
अरुंधति पानतावने
जयदीप रघुवंशी: ‘टैलेंट हो या न हो, मेहनत ही आपको चैम्पियन बनाएगी। हारना ठीक है, हार मानना नहीं।’ यह कहना है कभी देश का नाम बैडमिंटन कोर्ट पर रोशन करने वाली नागपुर की इंटरनेशनल खिलाड़ी अरुंधति पानतावने का, जो अब उसी खेल को नई ऊंचाई देने के लिए तैयार हैं। वह अब सिर्फ खिलाड़ी नहीं बल्कि सेंट्रल इंडिया की सबसे बड़ी बैडमिंटन अकादमी की हेड कोच हैं और मिशन है- ‘विदर्भ से ओलम्पिक खिलाड़ी तैयार करना।’
नवभारत की ओर से स्पोर्ट्स रिपोर्टर जयदीप रघुवंशी ने बेसा में एएबीए की नींव रखने वाली बैडमिंटन स्टार अरुंधति पानतावने से। इस दौरान उन्होंने अपने सफर संघर्ष और सपनों को लेकर खुलकर बात की। इसके अलावा उन्होंने बेहतर खिलाड़ियों को तैयार करने के लिए अपनाई जाने वाली प्रक्रिया के बारे में बात की और बताया कि कैसा बैडमिंटन के खेल में खिलाड़ी आगे बढ़ सकते हैं।
मैं स्पोर्ट्स फैमिली से हूं। मेरे माता-पिता एथलीट थे और मैं भी एथलेटिक्स कर रही थी। एक दिन अंडर-13 बैडमिंटन फाइनल और 100 मीटर दौड़- दोनों एक ही समय पर थे। तब मेरे माता-पिता ने फैसला किया कि मुझे बैडमिंटन खेलना चाहिए। वहीं से सफर शुरू हुआ जो जिला, राज्य, राष्ट्रीय और फिर अंतरराष्ट्रीय तक पहुंचा।
जब मैं 16 साल की थी तब मैंने गोपीचंद सर की अकादमी जॉइन की। वहां सिर्फ खेलना नहीं- खिलाड़ी को समझकर, सोचकर खेलना सीखा। सर ने मुझे में सिर्फ खिलाड़ी नहीं, कोच बनने के बीज भी वहीं बोए।
बैडमिंटन ने मुझे सबकुछ दिया- पहचान, उपलब्धियां, अनुभव। अब वही वापस देना चाहती हूं। नागपुर, विदर्भ और सेंट्रल इंडिया में ऐसी कोई जगह नहीं थी जहां इंटरनेशनल स्तर की ट्रेनिंग मिले, इसलिए मैंने सोचा क्यों हैदराबाद, बेंगलुरु या दिल्ली जाएं? खिलाड़ी यहीं तैयार होंगे।
हमारे पास 5 प्रोफेशनल कोच हैं- स्टेट चैम्पियन, इंटरनेशनल कोच, फिजियो, स्ट्रेंथ ट्रेनर। मेरे पति अरुण इंटरनेशनल प्लेयर होने के साथ इंटरनेशनल कोच भी हैं। ट्रेनिंग हर खिलाड़ी के अनुसार होती है। किसी को स्किल चाहिए, किसी को स्टेमिना और किसी को स्पीड। हमारा फोकस बच्चों की ताकत पहचानकर उन्हें उसी हिसाब से प्रशिक्षित करना है। अब देशभर से बच्चे सिर्फ बैडमिंटन सीखने नागपुर आ रहे हैं।
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बहुत। पहले गेम रैली बेस्ड था। अब अटैकिंग और तेज फुटवर्क जरूरी है। तकनीक, मानसिकता, टैक्टिक्स- सब बदल चुका है। कोचिंग भी अब हर दिन अपडेट होती है।
मैं साइना नेहवाल से बहुत सीखी हूं। उनकी हिम्मत और हार्डवर्क। वे कड़ी मेहनत करती थीं जिसकी बदौलत चैम्पियन बनने में कामयाब हुईं। सिंधु की आक्रामकता और मानसिक मजबूती भी अद्भुत है। उन्होंने दुनिया को बताया कि भारतीय खिलाड़ी सिर्फ भाग नहीं लेते, जीतते भी हैं।
आज सबको तुरंत रिजल्ट चाहिए होता है लेकिन खेल में धैर्य सबसे बड़ा हथियार होता है। माता-पिता ने बच्चों पर अनावश्यक दबाव नहीं डालना चाहिए। मेरा सौभाग्य था- मेरे पैरंट्स जीत-हार पर ध्यान नहीं देते थे, सिर्फ सपोर्ट करते थे।
बहुत है। कमी सिर्फ सही दिशा, ट्रेनिंग और अवसरों की थी- अब वह भी मिल रहा है। भविष्य में सेंट्रल इंडिया बैडमिंटन का बड़ा हब बनेगा। मेरा लक्ष्य है कि भारत को ओलंपिक मेडल दिलाना। वह भी नागपुर और विदर्भ के खिलाड़ियों से। ऐसा कोई एक नहीं कई खिलाड़ी ऐसा करेंगे। नये खिलाड़ियों के लिए एक सलाह ये भी है पैशन रखो, धैर्य रखो, मेहनत कभी मत रोको। ‘टैलेंट हो या न हो – मेहनत आपका चैम्पियन बाहर निकालकर ला ही लेगी। हारना ठीक है, हार मानना नहीं।’






