संसद के मानसून सत्र का कार्यकाल (सौ. डिजाइन फोटो)
नवभारत डिजिटल डेस्क: आगामी 21 जुलाई से शुरू हो रहे संसद के मानसून सत्र का कार्यकाल 21 दिन का होगा जिसमें दोनों सदनों में 21-21 घंटों के प्रश्नोत्तर सत्र होंगे।पिछले कुछ वर्षों से संसद में जिस तरह महत्वपूर्ण विषयों पर चर्चा नहीं हो रही. उस स्थिति में चाहे सत्ता पक्ष हो या विपक्ष, इन महत्वपूर्ण 21 घंटों की किसी भी सदन में बर्बाद न करें, क्योंकि इन पर देश का समूचा भविष्य दांव पर लगा है।मानसून सत्र में 8 नये बिल पेश किए जाएंगे, जिनमें नेशनल स्पोर्ट्स गवर्नेस बिल और नेशनल एंटी डोपिंग संशोधन बिल होगा, जिनके पास हो जाने के बाद उम्मीद है देश में खेल संस्कृति बदल जायेगी।इनके बाद खेल संगठनों में जरूरी सुधार की उम्मीद की जा सकती है.
इस सत्र में जो महत्वपूर्ण बिल संसद के पटल पर रखे जाएंगे, उनमें शामिल हैं- माइंस एंड मिनिरल संशोधन बिल, जियो हैरिटेज साइट्स एंड जियो रेलिक्स प्रिजर्वेशन एंड मेंटेनेस बिल, आईआईएम संशोधन विधेयक. इसके अलावा जीएसटी संशोधन बिल, टैक्सेशन संशोधन बिल, जन विश्वास संशोधन बिल. इनकम टैक्स बिल 2025 और मणिपुर में राष्ट्रपति शासन बढ़ाने से संबंधित बिल भी पेश होगा।13 से 17 अगस्त तक संसद में कोई कामकाज नहीं होगा, जिससे अंततः संसद की कार्यवाही 21 दिन ही होगी। कैग (सीएजी) डेटा के आधार पर पिछले साल कहा गया था कि भारत की संसद के चलने के एक घंटे का खर्च 2.5 लाख से 3 लाख रुपये है। इसमें संसद का प्रशासनिक खर्च, सांसदों का वेतन, उसकी सुरक्षा व्यवस्था, बिजली और तकनीकी सपोर्ट और दूसरे संसाधन शामिल हैं।
संसद में होने वाले हंगामों की आलोचना करने वाले कहते हैं कि हमारी संसद में हर घंटे 2.5 से 3 लाख रुपये बर्बाद होते हैं. संसद का हर घंटा केवल खर्च नहीं बल्कि नीति निर्धारण का भी आधार है और नीति निर्धारण को हम बिजली, पानी, सुरक्षा या वेतनों में किए गए खर्च के आधार पर नहीं देख सकते। भारत का सकल घरेलू उत्पाद 2024-25 में लगभग 330 लाख करोड़ रुपये या 4 ट्रिलियन डॉलर था। इसी आंकड़े के आधार पर भारत जापान को पीछे छोड़कर दुनिया की चौथी अर्थव्यस्था बन चुका है. लेकिन दुनिया के इस सबसे बड़े लोकतंत्र में संसद साल में महज 60 से 70 दिन ही चलती है और प्रतिदिन लगभग 6 घंटे ही कार्यवाही होती है।
इस तरह देखें तो भारत में हर साल महज 360 से 420 घंटे ही काम होते हैं. अगर थोड़ी उदारता से काम के इन घंटों को बढ़ाकर 450 कर दें, तो भी भारत के जीडीपी के आधार पर संसद के हर घंटे के काम की कीमत 7333 करोड़ रुपये बनती है. कहने का मतलब यह कि जब हमारी संसद के पक्ष-विपक्ष के राजनेता संसद के कामकाज को बर्बाद करते हैं, तब वे हर घंटे 7333 करोड़ रुपये से ज्यादा का नुकसान करते हैं।
दुनिया के जितने देशों में लोकतंत्र है, वहां हमसे ज्यादा काम होता है. अमेरिका की अर्थव्यवस्था दुनिया में सबसे बड़ी है. अमेरिकी लोगों की प्रतिव्यक्ति आय, भारत के लोगों से 85 से 100 गुना ज्यादा है. फिर भी भारत में जहां हर साल संसद महज 60 से 70 दिन काम करती है, वहीं यूएस कांग्रेस हर साल 160 से 170 दिन काम करती है यानी भारत की संसद के मुकाबले 250 से 280 फीसदी अमेरिकी संसद ज्यादा काम करती है. इसी तरह ब्रिटेन की संसद साल में 140 से 150 दिन, कनाडा की संसद 130 से 140 दिन, जापान की संसद 150 से ज्यादा -दिन और ऑस्ट्रेलिया की संसद भी हर साल 70 से 80 दिन काम करती है।
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कहने का मतलब दुनिया के ज्यादातर विकसित देशों की संसद भारत के मुकाबले कहीं ज्यादा दिन तक काम करती हैं. जबकि इन देशों की आबादी न केवल भारत के मुकाबले बहुत कम है बल्कि उनकी समस्याएं तो भारतीय लोगों – के मुकाबले और भी बहुत कम है. भारत का संसदीय कामकाज बहुत महंगा है और इस मानसून सत्र के 21 दिन तथा प्रश्नकाल के 21 घंटे बहुत कीमती है।
लेख- लोकमित्र गौतम के द्वारा