पड़ोसी ने हमसे कहा, ‘‘निशानेबाज, हमें बताइए कि बड़े नेताओं के क्या लक्षण रहते हैं? उनमें बड़ा होने का बड़प्पन किस तरह आता है? क्या वे रोज दहीबड़ा खाते हैं या कोई बहुत बड़ा काम कर जाते हैं?’’ हमने कहा, ‘‘बड़ों की बात बड़ी है. उनके मिजाज को समझना आसान नहीं है. जिस तरह गाड़ी के अगाड़ी और घोड़े के पिछाड़ी खड़े रहना खतरे से खाली नहीं है, वही बात बड़ों पर भी लागू होती है. उनसे ज्यादा चिपकने पर कब दुलत्ती मार देंगे, पता नहीं! वैसे भी बड़ों के बारे में संतों की राय अच्छी नहीं है. वे कहते हैं- बड़ा हुआ तो क्या हुआ जैसे पेड़ खजूर, पंछी को छाया नहीं, फल लागे अति दूर!’’
पड़ोसी ने कहा,‘‘निशानेबाज, हम बात कर रहे हैं उन बड़े नेताओं की जो पहले तो कानून को ताक पर रखकर अनाप-शनाप तरीके से करोड़ों रुपए कमाते हैं और ईडी के शिकंजे में गर्दन फंसती है तो उनकी नौटंकी शुरू हो जाती है. जैसे ही वे घपले-घोटाले, भ्रष्टाचार के आरोप में पकड़े जाते हैं, तुरंत बीमार होकर अस्पताल पहुंच जाते हैं. पुलिसवाले या जेल अधिकारी भी सोचते हैं कि क्यों व्यर्थ का जोखिम उठाएं, कहीं यह नेता सचमुच बीमार हुआ तो अपने लिए मुसीबत खड़ी हो जाएगी. इसलिए बला टालो, जाने दो अस्पताल! कुछ अफसर सोचते हैं कि कब तक यह बड़ा नेता बहानेबाजी करेगा! कभी तो ऊंट आएगा पहाड़ के नीचे!’’
हमने कहा, ‘‘दिल खोलकर भ्रष्टाचार करने वाले नेता का दिल उस समय जोरों से धड़कने लगता है जब पुलिस उसे हिरासत में लेती है. पुलिस भी समझ जाती है कि हैसियतदार आदमी है, तुरंत अस्पताल जाएगा. कानून तोड़ते समय वह बिल्कुल स्वस्थ, तंदुरुस्त, हेल एंड हार्टी रहता लेकिन पकड़े जाने पर वह चक्कर आने, हार्ट में दर्द होने, बीपी डाउन होने की शिकायतें करने लगता है. पुलिस को नेता की आंखों में फरेब नजर आता है लेकिन उसे फौरन एम्बुलेंस से उसकी पसंद के डॉक्टर या अस्पताल के पास भेज दिया जाता है. जब तक नेता अस्पताल में है, तब तक पुलिस उसका कुछ नहीं कर सकती. नेता पुलिस या ईडी के अधिकारियों का क्रूर चेहरा देखने की बजाय किसी हसीन नर्स का सुंदर मुखड़ा देखना पसंद करता है.’’
पड़ोसी ने कहा, ‘‘निशानेबाज, किसी घाघ या मोटी चमड़ीवाले नेता की नब्ज टटोलना मामूली बात नहीं है. उसका इलाज तो कोर्ट ही कर सकता है.’’