संविधान की प्रस्तावना से सेक्यूलर व सोशलिस्ट शब्द हटाना आसान नहीं (सौजन्यः सोशल मीडिया)
नवभारत डिजिटल डेस्क: बीजेपी के अभिभावक संगठन आरएसएस के सहकार्यवाह (महासचिव) दत्तात्रेय होसबोले ने हाल ही में कहा कि संविधान की पूर्वपीठिका या प्रस्तावना में से ‘सेक्यूलर’ और ‘सोशलिस्ट’ शब्दों को हटाया जाना चाहिए क्योंकि यह शब्द मूल संविधान में नहीं थे। इन्हें इंदिरा गांधी ने प्रधानमंत्री रहते हुए 1976 में प्रस्तावना में शामिल करवाया था। संघ का निर्देश बीजेपी के लिए गंभीरता रखता है। इसके पहले भी बीजेपी के राज्यसभा सदस्य राकेश सिन्हा ने इस मुद्दे पर राज्यसभा में प्राइवेट मेंबर्स बिल पेश किया था। कुछ लोगों ने अदालत में याचिका भी डाली थी। सुप्रीम कोर्ट ने इस संबंध में विचार किया था तथा 2024 में तत्कालीन सीजेआई संजीव खन्ना की 2 जजों की पीठ ने इन दोनों शब्दों को प्रस्तावना में रखा जाना सही माना था।
संघ की दलील है कि प्रथम प्रधानमंत्री पं. नेहरू और तत्कालीन कानून मंत्री डॉ. आंबेडकर ने इन शब्दों को प्रस्तावना में शामिल करना जरूरी नहीं समझा था। डॉ. आंबेडकर मानते थे कि इस भावना का सार संविधान में शामिल है इसलिए अलग से इन शब्दों को डालने की जरूरत नहीं है। इमरजेंसी के समय इंदिरा गांधी ने 42 वें संविधान संशोधन के जरिए इन शब्दों को संविधान की प्रस्तावना में जुड़वाया। न तो ऐसा करने की कोई मांग थी, न इस मुद्दे पर कोई चर्चा की गई थी।
क्या इंदिरा गांधी सोशलिस्ट शब्द शामिल कर सोवियत रूस का समर्थन जारी रखना चाहती थीं। और क्या सेक्यूलर शब्द से मुस्लिमों को संतुष्ट करना चाहती थीं जो इमर्जेन्सी के दौरान की गई जबरन नसबंदी से खफा थे? जनता पार्टी सरकार ने भी इन दोनों शब्दों को नहीं हटाया क्योंकि उस सरकार में पूर्व कांग्रेसियों, जनसंघियों के अलावा राजनारायण, मधु लिमये और मधु दंडवते जैसे सोशलिस्ट नेता शामिल थे जो डॉ. राममनोहर लोहिया व आचार्य नरेंद्र देव की विरासत का दावा करते थे। जनता पार्टी के अभिभावक जयप्रकाश नारायण भी सोशलिस्ट थे।
क्या आरएसएस संविधान की प्रस्तावना से सेक्यूलर शब्द निकलवा कर यह संदेश देना चाहता है कि राममंदिर निर्माण, अनुच्छेद 370 हटाने और समान नागरी कानून के बाद भारत अब हिंदू राष्ट्र की दिशा में बढ़ रहा है? केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा कि भारतीय संस्कृति में सर्वधर्म समभाव रहा है न कि सेक्यूलरिज्म ! केंद्रीय मंत्री जितेंद्र सिंह, असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा और महाराष्ट्र के सीएम देवेंद्र फड़णवीस की भी यही राय है।
यदि संघ के दबाव में केंद्र सरकार सेक्यूलर और सोशलिस्ट शब्द संविधान की प्रस्तावना से निकाल देना चाहे तो ऐसा कर पाना बहुत कठिन है। इसके लिए संसद में 2 तिहाई बहुमत से संविधान संशोधन करना होगा। क्या इस मुद्दे पर चंद्राबाबू नायडू की टीडीपी और नीतीशकुमार की पार्टी जदयू का सहयोग मिल पाएगा? लोक जनशक्ति के नेता चिराग पासवान भी कह चुके हैं कि वह संविधान की प्रस्तावना के संशोधन के पक्ष में नहीं है। कांग्रेस, सपा, टीएमसी व दक्षिण भारत की पार्टियां भी इन दोनों शब्दों को हटाने नहीं देंगी।
लेख- चंद्रमोहन द्विवेदी के द्वारा