विपक्ष बार-बार आरोप लगाता रहा है कि बेरोजगारी और महंगाई जैसे मुद्दों पर सरकार के शीर्ष नेता मौन साधे रहते हैं। उनके पास इन समस्याओं को लेकर कोई जवाब ही नहीं है। बड़े पैमाने पर नौकरी-रोजगार देने का वादा वह पूरा नहीं कर पाए। अब स्वयं केंद्र सरकार के सांख्यिकी एवं कार्यक्रम क्रियान्वयन मंत्रालय ने बेरोजगारी जैसे संवेदनशील विषय पर रिपोर्ट जारी की है। इस रिपोर्ट में स्वीकार किया गया है कि इस वर्ष जनवरी से मार्च की तिमाही तक ओवरऑल बेरोजगारी दर बढ़ गई। 15 से 29 वर्ष की उम्र के लोगों की बेरोजगारी दर जनवरी से मार्च 2024 के बीच 17 प्रतिशत थी। यह पिछली तिमाही के 16।5 प्रतिशत से ज्यादा है। पीरियॉडिक लेबर फोर्स सर्वे नामक इस रिपोर्ट के मुताबिक कोरोना महामारी के बाद से पर्याप्त नौकरी नहीं मिल रही है तथा 15 से 29 साल की उम्र वालों के बीच बेरोजगारी की दर लगातार शीर्ष पर बनी हुई है।
केरल में सर्वाधिक बेकारी
केंद्र सरकार के सर्वे के अनुसार केरल में सर्वाधिक 31।8 फीसदी युवा बेरोजगार हैं। इसके बाद जम्मू-कश्मीर 28।2%, तेलंगाना 26।1%, राजस्थान 24।0% तथा ओडिशा 23।3% का नंबर आता है। ये 5 राज्य बेरोजगारी में टॉप पोजीशन पर हैं। आश्चर्य की बात है कि इस सूची में बिहार का नाम नहीं है जहां उद्योग-धंधे की भारी कमी है। बिहार के लोग देश के किसी भी हिस्से में मजदूरी करने चले जाते हैं। कश्मीर, लेह-लद्दाख से लेकर कन्याकुमारी तक बिहारी मजदूर सड़क बनाने या चना-मुरमुरा बेचते दिख जाएंगे।
महिला बेरोजगारी भी अधिक
जो महिलाएं काम करने की इच्छुक हैं, उनकी बेरोजगारी दर सबसे ज्यादा है। यह राज्यवार इस प्रकार है- जम्मू-कश्मीर 48.6%, केरल 46.6%, उत्तराखंड 39.4%, तेलंगाना 38.4%, हिमाचल प्रदेश 35.9 प्रतिशत। दिल्ली, गुजरात, हरियाणा, कर्नाटक व मध्यप्रदेश में सबसे कम बेरोजगारी बताई गई। दिल्ली में सिर्फ 3.1 प्रतिशत बेरोजगार हैं।
रोजगारोन्मुख पाठ्यक्रम हो
हर किसी को नौकरी देना सरकार के लिए संभव नहीं है। देश की आबादी तेजी से बढ़ रही है और उसमें युवाओं की काफी बड़ी तादाद है। यद्यपि सड़कें, पुल जैसे निर्माण कार्य में लोगों को मजदूरी मिल जाती है लेकिन सफेदपोश नौकरियां काफी कम हैं। उद्योगों को अपनी आवश्यकता के अनुसार कुशल कामगार मिल नहीं पाते। इसके लिए रोजगारोन्मुख पाठ्यक्रम बढ़ाने की आवश्यकता है। ऐसे कोर्स उद्योगों से परामर्श कर उनकी जरूरत के मुताबिक डिजाइन किए जाएं। उद्योगों को थ्योरी से नहीं, प्रैक्टिकल ट्रेनिंग और कामकाज से मतलब है। उद्योगों में अनुभव मांगा जाता है लेकिन जब काम ही नहीं मिलता तो युवक को अनुभव हासिल होगा कैसे? इसलिए उद्योगों को अपने यहां युवाओं को एप्रेंटिस रखकर प्रशिक्षण देना चाहिए। जो नौकरी पाने के लिए गंभीर होगा, वह अवश्य ही मेहनत करके तकनीकी कामकाज सीख लेगा। स्टार्ट अप या स्वरोजगार के लिए भी उद्यमी सामने आ रहे हैं। नोटबंदी के दौर में जो लघु और मध्यम उद्योग बंद हो गए थे, उन्हें पुनर्जीवित किया जा सकता है। बेरोजगार महिलाएं सहकारिता या अल्प बचत गट के जरिए रोजगार सृजन कर सकती हैं।