बीजेपी ने सीपी राधाकृष्णन एनडीए के प्रत्याशी (सौ. डिजाइन फोटो)
इस समय जो राजनीति चल रही है उसे देखते हुए लगता है कि प्रतीकात्मक चुनाव के लिए विपक्ष अपना प्रत्याशी मैदान में उतार सकता है।खबरें ऐसी भी हैं कि विपक्ष अपना विरोध जताते हुए इस चुनाव में हिस्सा ही न ले।चंद्रपुरम पोन्नुसामी (सीपी) राधाकृष्णन का जन्म 20 अक्टूबर 1957 को त्रिउप्पुर, तमिलनाडु में हुआ था।अगर उनका चयन हो जाता है, तो वह जगदीप धनखड़ (जाट) के बाद देश के दूसरे ओबीसी उपराष्ट्रपति होंगे और एस राधाकृष्णन व आर वेंकटरमण के बाद तमिलनाडु से इस पद पर बैठने वाले तीसरे व्यक्ति होंगे।राधाकृष्णन जब 17 साल के थे तभी से वह आरएसएस और भारतीय जनसंघ बाद में बीजेपी से जुड़े हुए हैं.
वह 1974 में जनसंघ की तमिलनाडु इकाई की एग्जीक्यूटिव कमेटी के सदस्य चुने गए।उन्होंने तमिलनाडु में बीजेपी व अन्ना द्रमुक के बीच चुनावी गठजोड़ कराने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की।इस समझौते की बदौलत तमिलनाडु में पहली बार बीजेपी के जो तीन प्रत्याशी चुनाव जीते उनमें से एक राधाकृष्णन स्वयं थे।तमिलनाडु बीजेपी के अध्यक्ष (12 मई 2003 से 22 सितंबर 2006) रहे राधाकृष्णन ने कोयंबटूर लोकसभा सीट को 1998 में 150,000 से भी अधिक मतों से जीता, लेकिन 1999 में उनका जीत का अंतर घटकर 55,000 रह गया और इस सीट से वह 2014 व 2019 में चुनाव हार गए।तमिलनाडु बीजेपी का अध्यक्ष रहते हुए राधाकृष्णन ने 93 दिन की 19,000 किमी लंबी रथ यात्रा निकाली, जिसमें उन्होंने नदियों को जोड़ने, छुआछूत को खत्म करने और भारत में आतंकवाद के विरुद्ध अभियान चलाने की वकालत की थी।
12 फरवरी 2023 को राधाकृष्णन को झारखंड का राज्यपाल नियुक्त किया गया और टी सौंदर्यराजन के इस्तीफे के बाद उन्हें 19 मार्च 2024 को तेलंगाना के राज्यपाल और पोड्डुचेरी के लेफ्टिनेंट गवर्नर का अतिरिक्त कार्यभार भी सौंपा गया।इसके बाद 27 जुलाई 2024 को राधाकृष्णन को महाराष्ट्र का राज्यपाल नियुक्त किया गया।अब 17 अगस्त 2025 को बीजेपी ने राधाकृष्णन को अपना उपराष्ट्रपति प्रत्याशी बनाया है।बीजेपी का कहना है कि राधाकृष्णन का सर्वसम्मति से चयन कराने के लिए उसने पिछले सप्ताह विपक्षी दलों से बात की है और वार्ता जारी रहेगी।विपक्षी दल अगर राधाकृष्णन के नाम पर सहमत नहीं भी होते हैं, तो भी उनका उपराष्ट्रपति बनना लगभग तय ही है, क्योंकि एनडीए के पास पर्याप्त संख्या बल है।
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एक तीर से दो निशाने
राधाकृष्णन को उपराष्ट्रपति प्रत्याशी बनाकर बीजेपी एक तीर से दो निशाने साधने का प्रयास कर रही है।आरएसएस को उसकी पसंद का उपराष्ट्रपति देकर बीजेपी आलाकमान ने अपने लिए पार्टी का अध्यक्ष पद आरक्षित कर लिया है।आरएसएस जेपी नड्डा के केंद्र में मंत्री बनाए जाने के बाद से ही इस बात पर बल दे रहा था कि उसकी पसंद के व्यक्ति को बीजेपी का अध्यक्ष बनाया जाए और इस सिलसिले में संजय जोशी का नाम बार-बार आगे बढ़ाया जा रहा था।
बीजेपी आलाकमान को यह स्वीकार नहीं था, इसलिए नड्डा ही अध्यक्ष बने हुए थे।इस गतिरोध को दूर करने के लिए रास्ता यह निकाला गया कि उपराष्ट्रपति पद पर आरएसएस की पसंद के व्यक्ति को आसीन कर दिया जाए और बीजेपी अध्यक्ष पद को बीजेपी आलाकमान (नरेंद्र मोदी व अमित शाह) की पसंद पर छोड़ दिया जाए, जो किसी भी सूरत में यह नहीं चाहते कि पार्टी पर उनकी पकड़ ढीली पड़े।प्रधानमंत्री ने लाल किले से जो आरएसएस की तारीफ की उसे इसी पृष्ठभूमि में समझना चाहिए कि बीजेपी आलाकमान व आरएसएस के बीच ‘समझौता’ हो गया है।बीजेपी को एक ऐसे प्रतीक की जरूरत थी जिसके सहारे वह तमिलनाडु सहित दक्षिण के अन्य राज्यों में अपनी तेजी से खिसकती जमीन को फिर से हासिल कर सके।
लेख – शाहिद ए चौधरी के द्वारा