यह कैसी विडंबना है कि महाराष्ट्र के मुंह से कौर छीना जा रहा है लेकिन यहां के नेता मौन साध कर बैठे हैं। यदि इन नेताओं के मन में अपने राज्य के प्रति सच्चा प्रेम होता तो यह महाराष्ट्र के उद्योगों और प्रोजेक्ट्स को छीनकर दूसरे राज्यों में ले जाने की साजिश का तीव्र विरोध करते! उनका चुप रहना यही दर्शाता है कि मौनं स्वीकृति लक्षणं! महाराष्ट्र में बीजेपी की भागीदारी वाली महायुति सरकार है, इसका यह मतलब नहीं है कि केंद्र को लगातार मनमानी करने दी जाए। महाराष्ट्र को महत्वहीन बनाकर उसकी कीमत पर अन्य राज्यों को लाभ पहुंचाने की कुटिल नीति इसके पीछे है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह का अपने गृहराज्य गुजरात के प्रति विशेष प्रेम होना स्वाभाविक है। इसके बाद उन्हें उन राज्यों की फिक्र है जहां बीजेपी अपने दम पर सत्तारूढ़ है। यही वजह है कि मनमाने तौर पर महाराष्ट्र के साथ छल किया जा रहा है। दिनदहाड़े डाका डालने के समान महाराष्ट्र के हक के प्रोजेक्ट अन्यत्र हस्तांतरित किए जाते रहे हैं।
गेल इंडिया का प्रोजेक्ट मध्यप्रदेश ले जाया गया
बीजेपी शासित मध्यप्रदेश ने 50,000 करोड़ रुपए लागत का सरकारी गैस कंपनी गेल (इंडिया) का प्रोजेक्ट छीनकर महाराष्ट्र को करारा झटका दिया है। यह कंपनी मध्यप्रदेश के सिहोर में एक बड़ा कारखाना लगाएगी जिसमें प्रति वर्ष 1।5 मिलियन टन ईथेन को क्रैक कर एथिलीन बनाया जाएगा। इसका उपयोग प्लास्टिक, रबर, गोंद आदि चीजें बनाने में होता है। यह नया कारखाना गेल के यूपी स्थित पुराने कारखाने से दोगुना बड़ा होगा। शुरू में गेल (इंडिया) महाराष्ट्र के औरंगाबाद या दाभोल में अपने 5 एमपीटीए तरलीकृत प्राकृतिक गैस संयंत्र के पास इस नए सुविधायुक्त संयंत्र को स्थापित करने की योजना पर विचार कर रही थी लेकिन अब कंपनी ने अपना मन बदल दिया और इस प्रोजेक्ट को मध्यप्रदेश में लगाने जा रही है। निश्चित रूप से इस सरकारी कंपनी को केंद्र से निर्देश मिला होगा कि महाराष्ट्र की बजाय मध्यप्रदेश में प्रोजेक्ट लगाओ।
लगता है केंद्र सरकार महाराष्ट्र का और विकास होते देखना नहीं चाहती। उद्योगों के लिए महाराष्ट्र इसलिए अनुकूल रहा है क्योंकि यहां इंड्ट्रिरयल कल्चर है जबकि यूपी और मध्यप्रदेश मोटे तौर पर कृषि प्रधान राज्य रहे हैं। महाराष्ट्र में पर्याप्त संसाधन और कुशल कर्मी आसानी से मिल जाते है। जिन उद्योगों को एक्सपोर्ट करना है, उनके लिए सी पोर्ट सुविधा उपलब्ध है। यूपी व एमपी में महाराष्ट्र के समान समुद्र तट नहीं है। निजी क्षेत्र के उद्योगों ने भी हमेशा महाराष्ट्र को तरजीह दी है क्योंकि यहां सड़क, बिजली, पानी जैसा बुनियादी ढांचा उपलब्ध है। यदि यह तर्क दिया जाए कि मुंबई व पश्चिम महाराष्ट्र में काफी उद्योग हो गए तो नए सरकारी उद्योग विदर्भ में लाए जा सकते हैं। उन्हें अन्य राज्यों में क्यों भेजा जाए?
गुजरात चली गईं परियोजनाएं
विपक्ष केंद्र की मोदी और राज्य की महायुति सरकार पर पहले ही प्रस्तावित वेदांता-फॉक्सकॉन, टेक्सटाइल पार्क, टाटा एयरबस, मेडिसिन डिवाइस पार्क, सोलर एनर्जी इक्विपमेंट पार्क आदि परियोजनाएं महाराष्ट्र से छीनकर गुजरात ले जाए जाने का आरोप लगाता रहा है। महाराष्ट्र की उपराजधानी होने पर भी नागपुर एमआईडीसी व बुटीबोरी में मैन्युफैक्चरिंग उद्योग आने नहीं दिए जाते। यहां सिर्फ कुछ उद्योगों के पैकिंग यूनिट रह गए हैं। विदर्भ के युवाओं के सामने रोजगार का संकट बना हुआ है। विधान परिषद में विपक्ष के नेता अंबादास दानवे ने सवाल किया है कि महाराष्ट्र के हिस्से में आनेवाली परियोजना इतनी आसानी से कैसे बाहर चली गई? इस मुद्दे पर उन्होंने मुख्यमंत्री शिंदे, डिप्टी सीएम देवेंद्र फड़णवीस व उद्योग मंत्री उदय सामंत से जवाब मांगा है।