आज का निशानेबाज (सौ. डिजाइन फोटो)
नवभारत डिजिटल डेस्क: पड़ोसी ने हमसे कहा, ‘निशानेबाज, दिल्ली विश्वविद्यालय के लक्ष्मीबाई कॉलेज की प्राचार्य प्रत्यूष वत्सला ने गाय-भैंसों के प्रति वात्सल्य दिखाते हुए एक अनोखा प्रयोग किया। उन्होंने कॉलेज की कक्षाओं को गर्मी के मौसम में ठंडा रखने के उद्देश्य से गोबर और मिट्टी से पुतवा दिया। उनके इस कदम से नाराज होकर दिल्ली विश्वविद्यालय छात्र संघ के अध्यक्ष रौनक खत्री ने जाकर प्राचार्य के कार्यालय की दीवार पर गोबर पोत दिया और कहा कि प्राचार्य को भी थोड़ी ठंडक मिलनी चाहिए।’
हमने कहा, ‘प्राचार्य वत्सला ने प्राचीन भारतीय संस्कृति के अनुरूप कार्य किया जब भारत के गांव-गांव में मिट्टी के घर होते थे और उनकी दीवारें गोबर से लीपी जाती थीं। कच्चे फर्श पर चौका भी गोबर मिश्रित पानी से लगाया जाता था। घर के आंगन में भी उसका छिड़काव किया जाता था। जिस गुरूकुल में राजाओं के बच्चे पढ़ने के लिए भेजे जाते थे वहां भी ऐसी ही जमीन से जुड़ी व्यवस्था रहा करती थी। क्या आप सोचते हैं कि महर्षि वशिष्ठ, विश्वामित्र, भरद्वाज, सांदीपनी के आश्रम सीमेंट-कंक्रीट के थे? वहां भी गाय के गोबर से लिपी-पुती दीवारें रहा करती होंगी। मिट्टी की दीवारों पर चिपके गोबर के कंड़े ग्रामीण भारत की पहचान है। विदेशी इसे देखकर विस्मय में पड़ जाते हैं कि गोबर करने के लिए गाय दीवार पर कैसे चढ़ी होगी! गोबरी यज्ञ की अग्नि से लेकर अंतिम संस्कार तक काम आती है। इस प्रकार हवन से लेकर कफन तक गोबर की मौजूदगी है।’
पड़ोसी ने कहा, ‘निशानेबाज, प्राचार्य वत्सला को उनके गोबर-प्रेम पर उपकुलपति ने फटकारते हुए कहा कि उन्हें ऐसी रिसर्च अपने घर की दीवारों पर गोबर लीप कर करनी चाहिए, कालेज में नहीं! सभी कालेजों को कूलर और फैन लगाने के लिए निधि दी जाती है जिसका इस्तेमाल किया जाना चाहिए।’ हमने कहा, ‘शास्त्रों में समुद्र यात्रा वर्जित है। ऐसा करनेवाले को शुद्ध व पवित्र करने के लिए पंचगव्य सेवन का विधान था।
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पंचगव्य में दूध, दही, घी, गौमूत्र और गोबर का समावेश होता था।’ हमने कहा, ‘यह बकवास या ढकोसला है। भगवान राम ने अपनी वानरसेना के साथ समुद्र पार कर रावण की लंका पर आक्रमण किया था। रामायण में कहीं पंचगव्य सेवन का उल्लेख नहीं है। प्राचार्य ने गोबर से दीवारें पुतवा कर शिक्षा व्यवस्था का गुड़ गोबर कर दिया।’
लेख- चंद्रमोहन द्विवेदी के द्वारा