आज का संपादकीय (सौ.डिजाइन फोटो)
नवभारत डिजिटल डेस्क: जिन लोगों ने गंगा जल की शुद्धता को लेकर सवाल उठाए थे और कहा था कि महाकुंभ मेले में करोड़ों श्रद्धालुओं के डुबकी लगाने के बाद गंगा का पानी पीने तो दूर, नहाने लायक भी नहीं रह गया है, उन्हें पद्मश्री डा. अजय सोनकर ने करार जवाब देकर कहा कि गंगा में विश्व की अत्यंत अनोखी स्वयं शुद्धिकरण प्रणाली है. डा. सोनकर ऐसे वैज्ञानिक हैं जिनकी पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम ने भी सराहना की थी।
वह विश्वस्तरीय अनुसंधानकर्ता हैं जिन्होंने कैंसर, जेनेटिक कोड, सेल बायोलॉजी तथा ऑटोफैगी जैसे क्षेत्रों में रिसर्च की है तथा वेलिंगटन यूनिवर्सिटी, जापान की राइस यूनिवर्सिटी तथा हार्वर्ड मेडिकल स्कूल के अनुसंधानों में भी सहयोग दिया है. प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की रिपोर्ट को चुनौती देते हुए डॉ. सोनकर ने कहा कि गंगा में 1,100 प्रकार के बैक्टीरियोफेगस हैं जो अपनी संख्या से 50 गुना हानिकारक बैक्टीरिया का खात्मा कर देते हैं लेकिन मानव स्वास्थ्य के लिए लाभदायी अच्छे बैक्टीरिया को कोई क्षति नहीं पहुंचाते।
ये बैक्टीरियोफेगस प्राकृतिक रूप से जल को शुद्ध रखते हैं. गंगा ऐसी नदी है जो स्वयं अपना संरक्षण करती है. उन्होंने कहा कि बैक्टीरियोफेगस हानिकारक बैक्टीरिया के आरएनए में घुसकर उसे पूरी तरह नष्ट कर देते हैं. डुबकी लगानेवालों के शरीर के किसी भी सूक्ष्म कीटाणु या बैक्टीरिया को गंगा तुरंत पहचान कर खत्म कर देती है. यह इस नदी की खासियत है. दुनिया में और कोई ऐसी चमत्कारी नदी नहीं है. इस स्वयं को शुद्ध करने की गंगा की विशेषता की तुलना समुद्र से की जा सकती है. सूक्ष्म कीटाणुओं का खात्मा करनेवाले बैक्टीरियोफेगस की तादाद कभी कम नहीं होती. इनमें से प्रत्येक अपने जैसे 100 से 300 तक नए बैक्टीरियोफेगस पैदा करता है।
इनका काम सिर्फ ऐसे बाहरी बैक्टीरिया को मारना है जो गंगा में नहाते समय पानी में मिलते हैं. डा. सोनकर ने लोगों को प्रकृति के करीब रहने का संदेश दिया. उन्होंने गंगा जल की शुद्धता को लेकर व्यापक रिसर्च की और कुंभ में डुबकी लगानेवाले अनेक स्थानों के जल का नमूना लेकर उसका प्रयोगशाला में परीक्षण किया. उन्होंने लोगों को चुनौती दी कि वे कहीं से भी गंगाजल लाएं जिसका वे तुरंत परीक्षण कर नतीजा बता देंगे।
नवभारत विशेष से जुड़े सभी रोचक आर्टिकल्स पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें
यह धारणा भी है कि गंगा ऐसे पर्वतीय स्थलों से बहकर आती है जहां गंधक व शोरे की खान हैं. इस वजह से भी उसका जल शुद्ध रहने में मदद मिलती है. गंगाजल कभी बासी नहीं होता. नल या कुएं के पानी को हफ्ता भर भी रखें तो उसकी आक्सीजन बेहद कम हो जाएगी और कीड़े पड़ जाएंगे. गंगाजल न केवल पवित्र बल्कि पूर्णत: शुद्ध बना रहता है।
लेख-चंद्रमोहन द्विवेदी के द्वारा