बढ़ता वायु प्रदूषण सेहत के लिए बेहद खतरनाक (सौ. डिजाइन फोटो)
नवभारत डिजिटल डेस्क: दिल्ली-एनसीआर हर सर्दी में वायु प्रदूषण की गिरफ्त नि में घुटता है। अक्टूबर से जनवरी के बीच जब हवा की गति धीमी पड़ती है, तापमान गिरता है और पराली जलाने का मौसम शुरू होता है, तब आसमान धूसर हो जाता है और हवा जहरीली। इस पृष्ठभूमि में सुप्रीम कोर्ट का हालिया फैसला, जो हरित पटाखों की सीमित अनुमति देता है, एक ऐसा प्रयास है जिसमें परंपरा और पर्यावरण के बीच संतुलन साधने की कोशिश दिखाई देती है।
यह कदम सराहनीय तो है, पर यह भी एक सशक्त चेतावनी है कि अब समय केवल नियम बनाने का नहीं, बल्कि वायु संकट से निपटने के लिए ठोस कार्रवाई का है। सपाट सच्चाई यह है कि दिल्ली-एनसीआर का वायु प्रदूषण अब मौसमी समस्या नहीं, बल्कि स्थायी स्वास्थ्य आपातकाल बन चुका है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के मानकों के अनसार यहां की हवा में पार्टिकुलेट मैटर की मात्रा खतरनाक स्तर से कई गुना अधिक पाई जाती है। हर साल दिवाली के तुरंत बाद प्रदूषण एक्यूआई 400 से ऊपर पहुंच जाता है, जो ‘गंभीर श्रेणी’ में आता है। ऐसे हालात में बच्चों, बुजुर्गों और सांस या हृदय संबंधी रोगियों की स्थिति और भी बिगड़ जाती है।
सुप्रीम कोर्ट ने सही कहा कि पटाखों पर पूर्ण प्रतिबंध के बावजूद प्रदूषण के स्तर में उल्लेखनीय सुधार नहीं हुआ। यह तथ्य प्रदूषण के विविध स्रोतों की ओर ध्यान दिलाता है-पराली जलाने से लेकर वाहनों और कारखानों के उत्सर्जन तक, लेकिन इसका यह अर्थ नहीं कि पटाखों से होने वाला अल्पकालिक प्रदूषण महज एक क्षणिक प्रभाव है। दिवाली की रात में उत्सर्जित विषैली गैसें और धूल अगले कई दिनों तक हवा में ठहरी रहती हैं, जिससे पराली और धुंध का असर और गहरा जाता है। इसलिए ‘हरित पटाखों’ की अनुमति केवल तभी सार्थक होगी जब इसके साथ सख्त निगरानी और ईमानदार पालन सुनिश्चित किया जाए।
ये भी पढ़ें– नवभारत विशेष के लेख पढ़ने के लिए क्लिक करें
हकीकत यह है कि प्रदूषण के खिलाफ लड़ाई प्रशासन, उद्योग और नागरिक, तीनों की साझा जिम्मेदारी है। सरकार को चाहिए कि पराली जलाने की समस्या के स्थायी समाधान के लिए किसानों को सस्ते और सुगम विकल्प उपलब्ध कराए। सार्वजनिक परिवहन को मजबूत करे और औद्योगिक उत्सर्जन पर नियंत्रण के लिए तकनीकी निगरानी को और सख्त बनाए। अदालत द्वारा निर्धारित समय सीमा और लाइसेंसिंग व्यवस्था तभी प्रभावी होगी जब इसे स्थानीय प्रशासन दृढ़ता से लागू करे और उल्लंघन पर तत्काल कार्रवाई हो। इसके साथ ही, नागरिकों की भूमिका भी निर्णायक है।
लेख-चंद्रमोहन द्विवेदी के द्वारा