बांग्लादेश की पूर्व पीएम खालिदा जिया और बेटे तारिक रहमान (सोर्स-सोशल मीडिया)
Bangladesh Election Impact 2026: बांग्लादेश की पूर्व प्रधानमंत्री और BNP सुप्रीमो बेगम खालिदा जिया का 30 दिसंबर 2025 को ढाका के एवरकेयर अस्पताल में निधन हो गया है। 80 वर्षीय जिया लंबे समय से गंभीर बीमारियों से जूझ रही थीं और उनके जाने से देश की राजनीति में एक युग का अंत हो गया है।
फरवरी 2026 में होने वाले आम चुनावों से ठीक पहले हुआ यह निधन बांग्लादेश के सियासी समीकरणों को पूरी तरह बदल सकता है। दशकों बाद यह पहला मौका होगा जब चुनाव में दो बेगमों, शेख हसीना और खालिदा जिया की सीधी टक्कर देखने को नहीं मिलेगी।
खालिदा जिया के निधन के बाद अब पूरी जिम्मेदारी उनके बेटे और BNP के कार्यवाहक अध्यक्ष तारिक रहमान पर आ गई है। तारिक 17 साल के लंबे निर्वासन के बाद हाल ही में स्वदेश लौटे हैं और उनके आते ही पार्टी कार्यकर्ताओं में भारी उत्साह देखा जा रहा है। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि चुनाव से ठीक 40 दिन पहले अपनी मां को खोने वाले तारिक को जनता का भारी सहानुभूति वोट मिल सकता है।
खालिदा जिया ने कल ही बोगरा-7 सीट से अपना नामांकन दाखिल किया था, जो पार्टी के लिए एक भावनात्मक लगाव वाली सीट रही है। अब तारिक के कंधों पर अपनी मां की राजनीतिक विरासत को बचाने और पार्टी को सत्ता तक पहुंचाने का भारी दबाव होगा।
शेख हसीना की अवामी लीग पर प्रतिबंध लगने के बाद मैदान पूरी तरह खाली है, लेकिन BNP के लिए राह आसान नहीं है। एक तरफ जमात-ए-इस्लामी अपनी कट्टरपंथी विचारधारा के साथ फिर से सक्रिय हो गया है, जिसे अंतरिम सरकार ने हाल ही में वैधानिक मान्यता दी है। दूसरी तरफ, तख्तापलट में मुख्य भूमिका निभाने वाले युवाओं ने नेशनल सिटीजन पार्टी (NCP) बनाकर जमात से हाथ मिला लिया है।
अगर खालिदा जिया के निधन के बाद BNP को सहानुभूति नहीं मिलती है, तो कट्टरपंथी ताकतों के बेलगाम होने का खतरा बढ़ जाएगा। तारिक रहमान ने हालांकि समावेशी बांग्लादेश बनाने और अल्पसंख्यकों की सुरक्षा का वादा किया है, लेकिन कट्टरपंथ की बढ़ती लहर उनके लिए बड़ी बाधा साबित हो सकती है।
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भारत के लिए बांग्लादेश का यह चुनाव अत्यंत महत्वपूर्ण है। खालिदा जिया के पिछले कार्यकाल के दौरान भारत-बांग्लादेश संबंधों में काफी तनाव रहा था, लेकिन वर्तमान परिस्थितियों में तारिक रहमान का रुख अधिक संतुलित नजर आ रहा है। वे जानते हैं कि वैश्विक राजनीति में भारत की भूमिका को नजरअंदाज करना नामुमकिन है।
अगर सहानुभूति की लहर BNP को स्पष्ट बहुमत दिलाती है, तो यह जमात जैसी भारत विरोधी ताकतों को नियंत्रित करने में मददगार साबित हो सकती है। अब सबकी निगाहें 12 फरवरी को होने वाले मतदान पर टिकी हैं, जो यह तय करेगा कि बांग्लादेश लोकतंत्र की ओर बढ़ेगा या कट्टरपंथ की गिरफ्त में जाएगा।