जीवनशैली से सियासी अखाड़े तक सोशल मीडिया (सौ. डिजाइन फोटो)
नवभारत डिजिटल डेस्क: गुजरे पखवाड़े पूरी दुनिया ने जलते हुए नेपाल के लोमहर्षक दृश्य देखे जिन्होंने सोशल मीडिया के अखाड़े से निकलकर पूरी दुनिया को दहला दिया है। नेपाल में 8 सितंबर को जेन जी आंदोलन इतने वेग के साथ शुरू हुआ था कि अरब प्रिंग की याद दिला रहा था। मगर महज 24 घंटे गुजरते यह आंदोलन भयावह दुःस्वप्न बन जाएगा इसकी कल्पना किसी ने भी नहीं की थी।
8 नेपाली युवकों की नेपाल पुलिस की गोली से हत्या के बाद यह जेन जी आंदोलन इस कदर भड़का कि देखते ही देखते नेपाल की संसद, नेपाल का सुप्रीम कोर्ट और नेपाल का सेक्रेटियट यानी समूची कार्यपालिका और न्यायपालिका जलकर राख हो गई। सिर्फ इतना ही नहीं किसी भी मिनिस्ट्री में कोई भी रिकॉर्ड साबुत नहीं बचा, सब जल गए। सिर्फ काठमांडू तक ही यह आगजनी सीमित नहीं रही बल्कि देखते ही देखते पूरे देश में 23 अदालतों सहित हजारों औद्योगिक और व्यावसायिक प्रतिष्ठानों को भी फूंक डाला गया। नेपाल में जितने भी शहर हैं, सबकी नगरपालिकाएं जला दी गईं। सबके प्रशासनिक दफ्तर जलकर राख हो गए। दुनिया के किसी लोकतांत्रिक देश में ऐसा भयावह आंदोलन नहीं देखा गया था।
सोशल मीडिया के मंच से स्वतःस्फूर्त ढंग से परवान चढ़े राजनीतिक आंदोलन ने महज 36 घंटे की अपनी उन्मादी विनाशलीला से जितना नुकसान किया है, शायद आज तक की प्राकृतिक आपदाओं ने भी नेपाल का उतना ज्यादा नुकसान किया हो। नेपाल में पहले से ही उद्योग धंधों, कारोबार और उद्योगपतियों की भारी कमी है, उस पर नेपाल के एकमात्र अरबपति इंडस्ट्रलिस्ट विनोद चौधरी के सारे साम्राज्य को आग के हवाले कर दिया गया, जबकि चौधरी के विभिन्न उद्योगों-संस्थानों में 54 हजार नेपालियों को सीधे नौकरी मिली हुई थी और लाखों को अप्रत्यक्ष तरीके से रोजगार का साधन प्राप्त था।
नेपाल में करीब 30 फीसदी से ज्यादा बड़े और मझोले होटलों को भी जला दिया गया। नेपाल का सेक्रेटियट ‘सिंह दरबार’ जो कि हैरिटेज संस्थान में आता है, वह भी जलकर राख हो गया। अब जबकि आग शांत हुई है, अंतरिम प्रधानमंत्री के रूप में पूर्व चीफ जस्टिस सुशीला कार्की ने बागडोर संभाली है, तो इस बात की जांच होनी चाहिए कि आखिर क्यों सारे दस्तावेजों को आग के हवाले किया गया? शुरुआती आकलन के मुताबिक करीब 30 अरब डॉलर की संपत्ति को स्वाहा करके किसको फायदा हुआ?
ये भी पढ़ें– नवभारत विशेष के लेख पढ़ने के लिए क्लिक करें
जिस करप्शन के खिलाफ पूरे देश के युवाओं का स्वतः फूटा विस्फोटक गुस्सा है, आखिर उन युवाओं के इस आंदोलन को करप्शन के सारे दस्तावेज जलाकर राख कर देने से क्या मिलेगा? कहीं ये उन्हीं पारंपरिक पार्टियों की ही साजिश तो नहीं है, जेन जी जिनके विरुद्ध सड़कों पर उतरे थे और जिन्हें दौड़ा-दौड़ाकर सार्वजनिक जगहों, उनके घरों में और गली-मुहल्लों तक में पीटा गया है? कहीं मौके की नजाकत देखकर पारंपरिक राजनीतिक पार्टियों ने ही तो अपने करप्शन को छुपाने के लिए जेन जी लोगों के कंधे पर बंदूक रखकर यह तबाही का मंजर नहीं खड़ा किया? इस भयावह आगजनी के 24 घंटे बाद से ही लगातार जेन जी युवा बार-बार इनकार कर रहे हैं कि उन्होंने नेपाल की महत्वपूर्ण संपत्तियों को आग के हवाले किया।
सोशल मीडिया जो कि कभी लाइफस्टाइल मंच हुआ करता था, किस तरह धीरे-धीरे पिछले डेढ़ दशकों में राजनीतिक अखाड़े में तब्दील हुआ है। 2022 में श्रीलंका के आर्थिक संकट के दौरान सोशल मीडिया के जरिए लोगों की भावनाएं भड़ककर शोलों में तब्दील हो गई और देखते ही देखते राष्ट्रपति गोटाबाया राजपक्षे को अपना महल छोड़कर भागने को मजबूर होना पड़ा। याद करें ‘मी टू’ आंदोलन जब ‘हैश टैग मी टू’ के अभियान से पूरा हॉलीवुड नहीं, बल्कि पूरी दुनिया का मनोरंजन उद्योग हिल गया था।
लेख: लोकमित्र गौतम के द्वारा