
निकाय चुनाव (फाइल फोटो)
Nagpur Municipal Election 2025: लोकसभा व विधानसभा चुनावों में गठबंधन कर लड़ने वाली महायुति व मविआ स्थानीय निकाय चुनावों में अलग-अलग चुनाव लड़ने वाली हैं। इसके स्पष्ट संकेत दोनों गठबंधनों की मुख्य पार्टियों भाजपा व कांग्रेस ने दे दिए हैं। मतलब मनपा चुनावों में दोनों ही गठबंधन टूटे नजर आएंगे। हाल ही में मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने संकेत दिया है कि मुंबई को छोड़कर राज्यभर में बीजेपी अकेले ही चुनाव लड़ेगी।
कुछ जगहों पर मैत्रीपूर्ण लड़ाई भी हो सकती है। वहीं मविआ में शामिल घटक दल शिवसेना उद्धव ठाकरे और राज ठाकरे की मनसे मुंबई चुनाव साथ में लड़ने की तैयारी में हैं। इसके चलते कांग्रेस ने भी अपना अलग रास्ता तय कर लिया है। वह भी स्वतंत्र रूप से चुनाव लड़ने की तैयारी कर रही है। मतलब निकाय चुनावों में गठबंधन नहीं होने वाला है।
मुख्यमंत्री फडणवीस ने पिंपरी-चिंचवड़ में राष्ट्रवादी अजीत पवार गुट के प्रभुत्व को नकारते हुए कहा है कि वहां भाजपा ही बड़ी ताकत है। पुणे मनपा में भी भाजपा की सत्ता थी। इसलिए इन दोनों नगरपालिकाओं में भाजपा स्वतंत्र रूप से चुनाव लड़ेगी, लेकिन मुंबई में ठाकरे बंधुओं को टक्कर देने और महापालिका पर कब्ज़ा करने के लिए महायुति को साथ रहना मजबूरी है। मुंबई में महायुति के तीनों दल भाजपा, राकां अजीत पवार और शिंदे सेना एक साथ आकर चुनाव लड़ने पर सहमत हैं।
नागपुर मनपा की बात करें तो यहां भाजपा की 15 वर्षों से एकछत्र सत्ता रही है। शिवसेना और राकां का पहले ही वजन नहीं रहा। दोनों पार्टियों में दो फाड़ होने के बाद तो बची खुची ताकत भी नजर नहीं आ रही है। ऐसे में बीजेपी दोनों सहयोगी दलों को गठबंधन बचाने के लिए 2-4 सीटें देने को राजी हो सकती है।
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वैसे बीजेपी के स्थानीय नेता इसके भी मूड में नहीं हैं। हालात देखते हुए भाजपा पर शिंदे गुट या अजीत पवार गुट ज्यादा दबाव भी नहीं बना पाएंगे। ठाणे में भाजपा और शिंदे गुट के बीच जबरदस्त टकराव की संभावना जताई जा रही है। अगर ठाणे में भाजपा और शिंदे गुट में तालमेल नहीं होता तो नागपुर में भी तीनों दल अलग-अलग मैदान में उतरेंगे।
महाविकास आघाड़ी में कांग्रेस अपने सहयोगी दलों राष्ट्रवादी शरद पवार पार्टी और शिवसेना ठाकरे गुट को ज्यादा भाव देने के मूड में नहीं है। कांग्रेस को अब भी यह भरोसा है कि नागपुर में केवल भाजपा से ही उसकी असली टक्कर है। यही ओवर कांफिडेंस हमेशा उसे महंगा पड़ा है। इस बार भी स्थिति कुछ अलग नहीं है।
हालांकि उसके सहयोगी दल नागपुर में मजबूत नहीं हैं जिससे कांग्रेस को फायदा मिलने की संभावना है। राकां एसपी और शिवसेना यूबीटी के इक्का-दुक्का नगरसेवक ही चुने जाते रहे हैं। ऐसे में टिकट बंटवारे पर उनका क्या रुख होगा, यह देखने वाली बात होगी। कांग्रेस नागपुर में किसी तरह के दबाव में आने के मूड में फिलहाल नहीं है।






