
इकोनॉमी में उपभोग बढ़ा लेकिन उतना नहीं (सौ. डिजाइन फोटो)
नवभारत डिजिटल डेस्क: कम से कम अभी तक तो भारतीय अर्थव्यवस्था पर अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप के टैरिफ का प्रभाव नहीं पड़ा है।वजह यह है कि जीएसटी की दरें युक्तिसंगत कर दी गईं तथा त्योहारी सीजन में खरीदारी बढ़ी है।केंद्र सरकार ने जीएसटी दरों में कटौती 22 सितंबर से ही लागू कर दी थी।इस वजह से 42 दिनों का त्योहारी माहौल बना रहा और वाहन खरीदी होती रही।टू व्हीलर, थ्री व्हीलर, पैसेंजर गाड़ियों व मालवाही वाहनों की बिक्री बढ़ी।
भारत के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का 60 फीसदी हिस्सा निजी क्षेत्र के उपभोग से आता है।उपभोग के आधार पर विकास की बात कहनेवालों की राय है कि आज की संरक्षणवादी दुनिया में भारत का मध्यवर्गीय उपभोक्ता बड़ी ताकत रखता है।घरेलू मांग में वृद्धि होने से देश में मैन्युफैक्चरिंग बढ़ेगी।फिर भी अनुभव आया है कि सप्लाई चेन व ढांचागत सुधार के बिना उपभोग का लाभ निर्यातकों को मिलेगा, वस्तुनिर्माता को नहीं।बैंक आफ इंटरनेशनल सेटलमेंट ने पाया है कि उपभोग के आधार पर विकास अल्पकालिक होता है।इसे निरंतर रखने के लिए निवेश और निर्यातोन्मुख व्यवस्था आवश्यक है।उत्पादक क्षमता में लगातार निवेश करते रहना जरूरी है।
देश में निजी कारपोरेट निवेश नहीं कर रहे हैं क्योंकि उनके और बैंकों के पास इसके लिए पर्याप्त धन नहीं है।इसके विपरीत कारपोरेट और बैंकों की बैलेंस शीट मजबूत बनी हुई है।वह तभी अपनी वर्तमान क्षमताओं का विस्तार करेंगे जब उन्हें लगेगा कि मांग वास्तव में बढ़ी है और उपभोक्ता खर्च करने को तैयार हैं।यह तभी होगा जब नौकरियों और आय में वृद्धि होगी।उपभोक्ता बढ़ेंगे तभी तो उद्योजकों को प्रोत्साहन मिलेगा।उपभोग का दौर केवल शादियों व त्योहार के सीजन तक ही सीमित न रहकर सर्वकालिक रहना चाहिए तभी मैन्युफैक्चरिंग बढ़ेगी।नौकरियां नहीं बढ़ने की वजह से पिछली कई तिमाहियों से घरेलू उपभोग में कमी आई है।सितंबर में वार्षिक उपभोक्ता सूचकांक में भारी गिरावट आ गई थी।
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अब उम्मीद है कि मानसून अनुकूल रहने की वजह से ग्रामीण अर्थव्यवस्था में सुधार आएगा तथा रबी की फसल भी अच्छी होगी।इससे खुदरा क्षेत्र में कारोबार बढ़ेगा।नवंबर से मार्च तक विवाह का सीजन है इस दौरान भी खरीदारी तेज होगी।निजी उपभोग का सिलसिला अच्छी तरह चलता रहा तो ट्रंप का टैरिफ विशेष नुकसान नहीं पहुंचा पाएगा।विदेश निर्यात कम हुआ तो घरेलू उपभोग बढ़ने से बाजार संभल जाएगा।कम से कम 2000 के बाद जन्मी पीढ़ी जेन-जी काफी खर्चीली है जिससे उपभोग को बढ़ावा मिल रहा है।इसके बावजूद अभी उपभोग इतना नहीं बढ़ा है कि उद्योजक नए प्लांट लगाएं और निर्माण क्षमता का विस्तार करें।
लेख- चंद्रमोहन द्विवेदी के द्वारा






