अमित शाह, सीएम योगी (फोटो-सोशल मीडिया)
लखनऊः उत्तर प्रदेश के 12 IPS अधिकारी 2027 से पहले दिल्ली में डेपुटेशन पर जाना चाहते हैं। इस लिस्ट में ADG से लेकर SP रैंक तक के अधिकारी शामिल हैं। जो अधिकारी यूपी को छोड़कर दिल्ली में तैनाती चाहते हैं, उनमें से ज्यादातर फील्ड में तैनात हैं। इन अधिकारियों के यूपी छोड़ने के अलग-अलग कारण हैं। इसमें राजनीतिक, व्यक्तिगत और अच्छे मौके की तलाश जैसे कारण हो सकते हैं। इस खबर में जानेंगे IPS अधिकारी क्यों दिल्ली जाना चाहते हैं, इससे क्या फायदा होता है। साथ ही बताएंगे किन राजनीतिक परिस्थियों के कारण IPS अधिकारी अपना कैडर छोड़कर दूसरे राज्य में सेवाएं देना चाहते हैं।
बता दें कि जो 12 अधिकारी दिल्ली डेपुटेशन पर जाना चाहते हैं। उनमें तीन अधिकारियों को अनुमति मिल गई है। इनमें कानपुर जोन के एडीजी आलोक सिंह, कानपुर नगर के पुलिस आयुक्त अखिल कुमार और हाल ही में सहारनपुर से हटे एसपी रोहित साजवाण का नाम शामिल है।
दिल्ली जाने के इच्छुक अधिकारी
वहीं उन अधिकारियों की बात करें जो दिल्ली तो जाना चाहते हैं, लेकिन अभी तक इजाजत नहीं मिल पाई है। उनमें DG रैंक के अधिकारी आनंद स्वरूप हैं। वर्तमान में इनकी तैनाती डीजी पुलिस मुख्यालय में है, IG रैंक शलभ माथुर, वर्तमान इनकी कार्मिक विभाग में IG के तौर पर तैनाती है, IG रैंक अमित पाठक, वर्तमान इनकी तैनाती देवी पाटन में IG के तौर पर है। SP रैंक अंकुर अग्रवाल, वर्तमान एसपी सीतापुर के रूप में सेवा दे रहे हैं। SSP रैंक अभिषेक यादव, वर्तमान में इनकी तैनाती SSP पीलीभीत के तौर पर है। SP रैंक सतीश कुमार, वर्तमान में ये SP SSF हैं।
डेपुटेशन पर जानें के क्या हैं नियम
सेंट्रल स्टाफिंग स्कीम के तहत हर साल 1 से 15 जनवरी के बीच जो अफसर केंद्रीय डेपुटेशन के लिए इच्छुक होता है, उसे केंद्र सरकार को इच्छा बतानी पड़ती है। इसके बाद स्थान रिक्त होने पर उन्हें तैनात दी जाती है, लेकिन इसके लिए राज्य सरकार की NOC आवश्यक है। इसके अलावा यदि किसी केंद्रीय एजेंसी के निदेशक या कोई केंद्रीय मंत्री अपनी टीम में किसी भी अधिकारी को रखना चाहे तो उसे नियुक्ति दे सकता है। हालांकि इसके लिए भी राज्य सरकार की NOC जरूरी है। इसे जुवाड़ डेपुटेशन कहा जाता है।
किसी भी अधिकारी के डेपुटेशन पर जाने के 2 कारण
पूर्व DIG लक्ष्मी नारायण से हमने पूछा कि कोई भी IPS अधिकारी डेपुटेशन पर दिल्ली क्यों जाना चाहता है? इस पर उन्होंने बताया कि केंद्रीय प्रतिनियुक्तियों में अधिकारियों के कई फायदे होते हैं। इसमें सबसे पहला कारण कैरियर एक्सपोजर है। जब अधिकारी को CBI, ED या NIA में तैनाती मिलती है तो वह एक राज्य सीमित नहीं रहता है, बल्कि पूरे देश में काम करता है। साथ ही उसको नया एक्सपीरियंस मिलता है। इन सब के अलावा डेपुटेशन पर जाने वाले अधिकारी दिल्ली में रहते हैं। किसी भी राज्य से बेहतर लाइफस्टाइल राजधानी दिल्ली की होती है। वहां उनके परिवार का रहन सहन बदल जाता है। वहीं बच्चे माता-पिता के साथ रहकर अच्छे स्कूल में पढ़ सकते हैं। हालांकि मैंने जब उनसे पूछा कि क्या सैलरी में कोई खास परिवर्तन होता है? तो उन्होंने कहा कि सैलरी का इसमें कोई अहम रोल नहीं है। क्योंकि डेपुटेशन पर जाने के बाद अधिकारी की सैलरी में करीब 20 से 30 हजार रुपये ही बढ़ते हैं।
1- व्यक्तिगत कारण
केंद्र में डेपुटेशन मिलने पर कैरियर एक्सपोजर मिलता है। कई राज्यों में काम करने का मौका मिलता है। इसके अलावा जिस भी विभाग में तैनाती मिलती है, उसके काम के नए-नए तरीके भी सीखने को मिलते हैं। स्टेट पुलिस और CBI, ED, IB व NIA के काम में काफी अंदर होता है। इसके अलावा इंटरनेशलन अनुभव भी मिलता है। वहीं जो सबसे खास कारण माना जाता है उसमें एक अपने गृह राज्य के करीब जाने की चाहत भी होती है। इसके अलावा यदि पत्नी भी सिविल सर्विस में है तो अधिकारी चाहते हैं कि पत्नी के साथ दिल्ली में तैनाती मिल जाए। जिससे वह परिवार के साथ रह सकें। इससे पत्नी के साथ तो रह ही सकते हैं साथ दिल्ली की लाइफस्टाइल अन्य राज्यों की अपेक्षा बेहतर होती है। ऐसे में अधिकारी के बच्चे अच्छे माहौल में पलते हैं। साथ ही परिवार के साथ रहते हुए अच्छे स्कूल में पढ़ सकते हैं।
