अजीत डोभाल (डिजाइन फोटो)
फ्रांस के साथ भारत के होने जा रहे बड़े रक्षा सौदे के दूरगामी असर होंगे। इससे न सिर्फ चीनी आक्रामकता नियंत्रित होगी बल्कि समुद्री सुरक्षा मजबूत होने के साथ-साथ कुछ कूटनीतिक लक्ष्य भी हासिल होंगे। राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल आगामी 30 सितंबर से फ्रांस के दौरे पर रहेंगे।
फ्रांस ने भारत को परमाणु पनडुब्बियों के निर्माण में मदद की पेशकश की थी तथा 110 किलो-न्यूटन थ्रस्ट वाला विमान इंजन और अंडरवाटर ड्रोन तकनीक के शत प्रतिशत हस्तांतरण का प्रस्ताव दिया था, फ्रांस और भारत ने परमाणु हथियारों को लेकर आपसी सहयोग बढ़ाने का जो फैसला किया था, उस पर इस बैठक में निर्णायक मुहर लगनी है। भारतीय नौसेना ने हिंद-प्रशांत क्षेत्र में चीन के बढ़ते दखल को कम करने के लिए अपनी युद्धक क्षमता बढ़ाने का फैसला बहुत पहले कर लिया था, ऐसे में फ्रांस से यह डील और भी दूरगामी असर वाली होगी।
फ्रांस के अलावा हम अमेरिका तथा ऑस्ट्रेलिया से भी बड़े रक्षा सौदे कर रहे हैं ताकि इंडो पैसिफिक क्षेत्र में खास तौरपर नौसेना या समुद्री सुरक्षा के मामले में हम चीन की बढ़ती आक्रामकता को मुंहतोड़ जवाब दे सकें। फ्रांस से मिलने वाली परमाणु पनडुब्बी और अंडरवाटर ड्रोन की तकनीक भारतीय नौसेना को वह ताकत बख्शेगी जिससे चीन और पाकिस्तान भविष्य में चिंतित रहेंगे। हिंद महासागर में चीन के बढते अतिक्रमण को देखते हुए भारत को अपनी समुद्री सुरक्षा की तैयारियां अभेद्य करने की आवश्यकता है।
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विदेशी तकनीक का शत प्रतिशत हस्तांतरण नौसेना को 2030 तक पूरी तरह आत्मनिर्भर बना देगी। वर्तमान परिस्थिति में अपनी स्वदेशी नाभिकीय पनडुब्बी विकसित करने के दौरान परमाणु पनडुब्बियों और उसकी तकनीक की फ्रांसीसी पेशकश अत्यंत समयानुकूल कही जाएगी फ्रांस ने हमको हवा, जमीन, समुद्री सतह और पानी के भीतर कारगर स्वायत्त प्रणाली की पूरा स्पेक्ट्रम प्रदान करने की बात कही है।
यह हमारी नौसेना को टोह लेने, जासूसी करने, निगरानी रखने और आवश्यकतानुसार आक्रमण करने की क्षमता में वृद्धि करेंगे। इसके रिमोट सेंसर से नियंत्रित होने वाले दोनों तरह के अंडरवाटर ड्रोन मिलेंगे तो समुद्री शोध का दायरा बहुत बढ जाएगा फिर दुश्मन की हर चाल पर नजदीकी नजर रखना आसान होगा। अमेरिका भारत के साथ किसी रक्षा उत्पाद के संयुक्त उत्पादन में 80 प्रतिशत प्रौद्योगिकी हस्तांतरण पर सहमत होता है तो फ्रांस शत-प्रतिशत।
समुद्री सुरक्षा के मामले में फ्रांस को अनदेखा करना मुश्किल है। कई द्वीपों पर बने सैन्य अड्डे और कुछ क्षेत्रों पर उसका नियंत्रण है। हमने फ्रांस और संयुक्त अरब अमीरात के साथ एक त्रिगुटीय सामरिक समीकरण बनाया है और पूर्वी छोर पर आस्ट्रेलिया और फ्रांस के साथ हम उसी तरह के एक और त्रिकोणीय सामरिक समीकरण के हिस्से हैं।
फ्रांस और भारत बहुत पहले से ही नजदीक हैं, अंतरिक्ष के क्षेत्र में सहयोग के अलावा फ्रांस भारत को हथियारों की आपूर्ति करता रहा है। भारत और फ्रांस ने होराइजन 2047 के अंतर्गत अपनी रक्षा क्षमताओं को संयुक्त रूप से बिना किसी की दखल के विकसित करने का संकल्प ले रखा है।
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यही भू-राजनीतिक वजहें हैं कि भारत और फ्रांस आज विश्वसनीय मित्र हैं। 1998 में परमाणु परीक्षण के बाद पश्चिमी देशों ने जब हमारा अंतराष्ट्रीय बहिष्कार किया तब वह फ्रांस ही था जिसने हमें अलग-थलग करने के ताकतवर देशों की कोशिशों का समर्थन नहीं किया। उस दौरान भी उसने हमारे साथ सामरिक साझेदारी बढाई। 2020 में चीन के साथ मुठभेड़ के बाद फ्रांस ने राफेल विमानों की आपूर्ति की प्रक्रिया इतनी त्वरित कर दी कि चीन को एक अलग तरह का संदेश गया और तब हमारे प्रति चीन के आक्रामक इरादों पर अंकुश लगा।
लेख- संजय श्रीवास्तव द्वारा