ठाकरे बंधुओं की एकता से मविआ व महायुति पर क्या असर ! (सौजन्य: सोशल मीडिया)
नवभारत डिजिटल डेस्क: महाराष्ट्र में शीघ्र ही मुंबई, ठाणे, नाशिक, नागपुर महापालिकाओं तथा स्थानीय निकाय के चुनाव होने वाले हैं। इनमें राज ठाकरे की मनसे और उद्धव ठाकरे की शिवसेना की एकजुट राजनीतिक ताकत महाराष्ट्र विकास आघाड़ी व महायुति दोनों के लिए चुनौतीपूर्ण हो सकती है। दोनों ठाकरे भाइयों ने एकत्र शिवसेना की बात कही है। ऐसे में महाराष्ट्र की जनता फिर एक बार तय करेगी कि असली शिवसेना व नकली शिवसेना किसे माने! शिवसेना महाराष्ट्र विकास आघाड़ी के साथ बनी रहेगी या अकेले रहने का विचार करेगी? क्या शिवसेना (उद्धव) कांग्रेस और राकांपा का साथ छोड़ देगी? इसी तरह राष्ट्रीय स्तर पर इंडिया गठबंधन में शिवसेना बनी रहेगी या बाहर आएगी, यह भी एक प्रश्न है।
फिलहाल दोनों पार्टियों के नेता, कार्यकर्ता और सामान्य शिवसैनिक उद्धव-राज मनोमिलन का स्वागत कर रहे हैं। एक समय वह भी था जब पूर्व मुख्यमंत्री व लोकसभा स्पीकर रह चुके स्व. मनोहर जोशी ने उद्धव ठाकरे को राज से तालमेल कर शिवसेना को एकजुट रखने की बिनमांगी सलाह दी थी तब उन्हें उद्धव ने कड़ी फटकार सुनाई थी। दोनों ठाकरे निकट आने से शिवसेना (एकनाथ शिंदे) पर विपरीत परिणाम हो सकता है। शिंदे ने ‘जय गुजरात’ का नारा लगाकर केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह को खुश किया। वैसे भी वह बीजेपी की कृपा से डिप्टी सीएम पद पर बने हुए हैं। ठाकरे भाइयों के बीच इस तरह का मनोमिलन बृहन्मुंबई महापालिका चुनाव में सफलता मिलने पर और भी प्रगाढ़ हो जाएगा लेकिन यदि परिणाम अनुकूल न हुए तो क्या यह संबंध इसी तरह टिके रहेंगे? क्या आपसी तालमेल के बाद तेजतर्रार नेता राज ठाकरे का वर्चस्व बढ़ जाएगा?
राज्य की जनता मानती है कि इस तालमेल की वजह से ठाकरे बैंड का विशिष्ट प्रभाव और भी मजबूत होगा जिसका पूरा प्रयास होगा कि भावनात्मक आधार पर महाराष्ट्र की सत्ता हासिल की जाए। बात सिर्फ शिवसेना और मनसे के निकट आने की नहीं है, राजनीति में किसी लक्ष्य पाने या स्वार्थ पूरा करने के लिए विपरीत विचारधारा वाले भी साथ आते देखे गए हैं। आज संविधान की प्रिएम्बल से समाजवाद शब्द हटाने की मांग करनेवालों ने समाजवादियों से ही तालमेल कर जनता पार्टी बनाई थी। फिलहाल मराठी जनभावना यह है कि दोनों ठाकरे बंधु एकजुट रहकर मराठी माणुस और महाराष्ट्र की अस्मिता व गौरव के लिए लड़ें। अब महाराष्ट्रवासी देखना चाहेंगे कि एनसीपी के दोनों धड़ों के बीच भी क्या ऐसा आपसी तालमेल हो सकता है? वास्तविकता यह है कि पूरे भरोसे के साथ मनभेद को मिटाकर एकत्र चलना तार की कसरत के समान चुनौती है। क्या इसमें कामयाबी मिल पाएगी?
लेख- चंद्रमोहन द्विवेदी के द्वारा