2- राजनीतिक कारण
केंद्रीय प्रतिनियुक्ति के लिए राजनीतिक कारण भी अहम होता है। कई अफसर जिन्हें राज्य में प्राइम पोस्टिंग नहीं मिलती या साइड लाइन रहते हैं, वे भी केंद्रीय प्रतिनियुक्ति पर जाने की इच्छा जताते हैं। कई बार ऐसा भी होता है, जब राज्य सरकार खुद कुछ नाम केंद्र सरकार को भेज देती है। चाहे वह अफसर की इच्छा हो या न हो।
सरकार का अधिकारियों की तैनाती में फेवरिटिज्म और सत्ता बदलने का डर
IPS अधिकारियों के प्रदेश छोड़ने कारणों को लेकर हमने समाजवादी पार्टी के प्रवक्ता मनोज काका से बात की। उन्होंने बताया कि उत्तर प्रदेश की शासकीय व्यवस्थाओं में सीएम योगी टॉप क्लास के अफसरों में जातीय एंगल देखते हैं। उनको स्वाजातीय अफसर पंसद हैं। वो अन्य जाति, समुदाय के अफसरों को तैनाती देते हैं, उसमें चाहे जितना कैलिबर हो। उन्होंने कहा कि लगातार बहुजन वर्ग के अफसरों के साथ भेदभाव का रवैया अपना रही है। अच्छे अफसर अच्छी जगह तैनाती न मिलने से दिल्ली जाना चाहते हैं।
हमने मनोज काका से पूछा कि क्या सरकार बदलने के डर से मौजूदा सरकार के कथित करीबी अफसर प्रदेश तो नहीं छोड़ रहे हैं। इस पर उन्होंने स्पष्ट कहा कि सरकार तो उत्तर प्रदेश में बदलने जा रही है। लेकिन सपा सरकार कभी किसी अधिकारी के खिलाफ दुर्भावना पूर्ण कार्रवाई नहीं की जाती है। समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव कभी पूर्वाग्रह से ग्रसित होकर निर्णय नहीं लेते हैं।
‘यूपी में नौकरशाहों का नौकरशाही से मोहभंग’
हमने इस विषय पर वरिष्ठ पत्रकार ज्ञानेंद्र शुक्ल से बातचीत की तो उन्होंने कहा कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार में केंद्र की नौकरशाही में यूपी का दबदबा रहा है, लेकिन हाल की बात करें तो यूपी कैडर के बड़ी संख्या में IPS और IAS अफसरों का नौकरशाही से मोहभंग हो गया है। इसकी वजह उन्होंने बताया कि यूपी में पिछले कुछ समय से कार्यवाहक डीजीपी से काम चलाया जा रहा है। परमानेंट डीजीपी की नियुक्ति में वरिष्ठता देखी जाती है, लेकिन कार्यवाहक में सरकार के पसंदीदा अफसरों को कुर्सी पर बैठा दिया जाता है। कई ऐसे अफसर हैं, जिनको लगता है कि मुख्य सचिव व डीजीपी बनें, लेकिन उन्हें लगा कि मौका नहीं मिलेगा। इसीलिए एक दर्जन IAS और IPS अधिकारियों ने नौकरी छोड़ दी।
‘सपा और बसपा के दौर में भी अफसर जाते थे दिल्ली’
ज्ञानेंद्र शुक्ला ने कहा कि इससे पहले कर्मठ और काबिल अफसरों को केंद्र में नियुक्ति मिलती रही है, लेकिन हमेशा ऐसा भी रहा है कि राज्य में जिन अफसरों को सरकार से दिक्कत होती थी। वे अफसर दिल्ली चलते जाते हैं इससे पहले यूपी में 5-5 साल में सरकारें बदलती रहती रहीं है। बसपा की सरकार में मायावती के करीबी अफसर सपा की सरकार आने के बाद दिल्ली चले जाते थे। ऐसा ही पैटर्न सपा सरकार आने पर भी फॉलो होता था।
‘मौसम वैज्ञानिक होते हैं अफसर, भाप लेते हैं माहौल’
हमने उनसे पूछा कि क्या सरकार बदलने का डर भी अधिकारियों का प्रदेश छोड़ने का एक कारण है। इस पर ज्ञानेंद्र शुक्ला बताते हैं कि अफसर निश्चित तौर पर मौसम वैज्ञानिक होते हैं। वो भी भाप लेते हैं। यूपी में पुलिसिंग फ्रंट सीट पर है। ऐसे में एनकाउंटर व कार्रवाइयों को उन्हें ही अंजाम देना पड़ता है। यूपी में बड़ी संख्या में पुलिस अधिकारी योगी के सरकार के करीबी हैं। ऐसे में एक पहलू ये भी है कि राजनीतिक तौर पर एम्बेडड अधिकारियों का अखिलेश यादव की सरकार में नुकसान हो सकता है। इसलिए दिल्ली जाना बेहतर विकल्प है।