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नवभारत डेस्क: पड़ोसी ने हमसे कहा, ‘‘निशानेबाज, महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में महाविकास आघाड़ी जीतेगी या महायुति? इसे लेकर हमारे मन में महाकन्फ्यूजन है। पिक्चर क्लीयर नहीं हो पा रहा है। संदेह और उहापोह की स्थिति बनी हुई है। समझ में नहीं आता कि ऊंट किस करवट बैठेगा?’’
हमने कहा, ‘‘चुनाव में ऊंट, घोड़े, गधे, खच्चर, बैल का क्या काम? ऊंट रेगिस्तान का जहाज कहलाता है, महाराष्ट्र से उसका क्या लेना-देना! चुनाव इंसानों का है, इसमें पशुओं का जिक्र क्यों कर रहे हैं?’’
पड़ोसी ने कहा, ‘‘निशानेबाज, अमेरिका के राष्ट्रपति चुनाव में भी हाथी और गधे की टक्कर थी जो वहां की रिपब्लिकन और डेमोक्रेटिक पार्टी के चुनाव चिन्ह हैं। राज्य के चुनाव में पता चल जाएगा कि क्या आघाड़ी जनमत की पहाड़ी पर चढ़ पाएगी या महायुति की सदगति होगी? सिर्फ कुछ दिन प्रतीक्षा कीजिए। ऐसा मानकर चलिए कि थोड़ी सी बेकरारी, थोड़ा सा इंतजार, लोग कहें कुछ भी, हम तो कहें प्यार।’’
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हमने कहा, ‘‘नेताओं का जनता के प्रति प्यार बनावटी है। यह स्वार्थ की चाशनी में डूबी जलेबी के समान है। इसमें कभी बहन लाड़ली हो जाती है तो कभी भाई लाड़ला! यह सब वोट लेने का हथकंड़ा है। नेता चुनावी घाट पर बैठा पंडा है। जनता को बहलाने में कोई भी पीछे नहीं है।’’
पड़ोसी ने कहा, ‘‘निशानेबाज, अविश्वासी मत बनिए। अपने प्रिय नेता को फरिश्ता मानिए। चुनाव के समय वह दयालु और कृपालु हो जाता है। उसका दिल और खजाना खुल जाता है। कार्तिक मास में कीर्ति हासिल करने के लिए नेता दान-पुण्य करने में लगे हैं। बीजेपी इसे विपक्षी पार्टियों द्वारा बांटी जानेवाली रेवड़ी बताती है जबकि अपनी ओर से दी जानेवाली सामग्री को उपहार करार देती है। जिससे जो मिलता है, वह लेते चले जाओ लेकिन वोट देते समय अपने विवेक का इस्तेमाल करना। खरे और खोटे का फर्क पहचान लेना।”
पड़ोसी ने कहा, ‘‘कहीं-कहीं एक ही नाम के 2 या 3 उम्मीदवार खड़े हो गए हैं। भावुकता, भय या प्रलोभन में आकर मतदान मत करना। यह मत भूलना कि मतदाता एक दिन का राजा होता है। वह उम्मीदवार की किस्मत का फैसला अपनी उंगली से ईवीएम का बटन दबाकर करता है। चुनाव के बाद ‘जन’ पर ‘तंत्र’ हावी हो जाता है। जो नेता हाथ जोड़कर वोट मांगने आता था वह बाद में चेहरा नहीं दिखाता। उसके बंगले पर जाओ तो दरवाजे पर उसका अलसेशियन या डोबरमैन जोर से भूंककर आपके दिल को दहला देगा। यदि आगे बढ़े तो कई घंटे बेंच पर बैठकर प्रतीक्षा करनी पड़ेगी कि शायद मिलने का मौका मिल जाए। शाम को नेता का पीए बताएगा कि नेता तो बहुत देर पहले बाहर चले गए। आप भी मांग का निवेदन यहां छोड़कर घर चले जाओ।’’
लेख- चंद्रमोहन द्विवेदी द्वारा