भारत और चीन संबंध (सौ. डिजाइन फोटो)
नवभारत डिजिटल डेस्क: दिल्ली में चीन के विदेशमंत्री वांग यी के साथ चर्चा में भारतीय विदेशमंत्री एस जयशंकर ने दोनों देशों के बीच दीर्घकाल से बकाया मुद्दों को हल करने तथा द्विपक्षीय संबंध सुधारने के लिए आपसी सम्मान, आपसी संवेदनशीलता व आपसी हितों का ध्यान रखने का रचनात्मक सुझाव दिया। इसके अलावा राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल ने भी चीनी विदेशमंत्री से चर्चा की। वांग यी ने कहा कि पुरानी बातें भुला दी जाएं। दोनों देशों के रिश्तों में उतार-चढ़ाव हितकर नहीं है। इतिहास और वास्तविकता ने साबित कर दिया है कि आपसी संबंध दोनों देशों के मौलिक और दीर्घकालिक हित में हैं।
चीनी विदेशमंत्री की भारत यात्रा ऐसे समय हुई जब अमेरिका ने भारत को टैरिफ की धमकी दे रखी है तथा शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) शिखर सम्मेलन में भाग लेने प्रधानमंत्री मोदी चीन जानेवाले हैं। गलवान संघर्ष के बाद मोदी की यह पहली यात्रा होगी। जहां तक भारत के रुख का सवाल है, वह सीमा विवाद जैसे मुद्दे पर सम्मानजनक तरीके से चर्चा के लिए तैयार रहा है लेकिन चीन को चाहिए कि वह अपना अड़ियल रवैया छोड़े। यदि परस्पर हित को चीन ध्यान में रखता है तो विवादों को हल किया जा सकता है। चीन जानता है कि भारत की सैन्यशक्ति निरंतर बढ़ती जा रही है।
ऑपरेशन सिंदूर के समय पाकिस्तान को दिए गए चीनी ड्रोन, मिसाइल, विमान और अन्य शस्त्रों का क्या हाल हुआ यह किसी से छुपा नहीं है। चीन को यह चिंता हो सकती है कि अगले 20-25 वर्षों में भारत चीन के बराबर ताकतवर बन सकता है। वह रक्षा मोर्चे पर भारत की बढ़त को नहीं रोक सकता। भारत और चीन को जोड़नेवाली बड़ी चीज दोनों का आपसी व्यापार है। चीनी वस्तुओं के लिए भारत एक बड़ा उपभोक्ता बाजार है। अमेरिका की टैरिफ दादागिरी के दौर में चीन को भारत के सहयोग की आवश्यकता है। ऐसा माना जाता है कि यदि ब्रिक्स में शामिल देश आपसी व्यापार संबंध सुदृढ़ कर लें और डॉलर की बजाय अपनी मुद्रा में लेन-देन करें तो ट्रंप की हेकड़ी को माकूल जवाब दिया जा सकता है। इसके अलावा रूस-भारत चीन का समूह (आरआईसी) बनाने की संभावना भी टटोली जा रही है।
इसमें दिक्कत यही है कि यद्यपि रूस की चीन व भारत दोनों देशों से दोस्ती है लेकिन जब चीन पाकिस्तान की हर तरह से मदद करता है तो उस पर भारत कैसे और कितना विश्वास करे? जो भी हो, अमेरिकी दबाव के दौर में आपसी व्यापार ही ऐसा मुद्दा है जो चीन को भारत के निकट लाता है। यदि चीन परस्पर सम्मान, संवेदनशीलता व हितसंबंधों पर सहमत होता है तो रिश्तों में बेहतरी लाई जा सकती है। भारत के लिए अच्छी बात यह है कि उसे किसी बिचौलिए की जरूरत नहीं पड़ती। वह सीधे तौर पर साफ बात करता है। भारत की हैसियत तेजी से विकसित हो रही अर्थव्यवस्था की है। साथ ही वह अपनी रक्षा सामर्थ्य के प्रति भी सजग है। सभी पड़ोसी देश इस तथ्य से भलीभांति अवगत हैं। चीन को पता है कि अब वह 1962 वाला भारत नहीं है जिसे दबाया जा सके। यह एक गरजता हुआ शेर बन गया है।
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यदि चीन ईमानदारी से भारत के साथ सहयोग करें और छल-छद्म की नीति त्याग दे तो यह एशियाई क्षेत्र इतना मजबूत हो जाएगा कि पश्चिमी देशों को टक्कर दे सकेगा। यहां का मानव बल, श्रम शक्ति, हुनर और तकनीक के अलावा कम लागत में निर्माण आशातीत प्रगति ला सकता है। चीन-भारत संबंध रचनात्मक दिशा में जा रहे हैं दोनों देशों के बीच विशेष प्रतिनिधि स्तर की वार्ता में भारत-चीन बार्डर ट्रेड पुन: शुरू करने, पर्यटक वीजा जारी करने, दोनों देशों के बीच सीधी उड़ान प्रारंभ करने व नया एयर सर्विस एग्रीमेंट करने पर सहमति बनी। कैलाश-मानसरोवर यात्रा को सुगम बनाने, नदियों पर सहयोग करने, भारत को उर्वरक और रेयर अर्थ मिनरल्स देने पर भी चीन तैयार है जिसका उपयोग बैटरी स्टोरेज, डिफेंस व सैटेलाइट जैसी स्पेस तकनीक में होता है। प्रधानमंत्री मोदी ने दोनों देशों के रिश्तों को शांति के लिए अहम माना है। चीन 2026 में भारत की ब्रिक्स की मेजवानी का समर्थन करेगा तो भारत भी 2027 में चीन में ब्रिक्स शिखर सम्मेलन के आयोजन को समर्थन दे रहा है।
लेख-चंद्रमोहन द्विवेदी के द्वारा