
मुहम्मद यूनुस, फोटो (सो. सोशल मीडिया)
Bangladesh Debt: नोबेल विजेता मोहम्मद युनूस ने जब बांग्लादेश की सत्ता संभाली थी, तब उम्मीद थी कि देश नई आर्थिक मजबूती की ओर बढ़ेगा। लेकिन ताज़ा आंकड़े संकेत देते हैं कि बांग्लादेश भी पाकिस्तान की तरह कर्ज़ के जाल में तेजी से उलझता जा रहा है।
वर्ल्ड बैंक की नवीनतम रिपोर्ट के मुताबिक, पिछले पांच वर्षों में देश पर विदेशी कर्ज का बोझ 42 फीसदी तक बढ़ चुका है। यही नहीं, सार्वजनिक और निजी दोनों क्षेत्रों द्वारा लिए गए बाहरी ऋण की मूलधन और ब्याज भुगतान की राशि भी दोगुनी हो गई है।
रिपोर्ट बताती है कि बांग्लादेश लंबे समय से बढ़ते बाहरी कर्ज दबाव से जूझ रहा है। सरकार ने हाल के वर्षों में बड़ी-बड़ी परियोजनाओं के लिए भारी विदेशी ऋण लिया। इनमें रोपपुर परमाणु ऊर्जा संयंत्र, ढाका मेट्रो रेल, बिजली संयंत्र, नया हवाईअड्डा टर्मिनल, अंडरवाटर टनल और कई ऊंचे एक्सप्रेसवे प्रोजेक्ट शामिल हैं। इनमें से कई परियोजनाओं की ऋण अदायगी की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है, जबकि अन्य परियोजनाएं भी जल्द ही भुगतान चरण में प्रवेश करेंगी।
इस बढ़ते कर्ज बोझ पर पूछे जाने पर, वर्ल्ड बैंक ढाका कार्यालय के पूर्व मुख्य अर्थशास्त्री जाहिद हुसैन ने प्रोथम आलो को बताया कि विदेशी उधार पर निर्भरता और उसकी अदायगी का दबाव कोविड-19 काल से लगातार बढ़ता जा रहा है। उन्होंने कहा कि अब अंतरराष्ट्रीय साझेदार पहले की तरह नरम शर्तों पर लोन नहीं दे रहे हैं। ‘‘कम ग्रेस पीरियड, घटती मैच्योरिटी और ऊंची ब्याज दरों के कारण मूलधन और ब्याज का बोझ तेजी से बढ़ रहा है।
जाहिद हुसैन ने यह भी स्पष्ट किया कि बाहरी कर्ज पर बढ़ती निर्भरता बांग्लादेश की अर्थव्यवस्था को जोखिमपूर्ण स्थिति की ओर ले जा रही है। पहले जहां बांग्लादेश विश्व बैंक और IMF की रिपोर्टों में ‘लो रिस्क’ श्रेणी में था, वहीं अब वह ‘मध्यम जोखिम’ श्रेणी में पहुंच गया है। यह संकेत है कि आने वाले वर्षों में आर्थिक स्थिरता बनाए रखना सरकार के लिए बड़ी चुनौती होगा।
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विशेषज्ञों का मानना है कि निर्यात में गिरावट, डॉलर संकट और विदेशी निवेश की धीमी रफ्तार भी कर्ज बोझ को संभालने की क्षमता को प्रभावित कर रही है। यदि सरकार राजस्व सुधार, निर्यात बढ़ोतरी और विदेशी ऋण प्रबंधन पर ठोस कदम नहीं उठाती, तो बांग्लादेश की अर्थव्यवस्था और कमजोर हो सकती है।






