दर्दनाक लोकल ट्रेन हादसा (सौ. डिजाइन फोटो)
नवभारत डिजिटल डेस्क: मुंबई का लोकल ट्रेन हादसा दर्दनाक होने के साथ ही रेल सुरक्षा को लेकर अनेक सवाल खड़े करता है।मुंबई की लाइफलाइन कहलाने वाली लोकल ट्रेन जान लेवा हो गई हैं।विगत वर्ष भर में लोकल से जुड़े हादसों में 2,590 यात्रियों की मौत हुई।अभी ठाणे से मुंब्रा स्टेशन के बीच 2 लोकल ट्रेनों की क्रासिंग के समय फुटबोर्ड पर लटके यात्री आपस में टकरा गए।नीचे गिरने से 4 की मौत हुई तथा 13 घायल हुए।मुंब्रा और दिवा के बीच लोकल से यात्रा में जोखिम है क्योंकि इन स्टेशनों के बीच कर्व पर ट्रेनें झुकने लगती हैं।
इससे गेट पर लटके यात्रियों के गिरने का खतरा बना रहता है।यात्री लैपटाप सहित खाने का टिफिन वाला बैग पीठ पर लादकर जैसे-तैसे लोकल में घुसते हैं।विरुद्ध दिशा से आ रही ट्रेन एक दूसरे के निकट आईं तो डिब्बे के बाहर फुटबोर्ड पर लटके यात्रियों की पीठ पर लदे बैग आपस में टकराए और यात्री नीचे गिर पड़े।रोज 65 लाख लोग लोकल में सफर करते हैं।ठाणे से रोज 7 लाख प्रवासी, मुंब्रा में डेढ़ लाख, डोंबिवली से 3 लाख, कल्याण से 2 लाख, बदलापुर से डेढ़ लाख, अंबरनाथ से 1 लाख प्रवासी प्रतिदिन लोकल में यात्रा करते हैं।सामान्य लोकल की फेरियां न बढ़ाते हुए रेलवे ने एसी लोकल शुरू की जिसका टिकट महंगा है।विभिन्न कारणों से लोकल का प्रवास 15 से 20 मिनिट विलंब से होता है।उससे उतरने के बाद लोग बस या टैक्सी शेयर कर अपने काम पर पहुंचते हैं।
दुर्घटना होने के बाद ही अधिकारियों की आंख खुलती है।मुंबई के हादसे के बाद रेलमंत्री व रेलवे बोर्ड के अधिकारियों की बैठक हुई।इसमें नान-एसी लोकल ट्रेनों में स्वचालित द्वार बंद होने की व्यवस्था पर विचार किया गया।यह भी तय हुआ कि इस वर्ष नवंबर तक नई डिजाइनवाली लोकल तैयार कर ली जाएगी जिसमें दरवाजों में हवादार पट्टियां लगाई जाएंगी ताकि दरवाजा बंद रहने पर भी हवा का प्रवाह बना रहे।गाड़ी की छत पर वेंटिलेशन यूनिट लगाई जाएगी जिससे बाहर की ताजी हवा ट्रेन में पहुंच सके।गाड़ी में वेस्टिबुल होंगे जिससे यात्री एक से दूसरे कोच में आसानी से जा सकें।इसके अलावा लोकल ट्रेनों की खचाखच भीड़ कम करने के लिए एक तरीका यह भी हो सकता है कि आफिसों व प्रतिष्ठानों के कामकाज के घंटों में कुछ ऐसा बदलाव किया जाए कि भीड़ का दबाव अलग-अलग समय में बंट जाए।रेलवे कानून के अनुसार हर डिब्बे की प्रवासी क्षमता निश्चित रहनी चाहिए लेकिन डिब्बे हमेशा खचाखच भरे रहते हैं।
सामान्य लोकल ट्रेनों की तादाद नहीं बढ़ाई जाती।यात्री सुरक्षा को लेकर बड़े-बड़े वादे किए जाते हैं लेकिन कोई ठोस कदम नहीं उठाया जाता।रेलवे के अधिकारियों व कर्मचारियों को चाहिए कि यात्री सुरक्षा को सर्वाधिक प्राथमिकता दें।लापरवाही बरतनेवालों पर कड़ी कार्रवाई की जाए।सुरक्षित रेल यात्रा हर प्रवासी का अधिकार है।बुलेट ट्रेन के लिए अरबों रुपए खर्च किए जा रहे है लेकिन सर्वाधिक टैक्स देनेवाले मुंबई वासियों की सुविधा क्यों नहीं देखी जा रही है?
लेख- चंद्रमोहन द्विवेदी के द्वारा