बहुजन समाज पार्टी की सुप्रीमो मायावती (फाइल फोटो सौ. से सोशल मीडिया)
लखनऊ : बहुजन समाज पार्टी की सुप्रीमो मायावती का जन्मदिन 15 जनवरी को जनकल्याणकारी दिवस के रूप में मनाने के लिए जोरशोर से तैयारी की जा रही है। अस आयोजन के के ठीक एक दिन बाद 16 जनवरी को बसपा की लखनऊ में अहम बैठक होने जा रही है, जिसमें मंडलीय कोआर्डिनेटरों के साथ जिलाध्यक्षों को बुलाकर बसपा की आगामी रणनीति व पार्टी के खोए जनाधार को वापस पाने के लिए चर्चा होगी। ऐसा माना जा रहा है कि अपने जन्मदिन के एक दिन बाद हो रही इस मीटिंग में सुप्रीमो मायावती कुछ बड़ा ऐलान कर सकती हैं।
पिछले डेढ़ दशक से लगातार गिर रहे जनाधार और कम होती जा रही सांसदों व विधायकों की संख्या को लेकर पार्टी चिंतित है। बसपा इसी माह से संगठन को धार देने के लिए अभियान शुरू करने जा रही है। इसमें दलितों, पिछड़ों, अति पिछड़ों के साथ मुसलमानों को बसपा से जोड़ने का अभियान चलाया जाएगा। इसको लेकर मंडल कोआर्डिनेटर और जिलाध्यक्षों के साथ विस्तार से चर्चा की जाएगी, ताकि पार्टी की रणनीति को अमली जामा पहनाया जा सके।
आपको बता दें कि बसपा सुप्रीमो विधानसभा चुनाव 2027 से पहले उत्तर प्रदेश में नए सिरे से संगठन तैयार करना चाहती हैं, जिससे खोया हुआ जनाधार पाकर सत्ता में वापसी की जा सके। मायावती ने इस बार जिले स्तर पर अपना जन्मदिवस मनाने का निर्देश कार्यकर्ताओं को दिया है। इससे साफ है कि लखनऊ में प्रदेश स्तर के बजाय जिला मुख्यालयों पर इसे जनकल्याणकारी दिवस के रूप में मनाया जाएगा। इसमें जिले भर के पदाधिकारी और कार्यकर्ता शामिल होंगे। इसके बाद मंडल कोआर्डिनेटर और जिलाध्यक्ष पार्टी की मीटिंग में शामिल होने के लिए लखनऊ जाएंगे।
बहुजन समाज पार्टी की सुप्रीमो मायावती (फाइल फोटो सौ. से सोशल मीडिया)
आपको याद होगा कि 2007 में उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव के दौरान बहुजन समाज पार्टी में सोशल इंजीनियरिंग के फार्मूले से अपने दम पर बहुमत हासिल करके पहली बार अकेले दम पर सरकार बनायी थी। ब्राह्मण के साथ दलित और मुस्लिम समीकरण से बहुजन समाज पार्टी पहली बार अपने दम पर सत्ता में आने वाली पार्टी बनी थी। लेकिन 2012 के विधानसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी ने सत्ता में वापसी की तो उसके बाद से बहुजन समाज पार्टी का जनाधार लगातार गिरता गया। 2014 में हुए लोकसभा के चुनाव में बहुजन समाज पार्टी ने 4.2% वोट जरूर हासिल किया, लेकिन लोकसभा में एक भी सीट हासिल नहीं कर पायी।
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उसके बाद बसपा ने राजनीतिक प्रयोग शुरू किए 2019 के चुनाव में समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन करके चुनाव लड़ा। इससे बहुजन समाज पार्टी को बहुत अधिक फायदा हुआ और उसने लोकसभा में 10 सीटों जीतीं, जबकि समाजवादी पार्टी को कोई खास फायदा नहीं हुआ और वह केवल 5 सीटों पर सिमट गई। इतना ही नहीं पार्टी के मुखिया की पत्नी डिंपल यादव कन्नौज से भी अपनी लोकसभा सीट हार गयीं। हालांकि बाद में डिंपल यादव को मुलायम सिंह यादव के निधन के बाद खाली हुई सीट से लोकसभा में भेजा गया।
वहीं 2022 के विधानसभा चुनाव में बहुजन समाज पार्टी ने अकेले चुनाव लड़ने का फैसला किया था, जिससे पार्टी को करारा झटका लगा था और पार्टी केवल एक सीट तक सिमट कर रह गई थी। बलिया जिले की रसड़ा सीट से पार्टी प्रत्याशी उमाशंकर सिंह ही चुनाव जीत कर अकेले विधानसभा में जाने में सफल रहे।
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बहुजन समाज पार्टी के लगातार घटते जा रहे वोट से यही संकेत मिल रहा है कि बसपा धीरे-धीरे जमीनी पकड़ खोती जा रही है। अगर पार्टी को चुनावों में अपनी शाख मजबूत करनी चाह रही है तो उसे अपनी चुनावी रणनीति बदलनी होगी। 2017 के विधानसभा चुनाव में बहुजन समाज पार्टी के पास 22% वोट शेयर था, लेकिन 5 साल बाद 2022 के चुनाव में यह केवल 13 फ़ीसदी रह गया। 2019 के लोकसभा चुनाव में बहुजन समाज पार्टी का वोट से को 6 फीसदी से ज्यादा का नुकसान हुआ था। लेकिन बहुजन समाज पार्टी के 10 सांसद सदन में पहुंचे थे।