
आतंक से भी ज्यादा डरावने दुर्घटना के आंकड़े (सौ.डिजाइन फोटो)
नवभारत डिजिटल डेस्क: देश में हर साल 1.80 लाख लोग सड़क दुर्घटना के शिकार हो रहे हैं। रेल दुर्घटनाओं की बात करें तो यह आंकड़ा करीब 25 हजार सालाना है, जिसमें अधिकतर दुर्घटनाएं रेल लाइन पार करने की वजह से होती हैं। वर्ष 2000 में सड़क दुर्घटनाओं का आंकड़ा जहां 8 व्यक्ति प्रति लाख था, वह 2022 में 12 प्रति लाख हो गया है। जो राज्य जितने विकसित हैं, जैसे महाराष्ट्र, तमिलनाडु, उत्तर प्रदेश वहां सड़क दुर्घटनाओं के आंकड़े ज्यादा हैं। प्राकृतिक आपदा के आंकड़े में गिरावट आ रही है। असमय मौतों में इनका योगदान सिर्फ 2 फीसदी रह गया है, जबकि गैर प्राकृतिक आपदा का आंकड़ा बढ़ता जा रहा है।
इस आंकड़े में अकेले सड़क दुर्घटना की हिस्सेदारी 50 फीसदी से ज्यादा है। दुर्घटनाओं के अन्य कारकों में पानी में डूबने का आंकड़ा 9.4 फीसदी, आगजनी से 6.2 फीसदी, खाई में गिरने से 4.9 फीसदी और करंट लगने से 3 फीसदी लोग असमय मौत का शिकार होते हैं। स्थिति कुल मिलाकर बेहद चिंताजनक है। कहा जाता है कि ट्रैफिक नियमों का पालन नहीं होता, इसे और कठोर बनाया जाना चाहिए। कभी ये कहा जाता है ट्रैफिक चालान की संख्या और जुर्माने की राशि बढ़ा देना चाहिए। कभी शराब पीकर गाड़ी चलाने पर रोक की बात की जाती है।
भारत में दुर्घटनाओं का सबसे बड़ा कारण है स्पीड और मोटर चालक की लापरवाही तथा सड़कों की बदहाल व्यवस्था. कई लोग ये कहते हैं कि स्पीड कम करने से हमारी जीडीपी का नुकसान होगा. भारत में 60-100 किलोमीटर की स्पीड पर दुर्घटनाएं इसलिए होती हैं कि पूरी सड़क ट्रैफिक और मोटर वाहन की संरचना उसके अनुकूल नहीं होती. विदेशों में सड़क चौराहे पर पैदल यात्री पहले पार करते हैं और मोटर चालक उनके जाने का इंतजार करते है, जबकि भारत में स्थिति बिल्कुल उलटी है. भारत में सड़क पर कोई वाहन अपनी स्पीड 40 किलोमीटर से कम रखना ही नहीं चाहता. इसी तरह भारत में ट्रैफिक पुलिस मौजूदा सड़क व्यवस्था का सबसे दुखद पहलू है, जिसे सड़क पर ट्रैफिक व्यवस्था संचालित करने के काम में रुचि कम और मोटर चालकों के चालान काटने या उनसे पैसे ऐंठने में ज्यादा होती है।
हमारे देश में सड़क पर कई बार लॉग जाम इसलिए लग जाता है, क्योंकि ट्रैफिक पुलिस या तो बगल में आराम फरमा रही होती है या पैसे बनाने के लिए किसी ट्रक या टेम्पो को रोककर कागज और नियम के नाम पर तंग कर रही होती है. भारत में ट्रैफिक पेनल्टी की अवधारणा जब तक ट्रैफिक कर्मियों के विवेक पर छोड़ी जाएगी, तब तक दुर्घटना नियंत्रण तो दूर, यह केवल भ्रष्टाचार का अड्डा बना रहेगा. विदेश में खासकर पश्चिमी देशों में कोई भी छोटा या बड़ा ट्रक या डंपर की बॉडी कभी खुली नहीं होगी और न ही उनके पहिए बाहर दिखाई पड़ेंगे।
पर भारत में सारे बड़े ट्रकों की साइड बॉडी खुली रहती है, जिसमें सड़क पर बगल में चल रहा कोई भी छोटा मोटर चालक थोड़ी भी असावधानी करे तो उसकी गाड़ी उस डंपर के भीतर चली जाए. दुर्घटना की सबसे वजह असावधानी तो है ही जल्दबाजी भी है. आज ऑनलाइन ऑर्डर से सामान मंगाने-बेचने का व्यवसाय इतना विस्तृत और कंपनियों के लिए इतना प्रतियोगी होता जा रहा है कि रिटेल कंपनियां अपने राइडर से पांच से दस मिनट में सामान डिलीवर करवाती हैं. इस वजह से दुर्घटना की न जाने कितनी वारदात होती रहती हैं।
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हमारे देश में हर दिन होने वाली दुर्घटनाएं, आतंकी और नक्सली घटनाओं से कहीं ज्यादा लोगों को बेमौत मारती हैं. देश में हर वर्ष करीब 2 लाख लोगों को ये दुर्घटनाएं मौत की नींद सुला देती हैं. आज परिवहन के चारों माध्यम सड़क, रेल, जलमार्ग और हवाई सभी दुर्घटनाओं के कारण हैं. देश में प्राकृतिक आपदा यानी बाढ़, भू-स्खलन, वज्रपात, चक्रवात, तूफान और भूकंप से लोग शिकार होते तो हैं, पर गैर प्राकृतिक यानी मानव जनित आपदा से देश में 98 फीसदी असमय मौतें हुआ करती हैं।
लेख- मनोहर मनोज के द्वारा






