
सांकेतिस तस्वीर
Pakistan News Hindi: पाकिस्तान के सेना प्रमुख जनरल आसिम मुनीर ने वह रास्ता चुन लिया है, जिस पर देश के इतिहास में कोई फौजी नहीं चला। ‘जनरल फॉर लाइफ’ बनने के बाद वे अब न रिटायर होने को तैयार हैं और न ही देश छोड़ने की पारंपरिक फौजी परंपरा निभाने को। इस कदम ने उन्हें पाकिस्तान की सत्ता का असली मालिक जरूर बना दिया है लेकिन साथ ही उनके पद और जीवन दोनों पर खतरा कई गुना बढ़ गया है।
27वें संविधान संशोधन ने पाकिस्तान की सिविल सरकार को लगभग औपचारिकता बना दिया है। लोकतंत्र का जो भी हिस्सा बचा था, वह भी सेना मुख्यालय GHQ के हवाले हो चुका है। देश में पहले ही इमरान खान जेल में हैं, विपक्ष लगभग खत्म हो चुका है और न्यायपालिका व मीडिया पर सेना का अप्रत्यक्ष नियंत्रण स्थापित है। ऐसे माहौल में आसिम मुनीर का स्थायी शासक बन जाना कई राजनीतिक दलों को शायद असुविधाजनक न लगे, लेकिन सेना के भीतर इसका भारी विरोध पनप रहा है।
पाकिस्तान आर्मी में हर तीन साल बाद कमांडरों की रोटेशन प्रक्रिया होती है। करियर का पूरा ढांचा इसी व्यवस्था पर टिका है। हर अधिकारी जानता है कि उसकी बारी कब आएगी। लेकिन अब शीर्ष पर मौजूद व्यक्ति हटने से इनकार कर चुका है। इसका मतलब यह है कि वरिष्ठ कमांडरों का दशकों पुराना सपना हमेशा के लिए टूट चुका है।
यही कारण है कि पहली बार पाकिस्तान की सेना के भीतर खुले असंतोष और बगावत की आशंका जताई जा रही है। यह बगावत कब सामने आएगी, यह स्पष्ट नहीं, पर यह लगभग तय माना जा रहा है कि ऐसी स्थिति पहले कभी इतनी संभावित नहीं रही।
इतिहास भी जनरल मुनीर के लिए चेतावनी से भरा है। लंबे समय तक सत्ता में रहे जनरलों का अंत पाकिस्तान में हमेशा भयावह रहा है। जिया-उल-हक, जिन्होंने देश में इस्लामीकरण की नींव रखी, एक रहस्यमयी विमान दुर्घटना में मारे गए। परवेज मुशर्रफ, जिन्होंने नवाज शरीफ को हटाकर सत्ता संभाली, अंत में विदेश में गुमनामी और बीमारी के बीच दुनिया से विदा हुए।
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इन दोनों का अंजाम पाकिस्तानी सेना के लिए एक चेतावनी की तरह माना जाता है। इसके बावजूद आसिम मुनीर ने रिटायरमेंट और विदेश में सुरक्षित जीवन की संभावना को नकार दिया है, जो बाकी जनरलों को चिंतित कर रहा है।
पाकिस्तान की कमजोर अर्थव्यवस्था, राजनीतिक अस्थिरता और जनता का असंतोष पहले ही देश को संकट में डाल चुका है। ऐसे में सेना के भीतर बढ़ती खींचतान और सत्ता संघर्ष किसी भी वक्त बड़ा विस्फोट बन सकते हैं। अगर हालात इसी दिशा में बढ़ते रहे, तो पाकिस्तान के इतिहास में पहली बार सेना के भीतर ही सत्ता बदलने की घटना देखने को मिल सकती है।






