अत्यंत जटिल, चुनौतीपूर्ण और प्रगत अंतरिक्ष अभियानों को सफलतापूर्वक अंजाम देने की अपनी क्षमता को पुन: प्रदर्शित करते हुए भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) ने अपने सूर्य मिशन से जुड़े आदित्य-एल1 को पृथ्वी से लगभग 15 लाख किलोमीटर दूर लैंग्रेज प्वाइंट 1 के हैलो आर्बिट में सफलतापूर्वक स्थापित कर दिया. आदित्य-एल1 (Aditya-L1 mission ) एक सोलर आब्जर्वेटरी (सौर वेधशाला) है. इसमें 7 पेलोड लगे हैं. इस मिशन का लाइफटाइम 5 वर्ष है. एल1 के पेलोड सौर घटनाओं या गतिविधियों का गहराई से अध्ययन कर विश्व के वैज्ञानिक समुदाय को डेटा उपलब्ध कराएंगे जिससे सूर्य के विकिरण, कणों व चुंबकीय क्षेत्रों का अभ्यास या अध्ययन किया जा सकेगा. जब भी अंतरिक्षीय मौसम में सूर्य की गतिविधियों में कोई परिवर्तन होता है तो पृथ्वी पर प्रभाव डालने से पहले एल-1 प्वाइंट पर दिखाई देता है. ऐसी स्थिति में यह जानकारी वैज्ञानिकों के लिए काफी अहम साबित हो सकती है.
सुदूर अंतरिक्ष में लैंग्रेज प्वाइंट वह क्षेत्र है जहां पृथ्वी और सूर्य के बीच गुरुत्वाकर्षण नि्क्रिरय हो जाता है. दोनों ही किसी चीज को अपनी ओर नहीं खींच पाते. आदित्य-एल1 वहां एक हैलो आर्बिट (परिक्रमापथ) में रहेगा और वहीं से सूर्य से जुड़ी जानकारियां इसरो को उपलब्ध कराता रहेगा. सूर्य और पृथ्वी के बीच की दूरी 14.96 करोड़ किलोमीटर है जबकि एल1 प्वाइंट पृथ्वी और सूर्य के बीच की दूरी का लगभग 1 प्रतिशत है. अंतरिक्ष में स्थापित इस वेधशाला से सूर्य का अध्ययन बेहतर तरीके से हो सकेगा. हैलो ऑर्बिट के उपग्रह से सूर्य को निरंतर देखा जा सकेगा. इसके पहले नासा और यूरोपियन स्पेस एजेंसी (ईएसए) एल-1 प्वाइंट पर अपने मिशन भेज चुके हैं.
आदित्य-एल1 को गत वर्ष 2 सितंबर को श्रीहरिकोटा से लांच किया गया था. लगभग 4 माह में वह 15,00,000 किलोमीटर की यात्रा कर अपने लक्ष्य हैलो आर्बिट में सटीक रूप से स्थापित हो गया. इसरो के चेयरमैन एस. सोमनाथ ने कहा कि सैटेलाइट को एकदम सही दिशा में रखने के लिए इसे प्रति सेकंड 31 मीटर की वेलोसिटी दी गई.
आर्यभट रिसर्च इंस्टीट्यूट ऑफ आब्जर्वेशनल साइंसेज (एरिस) के निदेशक प्रो. दीपांकर बनर्जी के अनुसार आदित्य-एल1 के उपकरण क्रमश: एक के बाद एक सक्रिय किए जाएंगे. इसलिए वास्तविक वैज्ञानिक परीक्षणों में अभी 3 माह का समय लगेगा. इसके एक्स-रे पेलोड ने सूर्य की लपटों का निरीक्षण किया है. आदित्य का कोरोनाग्राफ सूर्य को काफी निकट से देखने में सक्षम है. सैटेलाइट स्थापित हो जाने से आदित्य के अधिकांश उपकरण डेटा रिकार्ड करने लगे हैं.
आमतौर पर छोटे सैटेलाइट या उपग्रह 2,000 किलोमीटर की ऊंचाई पर (लो अर्थ आर्बिट) में स्थापित किए जाते है लेकिन आदित्य-एल1 इन उपग्रहों से आकार में काफी बड़ा है और उसे 15 लाख किलोमीटर दूर भेजा गया है. हैलो आर्बिट में और भी मिशन रहेंगे तो भी एक दूसरे के काम को प्रभावित नहीं करेंगे. एल1 से सूर्य को अबाध रूप से देखा जा सकेगा. इस मिशन की सफलता से इसरो के वैज्ञानिकों ने इतिहास रच दिया.