बांग्लादेश में तख्तापलट को एक साल
Bangladesh News: बांग्लादेश की पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना को देश छोड़े आज एक वर्ष पूरा हो गया है। बीते एक साल से वह भारत में रह रही हैं, जबकि उनकी पार्टी अवामी लीग और उसके समर्थक अब भी बांग्लादेश में सक्रिय हैं। गौरतलब है कि एक साल पहले छात्र आंदोलन की लहर ने देश में बड़ा राजनीतिक बदलाव ला दिया था।
व्यापक विरोध-प्रदर्शनों और हिंसा में सैकड़ों लोगों की जान जाने के बाद शेख हसीना की 15 साल पुरानी सरकार का अंत हो गया था। विश्व इतिहास में ऐसे बहुत ही कम उदाहरण हैं जब युवाओं के आंदोलन ने लोकतांत्रिक ढंग से चुनी गई सरकार को गिरा दिया हो। बांग्लादेश के नजरिए से यह आंदोलन देश के लिए नई उम्मीदों की किरण बनकर उभरा था।
वर्षों से सत्ता पर काबिज हसीना सरकार के पतन के बाद ढाका में एक नए दौर की शुरुआत की संभावनाएं नजर आने लगी थीं। नागरिकों को लोकतंत्र की बहाली और सुशासन की आशा जगी थी। लेकिन पिछले एक साल में ये सब बस एक सपना बनकर रह गया। बीते एक साल में बांग्लादेश में कट्टरपंथी तत्वों ने अल्पसंख्यक समुदायों को लगातार निशाना बनाया है।
बांग्लादेश हिंदू बौद्ध ईसाई एकता परिषद के अनुसार, केवल जनवरी से जून 2025 के बीच अल्पसंख्यकों पर 258 हमले दर्ज किए गए। परिषद का आरोप है कि मोहम्मद यूनुस की कार्यवाहक सरकार इन हमलों को रोकने में विफल रही है, जिससे हमलावरों का हौसला बढ़ गया है।
शेख हसीना के नेतृत्व में बांग्लादेश ने आर्थिक विकास और धर्मनिरपेक्ष मूल्यों को मजबूत करने में काफी प्रगति की थी। आवामी लीग सरकार ने जमात-ए-इस्लामी जैसे कट्टरपंथी संगठनों पर सख्त नियंत्रण बनाए रखा था। हालांकि, शेख हसीना के पतन के बाद, मोहम्मद यूनुस की अंतरिम सरकार ने जमात-ए-इस्लामी पर लगे प्रतिबंध को हटा दिया, जिससे कट्टरपंथी ताकतों को नया बल मिला है।
बांग्लादेश में तख्तापलट को लेकर आंदोलन करते छात्र
बांग्लादेश की लगभग 8% आबादी हिंदू समुदाय की है, जो वर्तमान राजनीतिक अस्थिरता का सबसे बड़ा शिकार बन रहा है। तख्तापलट के बाद से 2,200 से अधिक हिंसक घटनाएं दर्ज की गई हैं, जिनमें हिंदुओं की हत्याएं, मंदिरों पर हमले और उनकी संपत्तियों की लूट शामिल हैं। मंदिर जैसे पवित्र स्थलों को निशाना बनाया गया है, और रंगपुर जिले के अलदादपुर गांव में 15 हिंदू परिवारों के घरों को ध्वस्त कर दिया गया।
यह भी पढे़ें:- रूस ने दिखाया असली रूप, ट्रंप की धमकी के बीच हटाई इंटरमीडिएट-रेंज मिसाइल पर लगी रोक, मचा हड़कंप
अंतरिम सरकार हिंदुओं की सुरक्षा का आश्वासन दे रही है, लेकिन हिंसा थमने का नाम नहीं ले रही। इसके अलावा, बांग्लादेश के अटॉर्नी जनरल मोहम्मद असदुज्जमां ने संविधान से “धर्मनिरपेक्ष” शब्द हटाने की मांग की है, जिससे अल्पसंख्यकों के अधिकारों पर गंभीर प्रभाव पड़ सकता है।
भारत के विदेश सचिव विक्रम मिसरी ने ढाका में मोहम्मद यूनुस से मुलाकात कर अल्पसंख्यकों की सुरक्षा का मुद्दा उठाया, लेकिन अब तक स्थिति में कोई सुधार नहीं दिखाई दे रहा है। हिंदू समुदाय की सुरक्षा और बांग्लादेश में धर्मनिरपेक्षता का भविष्य अब अनिश्चितता के घेरे में है।
आंदोलन के नाम पर बांग्लादेश में हिंसा
बांग्लादेश और भारत के बीच रिश्तों में आई तल्खी के बीच अब ढाका का झुकाव पाकिस्तान और चीन की ओर होता नजर आ रहा है। लंबे समय बाद पाकिस्तानी सेना और आईएसआई के अधिकारी बांग्लादेश का दौरा कर रहे हैं। यह इतिहास का एक कड़वा सच है कि 1971 के युद्ध के दौरान इसी पाकिस्तानी सेना ने बांग्लादेश में भयानक नरसंहार किया था। इसके बाद भी बांग्लादेश के प्रमुख व्यक्तित्व मोहम्मद यूनुस ने पाकिस्तान के प्रधानमंत्री के साथ सौहार्दपूर्ण मुलाकात की है।
यह भी पढे़ें:- चीन की खोज से दुनिया दंग! वैज्ञानिक बोले- धरती के नीचे अंधेरे में पल रही है रहस्यमयी जिंदगी
1971 के युद्ध के बाद पहली बार नवंबर 2024 में एक पाकिस्तानी मालवाहक जहाज ने चटगांव बंदरगाह पर दस्तक दी थी। इसके अलावा, अप्रैल 2024 में ढाका में पाकिस्तान और बांग्लादेश के विदेश सचिवों की 15 वर्षों के अंतराल के बाद बैठक हुई थी। पाकिस्तान के विदेश मंत्री इशाक डार ने भी 27 और 28 अप्रैल को ढाका की यात्रा की थी, जो 2012 के बाद किसी पाकिस्तानी शीर्ष नेता की पहली आधिकारिक यात्रा थी। इस दौरान दोनों देशों ने आपसी सहयोग बढ़ाने और विभिन्न समझौतों पर चर्चा की थी।
बांग्लादेश में इस तरह की अस्थिरता की स्थिति भारत के लिए कई समस्याएं पैदा कर रही है, खासकर पूर्वोत्तर क्षेत्र की सीमाओं पर सुरक्षा संबंधी जोखिम बढ़ गए हैं। वहां उग्रवादी समूहों का बढ़ता प्रभाव इस क्षेत्र की शांति को खतरे में डाल सकता है। इस समय भारत सरकार बांग्लादेश की स्थिति को गंभीरता से देख रही है और सीमा पर तैनात सुरक्षा बलों को सतर्क रखा गया है।