जी-20 घोषणापत्र पर सहमति हो जाना भारत के लिए एक बड़ी कामयाबी है. अमेरिका सहित पश्चिमी देशों को इसके लिए राजी कर पाना आसान नहीं था जो चाहते थे कि इस संयुक्त विज्ञप्ति में रूस की निंदा से जुड़ा पैराग्राफ भी शामिल किया जाए. इस दस्तावेज में रूस-यूक्रेन युद्ध का कोई खास जिक्र नहीं किया गया है. पूरे डाक्युमेंट में जी-20 ने यूक्रेन युद्ध पर अफसोस जताया लेकिन कहीं भी रूस को हमलावर नहीं कहा गया है. इतने पर भी पश्चिमी देश इस पर सहमत हो गए. पहले तो लग रहा था कि यूक्रेन युद्ध के कारण संयुक्त विज्ञप्ति पर सहमति नहीं बन पाएगी लेकिन भारत ने अपनी कूटनीति से सहमति करवा ली.
इस तरह उसने एक बड़ी चुनौती को पार कर लिया. यह बात अवश्य है कि सहमति पर पहुंचने के लिए कई घंटे मशक्कत करनी पड़ी. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जी-20 सम्मेलन के पहले दिन ही सदस्य देशों को संबोधित करते हुए दुनिया में शांति पर जोर दिया और कहा कि यह दौर युद्ध का नहीं है. भारत ने स्पष्ट कर दिया था कि जी-20 भूराजनीतिक (जियोपोलिटिकल) मुद्दों को हल करने का मंच नहीं है. ऐसे मुद्दों का अर्थव्यवस्था पर प्रभाव पड़ सकता है.
प्रधानमंत्री मोदी ने गुटनिरपेक्ष देशों के गठबंधन इंडोनेशिया, ब्राजील और द. अफ्रीका के अलावा जी 7 देश जापान से भी लगातार वार्ता की और अंत में यूरोपीय यूनियन (ईयू) को भी इस बात के लिए राजी किया कि रूस और यूक्रेन पर हल्का पैरा रखा जाए. शुरू में ईयू और जी 7 देश इस घोषणापत्र से पीछे हट गए थे. फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों घोषणापत्र के मसौदे से काफी असहमत थे.
घोषणापत्र में ‘यूक्रेन में युद्ध’ लिखा गया था जबकि फ्रांस चाहता था कि इसे बदलकर ‘यूरोप के खिलाफ युद्ध’ कर दिया जाए. आखिरकार वही घोषणापत्र आया जो पूरी तरह से वैसा था जो भारत चाहता था. उसमें कहा गया कि सभी देशों को अखंडता व संप्रभुता का सम्मान करना चाहिए. एटमी युद्ध की धमकी अस्वीकार्य है. यूरोपीय यूनियन को डर था कि अगर यह सम्मेलन बिना घोषणापत्र के समाप्त हो गया तो दुनिया समझेगी कि जी-20 का अस्तित्व ही खत्म हो चुका है.
फिर ब्रिक्स और जी-7 जैसे संगठन उसकी जगह ले सकते थे. ब्रिक्स में चीन और रूस का खासा दबदबा है. ऐसे में राष्ट्रों को यही विकल्प दिए गए कि या तो वे घोषणापत्र पर सहमत हो जाएं अथवा सम्मेलन का कोई घोषणापत्र जारी नहीं होगा. इस घोषणापत्र से विश्व मीडिया हैरान रह गया. बीबीसी ने लिखा कि जी-20 ने यूक्रेन युद्ध पर अफसोस जताया लेकिन रूस पर आरोप लगाने से परहेज किया. सीएनएन ने लिखा कि जी-20 दस्तावेज में रूस-यूक्रेन युद्ध का उल्लेख नरम भाषा में किया गया. रूस के मीडिया ने लिखा कि सदस्यों के बीच असहमति थी लेकिन भारत तटस्थ था.