दिल्ली वायु प्रदूषण (डिजाइन फोटो)
नवभारत डेस्क: दिवाली के दीये जलने अभी बाकी हैं, लेकिन दिल्ली का वातावरण पहले ही धुआं-धुआं हो गया है। दिल्ली और उसके आसपास राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र की हवा का क्वालिटी इंडेक्स अभी से 400 का आंकड़ा छूने लगा है, जो बेहद गंभीर स्थिति का सूचक है। दिल्ली की हवा सांस लेने के लायक नहीं हैं। इसके बावजूद बहुत कम उम्मीद है कि लोग अब भी दिवाली की रात पटाखे फोड़ने से बाज आएंगे।
राजधानी दिल्ली में पिछले चार सालों से लगातार पटाखे फोड़े जाने पर कानूनन प्रतिबंध है। दिल्ली का जहरीला होता प्रदूषण, स्थायी समस्या बन चुका है। आखिर उससे कैसे छुटकारा पाया जाए? विश्व स्वास्थ्य संगठन की मानें तो हवा में प्रदूषण के कण यानी पीएम 2.5 का स्तर 140 से ज्यादा नहीं होना चाहिए।
दिल्ली की हवा में हर समय दम घुटता रहता है। निश्चित रूप से दिल्ली में लगातार हवा की घटती गुणवत्ता और इसके जहरीले होते जाने के पीछे एक कारण दिल्ली के आसपास के ग्रामीण इलाकों में पराली या फसल के अधिशेष को उसी में फूंक दिये जाने की आदत है, वहीं दूसरे सबसे बड़े कारणों में से एक दिल्ली में अंधाधुंध वाहनों की संख्या है।
दिल्ली के आसपास के सारे राज्य हरियाणा, पंजाब या उत्तर प्रदेश, हर जगह बड़े पैमाने पर खेती होती है और इन खेतों में फसल के तमाम अधिशेषों को जलाने का पुराना रिवाज है, जिसे पराली जलाना कहते हैं। पिछले एक दशक से भी ज्यादा समय से केंद्र सरकार लगातार आसपास के राज्यों के किसानों से बार-बार कह रही है कि खेतों में पराली न जलाएं, इससे वातावरण प्रदूषित होता है।
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इसके लिए सख्त कानून भी बनाये गए और अब तो खेतों में पराली जलाने वाले को पुलिस द्वारा गिरफ्तार करना और किसानों पर दंड लगाना भी शुरू कर दिया गया है। फिर भी पराली का जलना नहीं रुक रहा।
आज की तारीख में दिल्ली में 1 करोड़ से काफी ज्यादा वाहन पंजीकृत हैं, जिसमें 78 लाख या उससे ज्यादा तो अकेले दुपहिया वाहन ही हैं। कुल मिलाकर दिल्ली में इतने ज्यादा वाहन हैं, जितने शायद समूचे यूरोप में भी नहीं होंगे। ज्यादा वाहन दिल्ली के प्रदूषण के लिए सबसे ज्यादा जिम्मेदार है? लोगों को अपने स्टेटस के सामने किसी भी तरह की समस्या छोटी लगती है।
दिल्ली में ज्यादातर लोगों को लगता है कि अगर उनके पास अपनी कार या दुपहिया वाहन नहीं होगा तो उनकी कोई इज्जत ही नहीं होगी। यही वजह है कि लोगों ने अपनी शान दिखाने के लिए दिल्ली में जरूरत से कई गुना ज्यादा वाहन एकत्र कर रखे हैं। कई कई घर तो ऐसे हैं जिनमें सदस्यों की संख्या तो चार या पांच हैं, लेकिन वाहन घर के सदस्यों की संख्या से ज्यादा हैं।
इसके साथ ही दिल्ली में घरों में जो चोरी छुपे औद्योगिक इकाईयों के चलने का सिलसिला नहीं थम रहा। दिल्ली की जो भौगोलिक स्थिति है, वह भी इसके लिए कम जिम्मेदार नहीं है। सर्दियों के मौसम में हवा, वातावरण में ठहर सी जाती है और प्रदूषण कण जहां पर होते हैं, वहीं खड़े रहते हैं। भौगोलिक स्थिति पर लोगों का बस नहीं होता।
दिल्ली में सार्वजनिक वाहनों की व्यवस्था देश के किसी भी दूसरे शहर से बेहतर है। शहर के 50 फीसदी से ज्यादा जगहों तक मेट्रो, रेल सेवा पहुंच चुकी है, जहां न जाम लगने का डर है और न ही सड़कों की तरह दुर्घटनाओं का, ऐसे में लोगों को ज्यादा से ज्यादा सार्वजनिक वाहनों का इस्तेमाल करना चाहिए।
सार्वजनिक वाहनों पर चलना कई लोगों को अपनी इज्जत का सवाल लगता है। इसलिए भी दिल्ली में निजी वाहनों की संख्या कम नहीं हो रही। इसे कम करने का तरीका एक ही है कि निजी वाहनों पर जबर्दस्त ‘कर’ लगा दिया जाए, तभी लोग इनके लालच से खुद को बचा पाएंगे। लोगों को अपनी जीवनशैली में सुधार करना होगा, तभी दिल्ली को इस जहरीले चंगुल से बचाया जा सकता है।
लेख: नरेंद्र शर्मा द्वारा