
देवेन्द्र फडणवीस (डिजाइन फोटो)
नवभारत डेस्क: राज्य में कितनी भीषण बेरोजगारी है इसकी जानकारी इस बात से मिलती है कि महाराष्ट्र के लगभग 24,41,000 युवक-युवतियों ने रोजगार पाने की उम्मीद से केंद्र सरकार के राष्ट्रीय करियर सेवा पोर्टल पर अपना नाम दर्ज कराया। जिन बेरोजगारों ने नाम दर्ज नहीं कराया उनकी संख्या न जाने कितनी होगी। पंजीकृत बेरोजगारों में से 17,27,000 बेरोजगार 10वीं तक भी नहीं पढ़े हैं।
इसका अर्थ है कि रोजगारोन्मुख शिक्षा देने में हम पीछे रह गए हैं। जब बड़े पैमाने पर औद्योगिक निवेश आ रहा है तो उद्योगों को बड़े पैमाने पर कुशल हाथों की आवश्यकता पड़ेगी। उसके लिए योग्य लोगों को तैयार नहीं किया जा सका। रोजगार के लिए हुनरमंद लोग चाहिए जिन्हें प्रशिक्षण देना होगा। सरकार इसकी व्यवस्था करे।
यदि इसमें धन की कमी आती है तो बड़ी कंपनियों से कारपोरेट सोशल रिस्पांसिबिलिटी (सीएसआर) के तहत योगदान ले। बड़ी कंपनियों को यदि कुशल कर्मचारी चाहिए तो इस उद्देश्य से राज्य सरकार के साथ सामंजस्य करार करें।
इसके लिए सरकार के विभिन्न विभागों के सहयोग युक्त एक स्थायी स्वरूप का मंच तैयार करने की नितांत आवश्यकता है। गरीबों व साधनहीनों की क्रयशक्ति बढ़े तथा महंगाई से बुरी तरह परेशान मध्यमवर्गीयों को राहत देने के लिए उपाय योजना आवश्यक है। इस दूरगामी उद्देश्य के लिए फंड जारी करना होगा ताकि आधारभूत सुविधाओं का निर्माण हो सके।
मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने बड़ा काम करते हुए दावोस से महाराष्ट्र के लिए 1.58 लाख करोड़ का निवेश लाने में सफलता हासिल की है। अब जो कंपनियां यहां प्लांट लगाएंगी, उन्हें कुशल और प्रशिक्षित मैनपावर की आवश्यकता पड़ेगी। इसे देखते हुए तकनीकी प्रशिक्षण पर जोर देना होगा। इसके पहले का अनुभव यह रहा है कि कुछ वर्ष पूर्व खुले उद्योग एक के बाद एक बंद होते चले गए।
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इन उद्योगों में काम करनेवाले हजारों लोगों को बेरोजगार होना पड़ा। यह दुखद स्थिति क्यों आई, इसके कारणों का पता लगाकर इन उद्योगों को पुनर्जीवन देने की कोशिश करनी चाहिए। ऐसा होने पर वहां के कर्मचारियों को फिर से काम मिल सकेगा। उद्योगों को भूखंड, बिजली, पानी, कच्चे माल की उपलब्धता जैसी बुनियादी सुविधाएं देने के साथ शर्त भी होनी चाहिए कि वह शीघ्रताशीघ्र प्रोडक्शन शुरू करें और सिर्फ बाहर से माल मंगाकर पैकेजिंग न करें।
लेख- चंद्रमोहन द्विवेदी के द्वारा






