प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (डिजाइन फोटो)
नवभारत डिजिटल डेस्क: ट्रंप के टैरिफ टेरर के बीच प्रधानमंत्री अगर 7 साल बाद ‘शंघाई सहयोग संगठन’ शिखर सम्मेलन में चीन जाते हैं, तो उसके अनेक कूटनीतिक निहितार्थ निकलेंगे। 31 अगस्त से 1 सितंबर 2025 तक वे तिआनजिन में शंघाई सहयोग संगठन यानी एससीओ के शिखर सम्मेलन में हिस्सा लेंगे। भारतीय उत्पादों पर 50 फीसद तक टैरिफ बढ़ाने के और भविष्य में इसमें भी वृद्धि के अमेरिकी फैसले के बीच यह खबर की है।
पश्चिमी मीडिया इसे अमेरिकी असर को संतुलित करने का प्रयास बता रहा है, तो कुछ मानते हैं कि भारत, रूस और चीन ट्रंप के खिलाफ एक रणनीतिक जाल बुन रहे हैं, इसके बाद पुतिन का भारत दौरा आसन्न है। ब्रिक्स के तीन बड़े भागीदार भारत, रूस और चीन तीनों मिलकर डॉलर की हवा फुस्स कर सकते हैं। यह ट्रंप की टैरिफ टेरर का माकूल जबाव होगा।
यह यात्रा ट्रंप को दबाव में लाएगी, साफ हो जाएगा कि भारत की स्वतंत्र विदेशनीति, बहुपक्षीय सहयोग को बढ़ावा देने और अमेरिका जैसी किसी एक ताकत के आगे न झुकने की है। भारत का अमेरिका के अलावा चीन, रूस से भी दोस्ती बनाए रखना, अमेरिका को यह संदेश देता है कि भारत किसी एक सर्वशक्तिमान की बजाय बहुध्रुवीय विश्व चाहता है।
शंघाई कोऑपरेशन ऑर्गनाइजेशन 10 देशों से बना यूरेशियन सुरक्षा और राजनीतिक समूह है। इसमें चीन, रूस, ईरान, कजाकिस्तान, किर्गिस्तान, पाकिस्तान, ताजिकिस्तान, उज्बेकिस्तान और बेलारूस के साथ भारत भी शामिल है। इसकी 25वीं बैठक में क्षेत्रीय सुरक्षा, आतंकवाद और व्यापार जैसे मुद्दों पर चर्चा होगी, कुछ समझौते हो सकते हैं।
भारत-चीन रिश्तों में स्थिरता, संवाद बढ़ाने पर चर्चा के साथ यहां शी जिनपिंग और रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन से मोदी की अनौपचारिक मुलाकात भी संभव है। मोदी चीन और रूस के साथ एक त्रिपक्षीय बैठक के जरिए रूस की ताकत का इस्तेमाल कर चीन और भारत के बीच के रिश्ते सुधारने का प्रयास कर सकते हैं।
यह यात्रा भारत को क्षेत्रीय सुरक्षा, आतंकवाद और व्यापार सहयोग जैसे मुद्दों पर अपनी राय रखने का अवसर प्रदान करेगी। असल में यह चीन और भारत के बीच बातचीत और सहयोग का दौर शुरू करने का समय है। दुनिया की एक-तिहाई से ज्यादा आबादी रखने वाले दोनों देशों की अर्थव्यवस्थाएं अपना वैश्विक प्रभाव रखती हैं। इनके रिश्ते पूरी दुनिया के लिए अहम हैं। सीमाई विवाद और मतभेद अपनी जगह हैं।
इस साल जून से अब तक भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल, रक्षामंत्री राजनाथ सिंह और विदेश मंत्री एस। जयशंकर चीन की यात्रा कर चुके हैं। दोनों देशों ने सीमा विवाद को बाकी मामलों और रिश्तों में बाधा न बनने देने का वादा किया है।
इसी साल जून में दोनों ने ट्रेड और इकोनॉमिक्स के क्षेत्र में वार्ता पर सहमति जताई। दोनों पक्षों ने 2020 से निलंबित सीधी हवाई सेवाओं को फिर से शुरू करने की कोशिशें तेज करने के बारे में भी सहमति जताई है। प्रधानमंत्री मोदी की चीन यात्रा संपन्न होती है, तो यह संबंध सुधारने का एक अच्छा मौका होगा।
यह भी पढ़ें:- निशानेबाज: सलीम-जावेद के नाम पर दूर की कौड़ी, राहुल-शरद हैं जय-वीरू की जोड़ी
जून में रक्षामंत्री राजनाथ सिंह ने एससीओ रक्षामंत्रियों की बैठक की संयुक्त विज्ञप्ति पर हस्ताक्षर करने से इनकार कर दिया था। क्योंकि इसमें आतंकवाद से संबंधित चिंताओं का उल्लेख नहीं किया गया था। चीन का आतंकवाद और पाकिस्तान समर्थन का रिकार्ड निराशाजनक है। ऐसे में बेहतर होगा कि दोनों देश स्वीकारें कि वे एक-दूसरे के विकास के अवसर हैं, खतरा नहीं। वे प्रतियोगी नहीं बल्कि सहयोगी हैं।
अगर भारत इस यात्रा को अवसर मानकर चीन को अपनी नीतियों में बदलाव करने को सहमत करे और बाधाएं हटाने पर राजी करे, तो संबंधों में काफी प्रगति हो सकती है।
लेख- संजय श्रीवास्तव के द्वारा