
आज का निशानेबाज (सौ. डिजाइन फोटो)
नवभारत डिजिटल डेस्क: पड़ोसी ने हमसे कहा, ‘निशानेबाज, आपकी ‘पीके’ के बारे में क्या राय है? क्या बिहार विधानसभा चुनाव में वह कोई खास असर डाल सकेंगे? उनका जनाधार कितना है? क्या पीके को नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव के साथ बिहार की राजनीति के त्रिकोण का तीसरा कोण भुजा माना जा सकता है।पब्लिक के बीच उनकी कितनी पैठ है?’ हमने कहा, ‘जब 1952 में फिल्म ‘अनारकली’ आई थी तभी से उसके एक गीत के कारण पीके का नाम सारे देश ने जान लिया था।
सी.रामचंद्र के संगीत से सजी उस फिल्म में बीना राय गाती है- मुहब्बत में ऐसे कदम लड़खड़ाए, जमाना ये समझा कि हम पीके आए, पीके आए! अभी भी पुलिस ड्रंक एंड ड्राइव अभियान के दौरान पता लगाती है कि वाहन चालक कहीं पीके तो गाड़ी ड्राइव नहीं कर रहा है।बिहार में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने शराबबंदी लागू कर रखी है लेकिन फिर भी लोग अवैध या तस्करी की शराब पीके रहते हैं.’ पड़ोसी ने कहा, ‘निशानेबाज, अनर्गल बात मत कीजिए।पीके से हमारा आशय प्रशांत किशोर से है जिन्होंने जनसुराज पार्टी बनाई है।वह खुद चुनाव नहीं लड़ रहे हैं लेकिन अपनी पार्टी के उम्मीदवार मैदान में उतारेंगे।प्रशांत किशोर पेशेवर चुनाव विशेषज्ञ रहे हैं और बीजेपी व टीएमसी सहित देश की अधिकांश पार्टियों के चुनावी सलाहकार की भूमिका उन्होंने निभाई है।उनकी संस्था तमाम चुनाव क्षेत्रों का सर्वेक्षण कर लेखा-जोखा तैयार करती है और पहले से बता देती है कि किस पार्टी को कितनी सीटें मिलनेवाली हैं।
वह चुनाव और जनमानस की नब्ज पहचानते हैं.’ हमने कहा, ‘इलेक्शन कंसल्टंट होने और खुद चुनाव मैदान में कूदने में बहुत फर्क है।पीके किसी भी हालत में जननेता या मासलीडर नहीं हैं।सर्वे में लोगों से सवाल पूछना और नैरेटिव बनाना एक अलग बात है।कभी-कभी अंधे के हाथ भी बटेर लग जाती है।जनता से जुड़ना असली राजनीति है।जनता की शिकायतें, मांगें व दुखदर्द समझकर जमीन से जुड़ी राजनीति करनेवाला ही असली नेता होता है।सिर्फ चुनाव के समय अचानक टपकने और चालाकी भरी बातें करने से कोई नेता नहीं बन जाता।
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जनता काम करनेवाले नेता और बातों का बतंगड़ बनानेवाले व्यक्ति के बीच फर्क अच्छी तरह पहचानती है.’ पड़ोसी ने कहा, ‘निशानेबाज, नीतीश कुमार भुलक्कड़ हो गए हैं और तेजस्वी यादव सिर्फ 9वीं पास हैं।ऐसे में क्या पढ़े-लिखे पीके को जनता पसंद नहीं करेगी?’ हमने कहा, ‘याद कीजिए कि देश में चुनाव सुधार लानेवाले टीएन शेषन जब आडवाणी के खिलाफ चुनाव लड़े थे तो उनकी जमानत जब्त हो गई थी.’
लेख- चंद्रमोहन द्विवेदी के द्वारा






