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– राजेश मिश्र
लखनऊ : रामनवमी (Ramnavami) और रमजान (Ramzan) के पवित्र माह में एक तरफ जहां देश के छह राज्यों में शोभा यात्रा (Shobha Yatra) के दौरान बवाल और हिंसा (Violence) की खबरें आई वहीं उत्तर प्रदेश (Uttar Prades) जहां राम का जन्म हुआ और जहां उन्होंने अपने वनवास का सबसे ज्यादा समय व्यतीत किया इससे अछूता रहा। जबकि इस दौरान सूबे में आठ सौ से ज्यादा स्थानों पर जूलूस और शोभायात्राएं निकाली गई।
रामनवमी की शोभा यात्रा के दौरान जहां देश के छह राज्यों गुजरात, झारखंड, पश्चिम बंगाल, कर्नाटक और मध्य प्रदेश में शोभा यात्रा के दौरान पथराव, हिंसा भड़की और गुजरात में एक की मौत भी हुई। राजधानी दिल्ली के जेएनयू कैंपस में पूजा के दौरान नॉनवेज खाने को लेकर बवाल हुआ और यूपी में शांति व्यवस्था कायम रही। इसने एकबार फिर से सूबे की कानून व्यवस्था और गुड गवर्नेंस के योगी मॉडल को चर्चा में ला दिया है। जानकार इसके लिए सीएए का होना और योगी के बुलडोजर इफेक्ट का प्रभाव मान रहे हैं।
इस पर सूबे के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का कहना है कि “उत्तर प्रदेश में 25 करोड़ लोग रहते हैं, 800 स्थानों पर रामनवमी की शोभायात्रा और जुलूस थे। रमजान का महीना चल रहा है, रोजा इफ्तार के कार्यक्रम भी रहे होंगे, कहीं तू-तू, मैं-मैं भी नहीं हुई। ये यूपी के विकास की नई सोच को प्रदर्शित कर रहा है”।
जानकारों का कहना है कि एक तरफ जहां रामनवमी और रमजान के मौके पर उत्तर प्रदेश की कानून व्यवस्था काफी नाजुक मानी जाती थी वही आज उत्तर प्रदेश की स्थिति एकदम शांतिपूर्ण रही जबकि खुद भाजपा शासित राज्यों सहित करीब आधा दर्जन राज्य इससे प्रभावित रहे। इसके पीछे का कारण योगी सरकार की कानून व्यवस्था पर पकड़ और जीरो टॉलरेंस की नीति बताई जा रही है। माना यह भी जा रहा है की जिस तरह से योगी सरकार का बुलडोजर अवैध कब्जों वह भू माफियाओं की कमर तोड़ रहा है, सीएए-एनआरसी को लेकर हुए धरना प्रदर्शन और तोड़फोड़ को जिस तरह से योगी सरकार निपटने में कामयाब रही और सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाने वालों के घरों को कुर्क करने के आदेश जारी किए, यह उसी का ही परिणाम है कि आज उत्तर प्रदेश में भाईचारा और अमन चैन कायम है और धर्म की सियासत करने वालों ने अपने रास्ते बदल लिए हैं।
इसीलिए रामनवमी रमजान के इस पवित्र माह में जहां देश के अन्य राज्यों में से हिंसा और झड़प की खबरें रहीं, वहीं उत्तर प्रदेश में इस तरह की वारदात का ना होना आम जनमानस में चर्चा का विषय बना। 800 से ज्यादा स्थानों पर जुलूस और शोभायात्रा निकाली गई लेकिन किसी तरह की कोई भी शिकायत देखने को नहीं मिली बल्कि कई जगहों से भाईचारे की मिसाल का वीडियो सोशल मीडिया में जरूर वायरल हुआ। चर्चा तो यह भी हो रही है कि प्रदेश की यह स्थिति योगी सरकार के कुशल प्रशासन का जहां एहसास करा रहा है वही यह एक बदलते प्रदेश के रूप में उभर रहा है जहां का परिवेश भाईचारे का है।
गौरतलब है कि देश के अन्य राज्यों में जिसमें कई तो भाजपा शासित भी शामिल है, बीते दिनों हिंसा और झड़प की तमाम खबरें सुर्खियां बनीं। जिनमें गुजरात, झारखंड, पश्चिम बंगाल, कर्नाटक और मध्य प्रदेश में शोभा यात्रा के दौरान पथराव की घटनाएं हुई तो गुजरात में पथराव के बाद हुई हिंसा में एक शख्स की मौत हो गई। दिल्ली के जेएनयू कैंपस में पूजा के दौरान नॉनवेज खाने को लेकर हंगामा हो गया। छात्रों पर उपद्रवियों द्वारा किए गए पथराव से कई छात्र-छात्राएं घायल हो गए। इसको लेकर केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह का कहना है कि देश में रामनवमी जुलूस पर पत्थरबाजी की जो घटनाएं घट रही हैं यह संयोग नहीं एक प्रयोग है। मैं हमेशा कहता हूं कि मुस्लिमों की बढ़ती आबादी खतरा नहीं है बल्कि अगर खतरा है तो कट्टरपंथी सोच है।
इसी क्रम में यदि पूर्व की सरकारों के कार्यकाल के दौरान हुई हिंसा का आंकलन किया जाय तो तस्वीर कुछ अलग ही दिखती है। एनसीआरबी के आंकड़ें बताते हैं कि 13 मार्च 2007 को मायावती के यूपी की मुख्यमंत्री के तौर पर शपथ लेने के बाद उनके कार्यकाल में केवल दंगों और झड़पों की 4000 से ज्यादा घटनाएं सालाना हुई थीं। जिनमें साल 2010 में ईद-ए-मिलाद के जुलूस में बरेली में हिंदुओं और मुस्लिमों के बीच दंगा हुआ था। 2 मार्च को शुरू हुई हिंसा ने कई इलाकों में अपना असर दिखाया और दोनों समुदाय के लोग एक दूसरे पर डंडे चलाते और पत्थर फेंकते दिखे थे। इस दौरान दुकानें जलीं, लोगों के घर टूटे और स्थिति को काबू करने के लिए कर्फ्यू लगाना पड़ा था। इसी तरह अखिलेश यादव के कार्यकाल साल 2012 से 2016 के बीच इसमें और वृद्धि पाई गई। एनसीआरबी रिपोर्ट के मुतबिक मायावती के 2007 से 2012 की सरकार की तुलना में अखिलेश सरकार में क्राइम का दर 16 फीसद बढ़ा। बसपा शासन में यूपी में औसतन 5783 आपराधिक घटनाएं हो रही थीं और अखिलेश सरकार में ये नंबर 6433 पहुंचे जिसमें सूबे ने 2013 में मुजफ्फरनगर जैसे दंगों को झेला।