(डिजाइन फोटो)
नवभारत डेस्क: अमेरिका में भारतीय प्रभावी पदों पर भी हैं। वह सीईओ हैं, वैज्ञानिक हैं, एस्ट्रोनॉट्स हैं, राय बनाने वाले हैं, सांसद हैं। किसी भी देशज समूह की तुलना में उनकी औसत आय सबसे अधिक है। अब तो एक हिंदू महिला सेकंड लेडी भी है। भारतीयों के विरोध में यह शोर निरंतर बढ़ता ही चला जा रहा है।
चूंकि ट्रम्प ने राष्ट्रपति का चुनाव मुख्यतः ‘अमेरिका फर्स्ट’ व अवैध रूप से अमेरिका में रह रहे विदेशियों को वापस उनके देश भेजने के नारों के आधार पर जीता है और कहा है कि 20 जनवरी 2025 को शपथ लेते ही वह पहला काम ‘घुसपैठियों’ को बाहर का रास्ता दिखाने का करेंगे, इसलिए अब मागा कट्टरपंथी एच-1बी वीजा के साथ ही ओपीटी (ऑप्शनल प्रैक्टिकल ट्रेनिंग) को भी निशाना बना रहे हैं।
ट्रम्प की समर्थक लॉरा लूमर और उनके दोस्त सभी विदेशी दिखाई देने वाले लोगों को अमेरिका की सीमा से बाहर देखना चाहते हैं। अनुमान है कि अप्रैल 2024 तक अमेरिका में 13.3 मिलियन लोग बिना दस्तावेज के थे और 20 जनवरी के बाद इन्हें ही सामूहिक निर्वासन के लिए टारगेट किया जायेगा। पिउ रिसर्च सेंटर के 2022 के अनुमान के अनुसार अमेरिका में 7,25,000 अवैध अप्रवासी भारतीय हैं और इन पर भी 20 जनवरी की तलवार लटकी हुई है। अक्टूबर 2024 में 11,000 भारतीयों को अमेरिका से वापस भारत भेजा गया था।
इस समय बात केवल बिना दस्तावेज वालों को वापस भेजने की ही नहीं है। मागा कट्टरपंथी ओपीटी प्रोग्राम को भी अपने निशाने पर लिए हुए हैं। विदेशी छात्र जो एफ। वीजा पर अमेरिका आते हैं, वह पहले अकादमिक वर्ष के बाद ओपीटी में हिस्सा लेने और कार्य अनुभव हासिल करने के लिए अमेरिका में रुकने के योग्य हो जाते हैं।
इस सिलसिले में स्टेम स्नातक तीन साल तक अमेरिका में रुक सकते हैं। मागा ‘अमेरिका फर्स्ट’ कट्टरपंथियों का कहना है कि ओपीटी का मूल उद्देश्य स्किल डेवलपमेंट के लिए शॉर्ट टर्म वर्क परमिट देना था, लेकिन अब यह अमेरिका में जॉब्स हासिल करने और दीर्घकालीन वर्क वीजा जैसे एच-1बी वीजा लेने का औजार बन गया है।
स्वदेशी टेक वर्कर्स गठबंधन का कहना है, ‘एम्प्लायर्स ओपीटी वर्कर्स को हताश व्यक्तियों के रूप में देखते हैं जो अपना परमिट खत्म होने से पहले एच-1बी वीजा स्पॉन्सरशिप हासिल करने के लिए कुछ भी करने के लिए तैयार हो जाते हैं।’ कम्पनियां कम पैसों पर विदेशियों से अनुबंध कर लेती हैं, जिससे अमेरिकियों में बेरोजगारी बढ़ती जा रही है।
अनेक विदेशी छात्र, विशेषकर भारत से, अमेरिका में शिक्षा के लिए आते हैं कि उन्हें कार्य अनुभव प्राप्त करने के लिए ओपीटी मिल जायेगा। अधिकतर मामलों में उन्हें ओपीटी के दौरान या उसके पूर्ण होने पर एच-1बी वीजा मिल जाता है, जिससे उन्हें अमेरिका में 9 वर्ष तक रहने का अवसर मिल जाता है।
इनमें से कुछ ग्रीन कार्ड हासिल करने में भी कामयाब हो जाते हैं और आखिरकार अमेरिकी नागरिक बन जाते हैं। कांग्रेसनल रिसर्च सर्विस रिपोर्ट के अनुसार, 2023 में अमेरिका में 1.5 मिलियन एफ। व एम। (वोकेशनल ट्रेनिंग) छात्र व नव स्नातक थे। इनमें से लगभग 23 प्रतिशत (3,44,686) को ओपीटी के जरिये कार्य करने की अनुमति थी। ओपीटी पर विराम लगाने का अर्थ होगा कि विदेशी छात्रों को ग्रेजुएशन के बाद बिना कार्य अनुभव का लाभ प्राप्त किये अमेरिका छोड़ना होगा।
ऐसा करने से अमेरिका में विदेशी छात्रों की आमद कम हो जायेगी। अमेरिका में ओपीटी कार्यक्रम 1947 से लागू है। इससे जहां विदेशी छात्रों को लाभ हुआ है वहीं इन छात्रों के टैलेंट से अमेरिका को भी सुपर पॉवर बनने में मदद मिली है। विभिन्न श्रेणियों के तहत अमेरिका में साल में केवल 85,000 वीजा दिए जाते हैं।
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एच-1बी वीजा से अमेरिका के जनसंख्या अनुपात में कोई बदलाव नहीं आने वाला है। अध्ययनों से मालूम होता है कि एच-1बी वीजा का सह-संबद्ध अमेरिका में उच्च पेटेंट फाइलिंग से है, लेकिन इसकी हदबंदी करने से कम्पनियां विदेशों में अपनी शाखा स्थापित करती हैं।
भारत की जीसीसी बूम इसकी मिसाल है। लेकिन यह बात लूमर और उनके दोस्तों को कौन समझाये, वह तो सभी विदेशी- दिखाई देने वाले चेहरों को बाहर का रास्ता दिखाना चाहते हैं, जबकि इतिहास गवाह है कि इस प्रकार की भावनाएं भयंकर रूप धारण कर लेती हैं। भारतीयों के विरुद्ध मागा की बढ़ती हिंसात्मक नफरत पर भारत सरकार को खामोश नहीं बैठना चाहिए।
लेख- डॉ. अनिता राठौर द्वारा