सिद्धारमैया (डिजाइन फोटो)
कर्नाटक के कांग्रेसी मुख्यमंत्री सिद्धारमैया को उस समय करारा झटका लगा जब उनके खिलाफ भूमि आवंटन मामले में राज्यपाल थावरचंद गहलोत द्वारा दी गई जांच की मंजूरी को कर्नाटक हाईकोर्ट ने सही ठहराया। शिकायतों के अनुसार मुख्यमंत्री ने मनमाने तौर पर अपनी पत्नी पार्वती को मैसूर अर्बन डेवलपमेंट अथारिटी (एमयूडीए) के पॉश एरिया में 14 भूखंड आवंटित किए थे। इन भूखंडों की कीमत अधिगृहीत की गई जमीन के दाम की तुलना में काफी अधिक थी।
कर्नाटक हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति एम नागप्रसन्ना ने सिद्धारमैया की चुनौती वाली याचिका ठुकरा दी और कहा कि तथ्यों की निस्संदेह जांच की आवश्यकता है क्योंकि भूमि आवंटन का लाभार्थी कोई बाहरी व्यक्ति नहीं बल्कि याचिकाकर्ता (मुख्यमंत्री) का ही परिवार है। उल्लेखनीय है कि गत 16 अगस्त को राज्यपाल ने पुलिस को अनुमति दी थी कि वह एमयूडीए घोटाले में मुख्यमंत्री की भूमिका की जांच करे।
इस संबंध में 3 भ्रष्टाचार विरोधी कार्यकर्ताओं-टीजे अब्राहम, स्नेहमयी कृष्णा और प्रदीप कुमार ने शिकायत दर्ज की थी। हाईकोर्ट ने कहा कि कोई व्यक्ति निजी तौर पर भ्रष्टाचार विरोधी कानून के तहत किसी लोकसेवक के खिलाफ शिकायत दर्ज करने का अधिकार रखता है। सिद्धारमैया ने राज्यपाल के आदेश को 3 मुद्दों के आधार पर चुनौती दी थी।
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पहला तर्क था कि क्या किसी व्यक्ति द्वारा निजी तौर पर की गई शिकायत पर जांच की अनुमति दी जा सकती है? भ्रष्टाचार विरोधी कानून (पीसीए) की धारा 17ए स्पष्ट रूप से कहती है कि पुलिस चाहे तो जांच की अनुमति मांग सकती है। दूसरी बात यह कि जब भूमि अधिग्रहण हुआ था तब सिद्धारमैया विपक्षी पार्टी के विधायक थे।
तीसरी दलील यह थी कि राज्यपाल ने मंत्रिमंडल की सलाह का उल्लंघन करते हुए मुख्यमंत्री के खिलाफ जांच का आदेश दिया। हाईकोर्ट ने कहा कि यह घोटाला मैसूर की 3।16 एकड़ जमीन को लेकर है। सिद्धारमैया के सत्तापक्ष में रहते समय 2004 में उनके साले ने भूमि हासिल की और कृषि की जमीन को आवासीय बनाने की अनुमति ली।
पार्वती के आवेदन के बाद 2015 में मुआवजे का नियम बदला गया और उसकी रकम बढ़ा दी गई। पार्वती को नियमानुसार 4800 वर्ग फुट की जमीन दी जानी थी लेकिन इसकी बजाय 38,284 वर्ग फुट जमीन दी गई जिसकी कीमत 55।8 करोड़ थी। सिद्धारमैया और पार्वती का बेटा यतीन्द्र उस समय एमयूडीए का सदस्य था तब 2017 में मैसूर शहर में 14 स्थानों का मुआवजा पार्वती के लिए तय किया गया।
अदालत ने कहा कि यदि कहीं पक्षपात की संभावना नजर आती है तो अपवादात्मक परिस्थितियों में राज्यपाल स्वतंत्र रूप से जांच का आदेश दे सकते हैं। कर्नाटक हाईकोर्ट ने इस संबंध में मध्यप्रदेश पुलिस प्रतिष्ठान विरुद्ध मध्यप्रदेश सरकार वाले मामले में सुप्रीम कोर्ट के 2004 के फैसले की मिसाल का भी उल्लेख किया।
लेख- चंद्रमोहन द्विवेदी द्वारा