सुप्रीम कोर्ट (डिजाइन फोटो)
सुप्रीम कोर्ट ने न्यायाधीशों को सतर्क करते हुए कहा कि वह जागृत रहकर संयम बरतें। वह महिलाओं या कुछ समुदायों के खिलाफ पूर्वाग्रह युक्त टिप्पणी न करें। सुप्रीम कोर्ट ने कर्नाटक हाईकोट के जज वी. श्रीशानंद की टिप्पणियों का स्वत: संज्ञान लिया जिन्होंने एक केस की सुनवाई के दौरान बंगलुरु की एक बस्ती को पाकिस्तान कहा था और एक महिला वकील से महिलाओं के सिलसिले में आपत्तिजनक बात कही थी।
भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़, न्यायाधीश संजीव खन्ना, न्यायाधीश बीआर गवई, न्यायाधीश सूर्यकांत और ऋषिकेश रॉय की खंडपीठ ने श्रीशानंद को तगड़ी फटकार लगाते हुए कहा, हमने आपके अवलोकनों की प्रवृत्ति को देखा है। कोई भी भारत के किसी भी भाग को पाकिस्तान नहीं कह सकता। यह बुनियादी तौरपर राष्ट्र की क्षेत्रीय अखंडता के विपरीत है। और उन्हें न्यायपालिका के संस्थागत सम्मान की खातिर ही नोटिस नहीं दिया जा रहा है।
सुप्रीम कोर्ट ने श्रीशानंद को अतिरिक्त शर्मिंदगी से इसलिए बख्श दिया क्योंकि उन्होंने खुली अदालत में माफ़ी मांग ली थी। हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने स्वत: संज्ञान की इस कार्यवाही को बंद कर दिया है। जरूरत है कि न्यायाधीश तोल मोलकर बोलें बल्कि वकील व याचिकाकर्ता भी अपनी जबान पर काबू रखें क्योंकि अब लाइव स्ट्रीमिंग व वीडियो कांफ्रेंस की सुविधाएं अदालती प्रक्रियाओं को अदालत के बाहर भी लाखों लोगों तक ले जाती हैं।
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यही कारण है कि श्रीशानंद की दो वीडियो क्लिप सोशल मीडिया पर वायरल हुईं। आजकल तो राजनीतिक व चुनावी सभाओं में बड़े बड़े नेता विभिन्न समुदायों व जातियों के विरुद्ध ऐसे अपमानजनक शब्दों का प्रयोग करते हैं कि अदालतें अगर उनका संज्ञान लेने लगें तो आधे से ज्यादा नेता जेल में सलाखों के पीछे हों। टीवी डिबेट्स का तो इससे भी बुरा हाल है कि बात गालियों व हाथापाई तक पहुंचने लगी है।
दिल्ली की सीमा पर धरना दे रहे किसानों के बारे में टीवी एंकरों ने क्या कुछ नहीं कहा था। यौन उत्पीड़न की पीड़ित महिलाओं के बारे में तो मंत्रियों से लेकर जज तक बकवास कर चुके हैं। कोलकाता हाईकोर्ट के एक न्यायाधीश ने तो बलात्कार पीड़ित एक किशोरी से अपनी जवानी काबू में रखने को कहा। लोकसभा में एक सांसद ने दूसरे सांसद को आतंकी कहते हुए धमकी दी थी।
ऐसा प्रतीत होता है कि आपत्तिजनक व अपमानजनक बातों के प्रति हमारा दृष्टिकोण सब चलता है वाला हो गया है। यह सभ्य समाज के लिए अच्छी खबर नहीं है। यह दीमक है। अगर इलाज न किया तो समाज अंदर ही अंदर खोखला होता चला जायेगा। कर्नाटक हाईकोर्ट के न्यायाधीश की टिप्पणियां गैर-जरूरी ही नहीं बल्कि भावनाओं को आहत करने वाली भी थीं।
यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि सुप्रीम कोर्ट को हाईकोट्र्स के न्यायाधीशों को शिष्टाचार की यह बुनियादी बातें समझनी पड़ रही है। भारत के मुख्य न्यायाधीश ने अदालती प्रक्रियाओं की लाइव स्ट्रीमिंग व रिकॉर्डिंग का जो स्वागतयोग्य कदम उठाया है, उसकी वजह से अदालतों की सच्चाई अब सामने आने लगी है। सुप्रीम कोर्ट का मानना है कि इलेक्ट्रॉनिक युग की मांगें भविष्य में दोनों बार व बेंच को उचित व्यवहार के लिए मजबूर कर देंगी।
लेख- चंद्रमोहन द्विवेदी द्वारा