(डिजाइन फोटो)
बांग्लादेश में जनअसंतोष का ज्वालामुखी बगावत के रूप में फूटा और उसका गर्म लावा अवामी लीग सरकार को बहा ले गया। लोकतंत्र की आड़ में हिटलरशाही चला रही प्रधानमंत्री शेख हसीना को जनता ने आनन फानन में देश छोड़कर भागने पर मजबूर कर दिया। महंगाई, बेरोजगारी, छात्र असंतोष के मुद्दों की लगातार अनदेखी हसीना को बहुत महंगी पड़ी। उन्हें भ्रम था कि वह बहुत लोकप्रिय हैं लेकिन उनके सारे कदम निरंकुश तानाशाह के थे।
बांग्लादेश मुक्ति आंदोलन से जुड़े लोगों की तीसरी पीढ़ी तक को शिक्षा व नौकरियों में 30 प्रतिशत आरक्षण देना ऐसा कदम था जिसके विरोध में छात्र आंदोलन सुलग पड़ा। हसीना को यह होश नहीं आया कि जनाक्रोश का गोली से जवाब नहीं दिया जा सकता। दुनिया के तमाम देशों के लिए यह सबक है कि जिसने लोकतंत्र को कुचला उसे जनता ने उखाड़ फेंका। गुस्से का सैलाब फूटने से पहले ही स्थिति को संभाल लेना चाहिए।
शेख हसीना ने खालिदा जिया के नेतृत्ववाली विपक्षी बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (बीएनपी) तथा अन्य दलों के चुनाव लड़ने पर प्रतिबंध लगा दिया था। आम चुनाव में केवल हसीना की पार्टी आवामी लीग खड़ी थी। इस तरह चुनाव का नाटक कर उन्होंने सत्ता पर कब्जा जमाए रखा था। 1971 के बांग्लादेश मुक्ति संग्राम के लोगों व उनके वंशजों को अधिकतम आरक्षण देना ऐसा मनमाना कदम था जिसके खिलाफ न केवल छात्र आंदोलन बल्कि जनता का गुस्सा भी भड़क उठा था। प्रदर्शन को पुलिस और फौज के जरिए कुचलना आग में घी डालने के समान था। हिंसा बेकाबू हो उठी थी। नाराज भीड़ ने शेख हसीना की पार्टी के अनेक कार्यकर्ताओं की पीट-पीटकर जान ले ली।
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बांग्लादेश का इतिहास शुरू से ही रक्तरंजित रहा है। पहले के समान इस बार भी वहां तख्ता पलट हुआ। 15 अगस्त 1975 को बंगबंधु कहलानेवाले शेख मुजीबुर्रहमान सैनिक जुंटा की बगावत में परिवार सहित मारे गए थे। तब उनकी बेटी हसीना इंग्लैंड में रहने की वजह से बच गई थीं। अब फिर 49 वर्ष बाद अगस्त माह में बगावत हुई और बड़े पैमाने पर हिंसा व सेना की चेतावनी के बीच प्रधानमंत्री शेख हसीना को बांग्लादेश छोड़कर भागना पड़ा। हसीना की सरकार पलटने में जनविद्रोह के अलावा पाकिस्तान और चीन की भूमिका से भी इनकार नहीं किया जा सकता।
पड़ोस के देशों में अफरातफरी मचना भारत के लिए भी चिंता का विषय रहा है। 2022 में श्रीलंका में भी वहां की गोटाबाया राजपक्षे की सरकार के खिलाफ विद्रोह भड़क उठा था और भारी अस्थिरता फैल गई थी। आर्थिक बदहाली और जीवनावश्यक वस्तुओं के अभाव से क्षुब्ध जनता ने उग्र आंदोलन किया था। तब उग्र भीड़ ने प्रधानमंत्री निवास तथा अन्य मंत्रियों के घरों में आग लगा दी थी और पीएम महिंदा राजपक्षे को कोलंबो छोड़ने के लिए मजबूर होना पड़ा था।
कूटनीति का तकाजा है कि ऐसी स्थिति में एक का पक्ष लेकर दूसरे की नाराजगी मोल लेना कदापि उचित नहीं है। किसी देश में सत्ता बदल वहां का आंतरिक मामला है। पड़ोसी देश में सरकार बदलती है तो उससे भी संबंध अच्छे रखने होंगे। बांग्लादेश की अस्थिरता और विस्फोटक हालत देखते हुए भारत को फिलहाल ‘देखो और प्रतीक्षा करो’ की नीति अपनानी होगी। वहां पहले खालिदा जिया के नेतृत्व में बीएनपी की सरकार थी। कुछ वर्षों तक जनरल इरशाद की तानाशाही हुकूमत रही। पड़ोसी देशों की अस्थिरता भारत के लिए भी अनेक समस्याएं पैदा कर देती है। लेक चंद्रमोहन द्विवेदी द्वारा