवंबर 2024 के विरोध प्रदर्शनों की जांच तथा पीटीआई नेताओं की रिहाई जैसे मुद्दों पर सहमति नहीं बन पाई।
पीटीआई पहले भी सरकार के प्रस्तावों को खारिज करती रही है। पार्टी नेताओं का आरोप है कि सरकार एक तरफ बातचीत की बात करती है, तो दूसरी तरफ पीटीआई के खिलाफ कार्रवाई तेज करती है। हाल ही में नेशनल असेंबली और सीनेट में भी विपक्ष ने कानून के शासन और इमरान खान से मुलाकातों पर लगे प्रतिबंधों को लेकर कड़ा विरोध जताया था।
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राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि वास्तविक सत्ता अब भी पाकिस्तान की सेना और खुफिया एजेंसियों के हाथ में है। ऐसे में सरकार की बातचीत की पेशकश को कई लोग सिर्फ अंतरराष्ट्रीय दबाव और बिगड़ती छवि से बचने की कोशिश मान रहे हैं। सवाल यही है कि क्या यह संवाद वास्तव में लोकतंत्र को मजबूती देगा या फिर यह केवल समय खरीदने की एक और राजनीतिक रणनीति साबित होगी।






