
कनाडा में खालिस्तानी नेटवर्क पर मचा बवाल,
Canadian Parliament Meeting: कनाडा और भारत के बीच रिश्तों में खालिस्तानी आतंकवाद हमेशा से एक संवेदनशील और अहम मुद्दा रहा है। अब यह विवाद कनाडा की संसद तक पहुंच गया है। नई कनेडियन सरकार के गठन के बाद संसद में हुई एक अहम बहुदलीय बैठक में देश में बढ़ते खालिस्तानी चरमपंथी नेटवर्क और विदेशी प्रभाव को लेकर गंभीर चिंता जताई गई।
इस बैठक में सांसदों के अलावा 12 अलग-अलग समुदायों के संगठनों ने हिस्सा लिया। इनमें भारतीय, ईरानी, वेनेज़ुएलाई, क्यूबाई, ईसाई और यहूदी समूह शामिल थे। बैठक का मुख्य विषय रहा कि किस तरह कुछ चरमपंथी और अलगाववादी संगठन कनाडा की लोकतांत्रिक आजादी का दुरुपयोग कर रहे हैं। इन समूहों पर आरोप लगाया गया कि वे राजनीतिक सक्रियता के नाम पर हिंसा, नफरत और अलगाववाद को बढ़ावा दे रहे हैं।
बैठक में यह भी कहा गया कि ये समूह कनाडा के सामाजिक ढांचे को कमजोर कर रहे हैं और विदेशी विचारधारात्मक या आर्थिक समर्थन प्राप्त कर रहे हैं। कई प्रतिनिधियों ने चेताया कि इन संगठनों की गतिविधियां कनाडा जैसे बहुसांस्कृतिक देश में फूट डालने की कोशिश कर रही हैं। इस बैठक के दौरान मुस्लिम ब्रदरहुड को आतंकी संगठन घोषित करने की मांग भी उठी। प्रतिभागियों ने कहा कि कनाडा को उन लोकतांत्रिक देशों की तरह कदम उठाना चाहिए जिन्होंने पहले ही मुस्लिम ब्रदरहुड को आतंकवादी संगठन की सूची में शामिल कर लिया है।
सांसदों ने यह भी कहा कि कनाडा के मूल मूल्य समानता, मानवाधिकार और शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व किसी भी विदेशी दबाव या हिंसक विचारधारा से प्रभावित नहीं होने चाहिए। बैठक में सत्तारूढ़ और विपक्षी दोनों दलों ने एकजुटता दिखाई और माना कि विदेशी हस्तक्षेप और अतिवादी विचारधाराएं देश की सुरक्षा और लोकतांत्रिक ढांचे के लिए बड़ा खतरा बन चुकी हैं।
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यह मुद्दा कनाडा के लिए और भी गंभीर इसलिए है क्योंकि हाल के दिनों में वहां गैंगवार और संगठित अपराध के कई मामले सामने आए हैं। हाल ही में कनाडा ने लॉरेंस बिश्नोई गैंग को आतंकी संगठन घोषित किया है इस गैंग के कई सदस्य भारत में भी वांछित हैं। भारत लगातार कनाडा सरकार से मांग करता आया है कि वह खालिस्तानी आतंकियों पर सख्त कार्रवाई करे और उनके नेटवर्क पर प्रतिबंध लगाए। नई संसद बैठक में उठे ये मुद्दे इस बात का संकेत हैं कि कनाडा अब इस खतरे को लेकर अधिक गंभीर होता जा रहा है।






