नायब सिंह सैनी (डिजाइन फोटो)
हरियाणा में एग्जिट पोल को गलत साबित करते हुए बीजेपी ने चमत्कार किया और अप्रत्याशित हैटट्रिक का रिकॉर्ड लगाया। हालांकि हरियाणा में तमाम मुद्दे सत्तारूढ़ बीजेपी के विरुद्ध थे- जैसे कि खेती-किसानी, नशाखोरी, अग्निवीर, बेरोजगारी, सत्ता विरोधी लहर आदि। लेकिन उसने कमाल का प्रदर्शन किया।
इस उलटफेर का कारण क्या रहा, यह शोध का विषय है। सवाल यह है कि क्या खामोश मतदाताओं ने बीजेपी को फिर से पसंद किया या कांग्रेस अपनी अंदरूनी कलह के चलते चुनाव हारी? प्रश्न यह भी है कि छोटी पार्टियां, जो स्वयं तो कुछ खास न कर सकीं, लेकिन क्या हार जीत का अंतर बनीं? इन सभी सवालों का जवाब तो विस्तृत विश्लेषण से ही मिल सकेगा, लेकिन कांग्रेस ने इस संदर्भ में चुनाव आयोग पर गंभीर आरोप लगाये हैं।
हरियाणा व जम्मू कश्मीर दोनों के चुनावी नतीजों का राष्ट्रीय राजनीति पर गहरा पड़ेगा। लोकसभा चुनाव के बाद बीजेपी व संघ परिवार के एक खेमे में यह चर्चा होने लगी थी कि मोदी-शाह की टीम अब बीजेपी को चुनाव जिताने की पहली जैसी स्थिति में नहीं है। उन्हें बदलने की सुगबुगाहट भी होने लगी थी, विशेषकर इसलिए भी कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की आयु 75 वर्ष होने जा रही है और बीजेपी ने स्वयं अपने नेताओं को 75 बरस का होने पर रिटायर करने का नियम बनाया था, जिसके तहत लालकृष्ण आडवानी, मुरली मनोहर जोशी आदि सरीखे नेताओं को रिटायर किया गया था।
अब जो विधानसभा चुनावों के नतीजे सामने आये हैं, उनसे मोदी-शाह की स्थिति अपनी पार्टी में अधिक मजबूत होगी और यह भी संभव है कि बीजेपी को उनकी पसंद का अध्यक्ष मिल जाये और वह अपनी पार्टी के संसदीय दल की बैठक भी आयोजित कर लें, जोकि लोकसभा चुनाव के नतीजे आने के बाद से अभी तक नहीं हुई है। हरियाणा चुनाव ने महाराष्ट्र व झारखंड के आगामी विधानसभा चुनावों को भी दिलचस्प बना दिया है।
जम्मू कश्मीर में 10 साल बाद विधानसभा चुनाव हुए, वह भी उसका राज्य का दर्जा समाप्त करने, लद्दाख को उससे अलग करने, धारा 370 समाप्त करने और सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद। इस केंद्र शासित प्रदेश में नया परिसीमन कराया गया था और 90 सीटों पर तीन चरणों में सफलतापूर्वक मतदान हुआ और बिना किसी अप्रिय घटना के बिना। यह कई अर्थों में एकदम नया चुनाव था कि जम्मू में सीटों को बढ़ाकर 43 किया गया और कश्मीर में एक सीट बढ़ाकर 47 किया गया और अनुसूचित जनजाति के लिए 9 सीट आरक्षित की गई।
यह भी पढ़ें- नितीश कुमार के हाथों से फिसल रही रेत, बिहार में मध्यावधि चुनाव के संकेत
जम्मू कश्मीर में दूरगामी परिवर्तन देखने को मिले कि जमात-ए-इस्लामी जो दशकों से चुनाव का बायकाट कर रही थी, उस पर प्रतिबंध भी लगा था, वह चुनावी मैदान में वापस लौटी। उसके प्रत्याशियों ने कश्मीर की 33 सीटों और जम्मू की एक सीट पर चुनाव लड़ा। यूएपीए के आरोपी इंजीनियर राशिद, जो बारामुला से लोकसभा सांसद चुने गए थे, की पार्टी भी चुनाव मैदान में थे। इनकी सामूहिक मौजूदगी ने सभी स्थापित राजनीतिक दलों- एनसी, पीडीपी, बीजेपी, कांग्रेस को नया चुनावी मैदान पेश किया था। यह वास्तव में बहुआयामी चुनाव रहा। सबसे खास बात रही कि किसी भी संगठन ने चुनाव बायकाट की अपील नहीं की थी।
सबसे कड़ी टक्कर कुलगाम में रही, जहां चार बार के लगातार विधायक माकपा के एम युसूफ तरिगामी को जमात समर्थित सयार अहमद रेशी ने हर गांव में पुस्तकालय का वायदा करके कड़ी टक्कर दी। पीडीपी के काफी वोट जमात की तरफ़ शिफ्ट हुए। जम्मू कश्मीर में चुनाव भारत की चुनावी निष्ठा की स्वीकृति के रहे कि बदली हुई स्थितियों में अतिवादी गुटों ने भी बुलेट की जगह बैलट को प्राथमिकता देते हुए लोकतांत्रिक प्रक्रिया में अपनी मौजूदगी दर्ज की। राशिद की पार्टी व जमात के नुमाइंदों ने जो वोट शेयर हासिल किया है, वह एक बार फिर साबित करता है कि उन क्षेत्रों में भी संवैधानिक लोकतंत्र का आकर्षण है, जहां दशकों से टकराव की स्थिति देखने को मिल रही है।
जम्मू कश्मीर में चुनावी नतीजे तो आ गए हैं। लेकिन अब विवाद 5 नॉमिनेटेड विधायकों को लेकर है, जिनके बारे में केंद्र सरकार ने कहा है कि उन्हें नॉमिनेट करने का अधिकार लेफ्टिनेंट गवर्नर को है। जाहिर है अगर ऐसा होता है तो नॉमिनेटेड सदस्य बीजेपी के पक्ष के होंगे। इसके विरुद्ध फारूक अब्दुल्लाह ने अदालत में जाने के लिए कहा है।
उनके अनुसार नॉमिनेटेड सदस्यों की सिफारिश जम्मू कश्मीर की चुनी हुई सरकार को करनी चाहिए। एक अन्य मुद्दा जम्मू कश्मीर का राज्य का दर्जा बहाल करने का भी है, जिसके लिए सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की गई है कि दो माह के भीतर राज्य का दर्जा बहाल किया जाये। कुछ पार्टियों की तरफ से यह मांग भी उठी है कि जब तक राज्य का दर्जा न मिले तब तक जम्मू कश्मीर में सरकार का गठन न किया जाये।
लेख- चंद्रमोहन द्विवेदी द्वारा