
नेपाल में जेन-जी आंदोलन के दौरान प्रदर्शनकारी, फोटो (सो. आईएएनएस)
Nepal News In Hindi: नेपाल के जेन-जी आंदोलन के दौरान हुई हिंसा और कथित मानवाधिकार उल्लंघनों की जांच कर रहा उच्च स्तरीय जांच आयोग अब निर्णायक मोड़ पर पहुंचता दिख रहा है। इसी क्रम में नेपाल के पूर्व गृहमंत्री रमेश लेखक ने सोमवार को आयोग के सामने पेश होकर अपनी गवाही दर्ज कराई।
यह आंदोलन सितंबर 2025 में हुआ था, जब जेन-जी विरोध प्रदर्शनों के दौरान कथित तौर पर सुरक्षा बलों द्वारा अत्यधिक बल प्रयोग किया गया। इन घटनाओं में करीब 77 लोगों की मौत होने का दावा किया गया है जिसके बाद देश और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर तीखी प्रतिक्रियाएं सामने आई थीं।
आयोग के सामने दिए गए अपने लिखित और मौखिक बयान में रमेश लेखक ने स्पष्ट रूप से कहा कि उन्होंने कभी भी प्रदर्शनकारियों के खिलाफ बल प्रयोग करने का कोई लिखित या मौखिक आदेश जारी नहीं किया। लेखक उस समय पूर्व प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली की अगुवाई वाली गठबंधन सरकार में गृहमंत्री थे और उन पर जेन-जी आंदोलन को दबाने के लिए अत्यधिक बल इस्तेमाल करने की अनुमति देने के आरोप लगाए गए हैं।
लेखक ने आयोग को बताया कि आंदोलन से एक दिन पहले उन्होंने सुरक्षा एजेंसियों को स्पष्ट निर्देश दिए थे कि किसी भी कीमत पर हताहत न हों और न्यूनतम बल का इस्तेमाल किया जाए। उन्होंने कहा कि 7 सितंबर को हुई केंद्रीय सुरक्षा समिति की बैठक में भी अधिक बल प्रयोग से जुड़ा कोई निर्णय नहीं लिया गया था।
पूर्व गृहमंत्री ने यह भी कहा कि कानून उन्हें बल प्रयोग के आदेश देने का अधिकार नहीं देता। उन्होंने दावा किया कि उनका उद्देश्य केवल कानून-व्यवस्था बनाए रखना था और सुरक्षा एजेंसियों को घुसपैठियों के प्रति सतर्क रहने के निर्देश दिए गए थे।
लेखक ने जेन-जी आंदोलन के शांतिपूर्ण स्वरूप को बिगाड़ने के लिए कुछ विशेष गुटों को जिम्मेदार ठहराया। उनके अनुसार, इन गुटों ने आंदोलन को हाईजैक कर हिंसक रूप दे दिया जिसके चलते 8 और 9 सितंबर को कई युवाओं की जान चली गई।
जेन-जी आंदोलन के दौरान नेपाल में व्यापक स्तर पर हिंसा और तोड़फोड़ देखी गई थी। सिंघदरबार स्थित सरकारी इमारतों, सुप्रीम कोर्ट, देशभर के सरकारी दफ्तरों, पुलिस चौकियों, राजनीतिक नेताओं के आवासों और कई निजी व्यावसायिक प्रतिष्ठानों को निशाना बनाया गया। पहले दिन हुई मौतों के बाद दूसरे दिन हिंसा और अधिक भड़क उठी थी।
आयोग के सामने पेशी के बाद पत्रकारों से बातचीत में लेखक ने दोहराया कि यह सब एक पूर्वनियोजित साजिश का हिस्सा था। उन्होंने कहा कि यह हमला केवल सरकार पर नहीं बल्कि देश और लोकतंत्र पर था और दोषियों को सख्त सजा मिलनी चाहिए।
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इस बीच, जांच आयोग पूर्व प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली को भी तलब करने की तैयारी कर रहा है। हालांकि, ओली ने साफ कर दिया है कि वह आयोग के सामने पेश नहीं होंगे। उनका आरोप है कि जांच एकतरफा है और पहले से ही निष्कर्ष तय कर लिया गया है। एक टीवी इंटरव्यू में ओली ने कहा कि जब उनके खिलाफ फैसला पहले ही सुना दिया गया है, तो बयान देने का कोई औचित्य नहीं रह जाता।






