बुलंदशहर की जिलाधिकारी श्रुति व सपा नेता शिवपाल यादव (फोटो- सोशल मीडिया)
Shivpal Yadav vs DM Shruti Controversy: उत्तर प्रदेश की सियासत में समाजवादी पार्टी के महासचिव शिवपाल यादव का फोन न उठाना बुलंदशहर की जिलाधिकारी श्रुति को महंगा पड़ गया। एक कार्यकर्ता के काम के सिलसिले में शिवपाल ने डीएम को करीब 20 से 25 बार फोन किया, लेकिन डीएम साहिबा ने हर बार उनके फोन को नजरअंदाज किया। इस रवैये से नाराज होकर शिवपाल ने सीधे विधानसभा अध्यक्ष सतीश महाना से इस पूरे मामले की शिकायत कर दी, जिसके बाद लखनऊ से लेकर बुलंदशहर तक के प्रशासनिक हलकों में भी हड़कंप मच गया।
यह मामला कुछ महीने पहले का है, जब शिवपाल यादव ने एक स्थानीय कार्यकर्ता की मदद के लिए डीएम श्रुति से संपर्क साधने की कोशिश की। आरोप है कि कई बार फोन उनके निजी सहायक ने उठाया, लेकिन डीएम से बात नहीं कराई गई। शिवपाल ने उनके व्यक्तिगत नंबर पर भी कॉल किया, पर कोई जवाब नहीं मिला। हद तो तब हो गई जब बुलंदशहर के सपा जिलाध्यक्ष मतलूब अली खुद शिवपाल का संदेश लेकर डीएम के पास पहुंचे, लेकिन उन्हें भी बिना सुनवाई के लौटा दिया गया। इस अनदेखी से शिवपाल का नाराज होना लाजिमी था।
लगातार नजरअंदाज किए जाने के बाद शिवपाल यादव ने इस मामले को गंभीरता से लिया। उन्होंने पहले फोन पर और फिर लिखित में विधानसभा अध्यक्ष सतीश महाना से शिकायत की। उन्होंने इसे एक विधायक के विशेषाधिकार का हनन बताते हुए मामले को समिति के पास भेजने का आग्रह किया। शिवपाल जैसे वरिष्ठ नेता की शिकायत पर विधानसभा अध्यक्ष ने भी तत्काल कार्रवाई करते हुए डीएम श्रुति को नोटिस जारी कर दिया। सूत्रों के अनुसार, नोटिस मिलते ही शासन के आला अधिकारी भी सक्रिय हो गए और मामले को शांत कराने की कोशिशें शुरू हो गईं।
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विधानसभा से नोटिस पहुंचने के बाद डीएम श्रुति को अपनी गलती का एहसास हुआ। उन्होंने तुरंत शिवपाल यादव से संपर्क किया और पूरे घटनाक्रम के लिए माफी मांगी। उन्होंने इसका ठीकरा अपने निजी सहायक नितेश कुमार रस्तोगी पर फोड़ते हुए कहा कि उन्हें यह जानकारी नहीं दी गई थी कि शिवपाल यादव फोन कर रहे हैं। जानकारी के मुताबिक, डीएम ने अपने उस पीआरओ को हटा भी दिया है। वहीं, शिवपाल यादव ने भी नरम रुख अपनाते हुए डीएम की माफी स्वीकार कर ली। उन्होंने विधानसभा अध्यक्ष को पत्र लिखकर सूचित किया कि वह डीएम की सफाई से संतुष्ट हैं और अब कोई कार्रवाई नहीं चाहते, जिसके बाद इस मामले को बंद कर दिया गया। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि अगर शिवपाल अड़ जाते तो डीएम को सदन में पेश होना पड़ सकता था।