स्टैंडअप कॉमेडियन तो सिटिंग क्यों नहीं (सौ.डिजाइन फोटो)
नवभारत डिजिटल डेस्क: पड़ोसी ने हमसे कहा, ‘निशानेबाज, हमें बताइए कि स्टैंडअप कॉमेडियन क्या होता है? क्या वह बैठकर कॉमेडी नहीं कर सकता? सोचिए कि यदि स्टैंडअप कॉमेडियन को चिगनगुनिया हो जाए या पैर में मोच आ जाए तो वह कैसे खड़ा हो पाएगा? ऐसी हालत में उसकी कॉमेडी का क्या होगा?’ हमने कहा, ‘पुराने स्कूल मास्टर किसी शरारती लड़के को डांटकर कहते थे- स्टैंडअप ऑन द बेंच. इस तरह बेंच पर देर तक खड़े रहते-रहते कुछ बच्चे स्टैंडअप कॉमेडियन बन गए क्योंकि वह पढ़ाई को सीरियसली न लेते हुए उसे कॉमेडी समझते थे।’
पड़ोसी ने कहा, ‘निशानेबाज, स्टैंडअप कॉमेडियन बनना आसान नहीं है. यह एक परफॉर्मिंग आर्ट है. स्टैंडअप कॉमेडियन ने यदि काम की बात नहीं की तो वह कुणाल कामरा बनकर मुसीबत में फंस जाता है. वह चाहे तो पावभाजी या पराठा खा ले लेकिन किसी नेता की दाढ़ी, कालेचश्मे और आटोरिक्शा की पैरोडी न बनाए.’ हमने कहा, ‘कॉमेडी एक आर्ट है. पहले फिल्में कॉमेडियन के बिना बनती ही नहीं थीं. महमूद, जॉनी वाकर, राजेंद्रनाथ, जॉनी लीवर की कॉमेडी दर्शकों का मनोरंजन करती थी. फिल्म ‘प्यार किए जा’ में महमूद और ओमप्रकाश की कॉमेडी दिलचस्प थी. उसमें महमूद अनोखे अंदाज में हॉरर स्टोरी सुनाकर ओमप्रकाश को डराता है. ‘शोले’ में जगदीप ने सूरमा भोपाली का और असरानी ने अंग्रेजों के जमाने के जेलर का किरदार निभाया था।’
पड़ोसी ने कहा, ‘निशानेबाज, हम लोग चलते-फिरते, नाचते-गाते हास्य कलाकार की नहीं बल्कि स्टैंडअप कामेडियन की बात कर रहे हैं. स्टैंडअप कामेडी किसी शब्द, विचार या मुहावरे से शुरू की जाती है. इसमें कुछ नया सोचना पड़ता है. घिसे-पिटे पुराने जोक्स से काम नहीं चलता. कॉमेडियन को पब्लिक से कनेक्ट करना पड़ता है. लय या रिद्म बनाए रखनी पड़ती है ताकि लोग बंधे रहें. यह लाइव परफार्मेंस होता है जिसके लिए पहले से काफी प्रैक्टिस करनी पड़ती है. हर एक-दो वाक्य के बाद लोगों को हंसी आए तो ठीक नहीं तो रिकार्ड की गई हंसी के फिलर्स डाल दिए जाते हैं।’
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हमने कहा, ‘राजाओं के दरबार में भी विदूषक रहा करते थे जो अपने चुटकुलों व हरकतों से राजा का तनाव दूर कर उसे खुश करते थे. शेक्सपीयर व कालिदास के नाटकों में भी क्लाउन या कोर्ट जेस्टर हुआ करता था. राजनीति में राज नारायण और लालू यादव हंसी की फुलझड़ी छोड़ा करते थे.’
लेख- चंद्रमोहन द्विवेदी के द्वारा