सुरक्षा परिषद में स्थायी सीट का भारत हकदार (सौ. सोशल मीडिया)
नवभारत डिजिटल डेस्क: रूस, अमेरिका, फ्रांस, जर्मनी, जापान, ब्राजील और अफ्रीकन यूनियन के बाद ब्रिटेन भी इस बात से सहमत है कि भारत को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद का स्थायी सदस्य बनाया जाए।आबादी के लिहाज से विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र का यह स्वाभाविक अधिकार है लेकिन भारत के दावे का समर्थन करने के बजाय चीन हमेशा से उसकी राह में अड़ंगा डालता रहा है।उसके वीटो (निषेधाधिकार) की वजह से भारत अपने हक से वंचित रहा है।जब 1945 में लीग आफ नेशन्स विफल हो गई तब उसके स्थान पर संयुक्त राष्ट्र बनाना तय किया गया।उसकी सुरक्षा परिषद का 1948 से वही ढांचा चला आ रहा है जिसमें 5 स्थायी और 6 अस्थायी सदस्य रहते हैं।
अमेरिका, रूस, ब्रिटेन, फ्रांस और चीन स्थायी सदस्य हैं।इन सभी के पास वीटो का अधिकार है।इनमें से एक भी देश मना कर दे तो कोई प्रस्ताव पास नहीं हो पाता।भारत ने अपना हक छोड़ कर जरूरत से ज्यादा उदारता दिखाते हुए प्रस्ताव पारित करवा कर चीन को यूएन सिक्योरिटी काउंसिल की स्थायी सदस्यता दिलवाई थी।तब उम्मीद थी कि चीन इस उपकार को मानते हुए भारत से मित्रता व सहयोग निभाएगा।ऐसा नहीं हुआ।चीन ने पहले तिब्बत हड़पा और फिर 1962 में पंचशील समझौते की धज्जियां उड़ाते हुए भारत पर हमला किया था।सुरक्षा परिषद में चीन हमेशा पाकिस्तान का पक्ष लेता है और भारत के खिलाफ जाता है।सुरक्षा परिषद का विस्तार और स्थायी सदस्यों की संख्या में वृद्धि समय की मांग है।यूएन को गठित हुए 75 वर्ष से ज्यादा समय बीत चुका है इसलिए उसमें ढांचागत परिवर्तन होना ही चाहिए।भारत हमेशा से शांतिपूर्ण सहयोग और सभी के साथ मैत्री के पक्ष में रहा है।
वह यूएन के व्यापक उद्देश्यों से समरसता रखता है।यूएन के शांति मिशन में भारत ने हमेशा सहयोग देते हुए युद्ध क्षेत्रों में शांति सेना भेजी।पिछले दशकों में कांगो से लेकर गाजापट्टी तक में भारत की सेना ने जाकर यूएन के झंडे तले शांति स्थापना, मानवीय सहायता व पुनर्वास का काम किया।अब मुंबई में प्रधानमंत्री मोदी के साथ शिखर वार्ता में ब्रिटेन के पीएम कीव स्टार्मर ने वैश्विक मामलों में भारत की बढ़ती भूमिका का उल्लेख करते हुए उसकी सुरक्षा परिषद में स्थायी सदस्यता का पुरजोर समर्थन किया।जिन अंग्रेजों ने भारत में 2 सदी तक राज किया, वह आज स्वाधीनता के बाद से हुई हमारे देश की प्रगति से चकित हैं।
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दोनों देशों के बीच व्यापक आर्थिक और व्यापार समझौता भी हुआ है जो आपसी साझेदारी का नया अध्याय लिखेगा।ब्रिटेन के 9 नामी विश्वविद्यालय भारत में अपने कैम्पस खोलेंगे जिससे युवाओं को ब्रिटेन में पढ़ने जाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी और उच्च शिक्षा के क्षेत्र में भारत सबसे बड़ी उपस्थिति वाला देश बन जाएगा।वैश्विक प्रतिभा आदान-प्रदान को भी बढ़ावा मिलेगा।अमेरिका के राष्ट्रपति ट्रंप के नकारात्मक कदमों का असर इससे कम होगा।
लेख-चंद्रमोहन द्विवेदी के द्वारा