भारतीय सेना ने शुरू की फ्यूचर 'वॉर' की तैयारी (सौ. डिजाइन फोटो)
नवभारत डिजिटल डेस्क: ऑपरेशन सिंदूर के बाद भारतीय सेना द्वारा भविष्य में होने वाले तकनीक आधारित अत्याधुनिक हथियारों वाले युद्धों की तैयारी को देख, कई देश सकते में हैं। उसकी यह तैयारी भविष्य के युद्धों में अजेय रहने के लिए है। एयरफोर्स के डिजाइन ब्यूरो की बनाई प्रणाली ड्रोन को एमएमआई-17 हेलीकॉप्टर से दुश्मन के इलाके के ऊपर हवा में छोड़ेगा। ये हेलीकॉप्टर ड्रोन 50 किलो के हथियार लेकर 40 किलोमीटर तक मार कर सकते हैं। चूंकि ड्रोन भविष्य के नए सूरमा हैं, सो वायु सेना कई तरह के अलग-अलग क्षमता वाले ड्रोन विकसित करने और खरीदने जा रही है।
वह 8,000 फीट पर उड़ने वाला लाइटरिंग एरियल इंटरसेप्टर, तीन तरह से दुश्मन को चकमा देने, घेरने, मारने वाले स्वार्म एंटी ड्रोन, एयरलांच स्वार्म ड्रोन, एलास्ट्कॉप्टर और दुश्मन के रडार को जाम करने वाले एमुलेटर ड्रॉस, एंटी-रडार डिकॉय स्वार्म, 500 किमी या उससे अधिक की रेंज वाला हाई-स्पीड ड्रोन, टेथर्ड ड्रोन प्रणाली जैसे कई ड्रोन और ड्रोन प्रणालियां अपने बेड़े में शामिल करने जा रही हैं।
वायु सेना चारों दिशाओं से 200 ड्रोन की आमद को एक साथ भांप लेने वाला स्थिर रडार, हवा में एक ऐसा एयर-माइन सेंसर सिस्टम भी स्थापित करने जा रही है, जो 2 हजार मीटर की ऊंचाई तक और एक किमी के दायरे में किसी भी तरह के ड्रोन द्वारा हवा में पैदा हलचल को पढ़ लेगा। यहां तक तो ठीक है पर ऑपरेशन सिंदूर के बाद संसार में सबसे सक्षम, इजराइल के आयरन और अमेरिकी गोल्डन डोम से बेहतर अपनी वायु रक्षा प्रणाली एस 400 से भी आधुनिक तकनीक वाला स्मार्ट एयर डिफेंस सिस्टम विकसित करने जा रही है।
भविष्य के युद्धों के मद्देनजर भारतीय सेना को तकनीकी रूप से उन्नत हथियार, साइबर युद्ध और हाइब्रिड युद्ध की चुनौतियों से निपटने के लिए आधुनिकीकरण, आत्मनिर्भरता और नई तकनीकों से लैस रहना होगा। मगर क्या यह सब इस आशंका के चलते कि पाकिस्तान और चीन मिलकर सेना को ढाई मोर्चे पर फंसा सकते हैं, बांग्लादेश को भड़काकर उधर से भी दिक्कत दे सकते हैं? भारतीय सेना भविष्य के बहुआयामी चुनौतियों वाले युद्ध की तैयारियां तेजी से करती दिख रही है।
बेंगलुरु में एआई इनक्यूबेशन सेंटर चलाया जा रहा है कि सेना में कृत्रिम बुद्धिमत्ता को कुशलता से इस्तेमाल करने के नए तरीके तलाशे जा सकें। इसके अलावा सरकार ने राष्ट्रीय रक्षा और सुरक्षा के सवालों के व्यावहारिक उत्तर पाने के लिए रक्षा शोध एवं विकास संगठन यानी डीआरडीओ, बिड़ला इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी पिलानी, सेंटर फोर रिसर्च एंड एक्सीलेंस इन नेशनल सिक्योरिटी को जोड़कर दल बनाए जाने से भी साफ होता है कि वह भविष्य के युद्ध के लिए बहुत गंभीर है। इस दल को इसरो, सेना के डिजाइन ब्यूरो जैसी महत्वपूर्ण एजेंसियों की मदद हासिल है, ये सब भविष्य की रक्षा तैयारियों से संबद्ध रक्षा संबंधी समस्याओं, सवालों और भविष्य की अनसुलझी चुनौतियों का जवाब तलाशेंगी। सेना अपनी अंतरिक्ष क्षमताओं को मजबूत करने के अलावा सीमाओं पर बेहतर निगरानी के लिए पचासों उपग्रह प्रक्षेपित करने का उपक्रम कर रही है।
अपनी सुदृढ़ वायु रक्षा प्रणाली को पूरी तरह अभेद्य बनाने के लिए नए एयर डिफेंस सिस्टम कुछ ऐसे असुरक्षित क्षेत्रों में तैनाती का विचार उत्तम है। सेना के ऐसे उद्यम देख सामान्यजन यह प्रश्न कर सकता है कि आखिर इतनी तत्परता क्यों? हमारी सेना अपने दुश्मनों के मुकाबले बहुत सक्षम और ताकतवर है, उसका प्रदर्शन शानदार है, फिर किस आशंकित युद्ध के प्रति यह तैयारी है? सच तो यह है कि भारतीय सेना द्वारा जारी विजन 2047 का लक्ष्य है कि उसे जल्द ही आधुनिक, प्रौद्योगिकी-सक्षम और ऐसे आत्मनिर्भर बल में बदलना होगा, जो हर वक्त युद्धस्तर पर तैयार रहे।
यह सदैव आवश्यक है कि भारतीय सेना राष्ट्रीय लक्ष्यों के साथ तालमेल बिठाते हुए लगातार खुद में विकसित होती रहे। किसी भी अप्रत्याशित आक्रमण का तत्काल प्रत्युत्तर दे सके। ऑपरेशन सिंदूर के तत्काल बाद गति किंचित तेज इसलिए लग रही है कि उसने 2024-25 को ‘प्रौद्योगिकी अवशोषण वर्ष’ नामित किया हुआ है, ताकि भविष्य में वह प्रौद्योगिकी द्वारा चलित एक घातक सैन्य बल बन सके। सेना को तकनीक और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में अत्युन्नत बनाने का यह अभियान तेजी से अपने लक्ष्य की ओर अग्रसर है।
लेख- संजय श्रीवास्तव के द्वारा