मंत्री के लापता होने से खलबली (सौ. डिजाइन फोटो)
नवभारत डिजिटल डेस्क: पड़ोसी ने हमसे कहा, ‘निशानेबाज, यदि कोई केंद्रीय मंत्री अचानक गायब हो जाए तो खलबली मचना स्वाभाविक है।तरह-तरह की आशंकाएं उत्पन्न होने लगती हैं कि कहीं मंत्री का अपहरण तो नहीं हो गया या वह किसी हादसे के शिकार तो नहीं हुए।केंद्र सरकार के आदिवासी मामलों के मंत्री जुएल उरांव के साथ कुछ ऐसा हुआ कि सभी सकते में आ गए।मंत्री का सहसा लापता होना दुर्लभ से भी दुर्लभ मामला है.’ हमने कहा, ‘इसमें अचरज की क्या बात! चुनाव के समय जनता से लुभावने वादे करनेवाले नेता बाद में गधे के सींग की तरह लापता हो जाते हैं।
उनकी इस लुकाछिपी से मतदाता अच्छी तरह अवगत हैं.’ पड़ोसी ने कहा, ‘निशानेबाज, समस्या और संकट की गंभीरता को समझिए।मंत्री महोदय चाहते तो जहाज या एसी कार से प्रवास कर सकते थे लेकिन वह दिल्ली से जबलपुर जाने के लिए गोंडवाना एक्सप्रेस से रवाना हुए।रेलवे और सिक्योरिटी स्टाफ ने देखा कि बर्थ खाली पड़ी थी और मंत्री नदारद थे।उनकी व्यापक स्तर पर खोजबीन शुरू की गई।3 घंटे तक भारी सनसनी रही।आखिर मंत्री दमोह से 142 कि.मी।दूर सिहोरा रोड स्टेशन पर पाए गए।उनके शरीर पर खरोचें थीं और हाथ-पैर में चोटें आई थीं।वे सुबह पौन चार बजे दमोह स्टेशन पर उतरे थे।
ट्रेन चलने लगी तो उसमें चढ़ने की कोशिश करते समय उनका पैर फिसल गया।बाद में दूसरे प्लेटफार्म पर आई संपर्कक्रांति एक्सप्रेस में जैसे-तैसे बैठ गए।उन्हें सिहोरा में फर्स्ट एड देकर जबलपुर लाया गया.’ हमने कहा, ‘इतनी कथा सुनाने की क्या जरूरत थी? मंत्री के साथ सिर्फ पीए ही नहीं बॉडीगार्ड भी रहने चाहिए।उन्हें यात्रा के बीच में कहीं भी उतरने नहीं देना चाहिए।नीचे उतरने का मिसएडवेंचर मंत्री को महंगा पड़ा।
जब स्टीम इंजन वाली ट्रेन थीं तो धीरे से छूटती थीं।अब इले्ट्रिरक ट्रेन तुरंत स्पीड पकड़ लेती है।मंत्री को समझना चाहिए कि वह वीआईपी है और वीआईपी को सामान्य यात्री जैसी हरकत नहीं करनी चाहिए।उन्हें सिक्योरिटी का कैदी बनकर रहना चाहिए।मंत्री की जान लोकतंत्र की अमानत है।उन्हें स्वयं की सुरक्षा का महत्व समझना चाहिए।
लेख- चंद्रमोहन द्विवेदी के द्वारा