चेहरे से बीमारी होगी स्कैन (सौ. सोशल मीडिया)
नवभारत डिजिटल डेस्क: पड़ोसी ने हमसे कहा, ‘निशानेबाज, अब ब्लड टेस्ट के लिए सुई नहीं चुभोनी पड़ेगी। हैदराबाद के नीलोफर अस्पताल में ऐसी तकनीक विकसित कर ली गई है कि मरीज के चेहरे को मोबाइल फोन से स्कैन कर 10 से ज्यादा जांच की जा सकती है। इधर आपने चेहरा स्कैन कराया और 20 से 60 सेकंड में ब्लडप्रेशर, हार्ट रेट, आक्सीजन सैचुरेशन, हीमोग्लोबिन, रेस्पिरेटरी रेट और तनाव स्तर की रिपोर्ट सामने आ जाएगी।’ हमने कहा, ‘कुछ लोगों का चेहरा भावविहीन या स्टोनफेस रहता है। क्या उन पर यह तकनीक असर करेगी?’
पड़ोसी ने कहा, ‘निशानेबाज, यह पीपीजी या फोटो प्लिथिस्मोग्राफी तकनीक है जो कैमरे से स्किन के नीचे रक्त प्रवाह में होनेवाले बदलावों को लाइट रिफ्लेक्शन के जरिए ट्रैक करती है। फिर एआई से बायोसिग्नल का विश्लेषण कर रिपोर्ट तैयार हो जाती है। देश में 40 प्रतिशत माताएं आयरन की कमी के कारण एनीमिया से पीड़ित हैं। उनकी स्क्रीनिंग के लिए यह तकनीक मददगार है। अंग्रेजी में पहले से कहावत चली आ रही है- फेस इज दि इंडेक्स ऑफ ए मैन। चेहरे से आदमी की पहचान हो जाती है कि वह कैसा है- सदाचारी या दुराचारी, चोर या साहूकार, बुद्धिमान या मूर्ख। फेसरीडिंग भी ज्योतिष का एक हिस्सा है।’
हमने कहा, ‘सिर्फ ज्योतिष क्यों, हर मामले में शक्ल-सूरत देखी जाती है। शादी के लिए लड़के या लड़की के नाक-नक्शे पर ध्यान दिया जाता है। गुरुदत्त ने वहीदा रहमान का चेहरा देखते हुए गाया था- चौदहवीं का चांद हो या आफताब हो, जो भी हो तुम खुदा की कसम लाजवाब हो! हीरोइन गाती है- चेहरा क्या देखते हो, दिल में उतर के देखो ना! हीरो गाता है- सुभानल्ला हंसी चेहरा ये मस्ताना अदाएं, खुदा महफूज रखे हर बला से! शम्मीकपूर ने शर्मिला टैगोर के लिए गाया था- ये चांद सा रोशन चेहरा जुल्फों का रंग सुनहरा! एक गीत है- तेरे चेहरे से नजर नहीं हटती, नजारे हम क्या देखें!
ऋषिकपूर ने डिंपल कापडिया के लिए गाया था- चेहरा है या चांद खिला है, सागर जैसी आंखों वाली ये तो बता तेरा नाम है क्या!’ पड़ोसी ने कहा, ‘निशानेबाज, हीरोइन जब सोकर उठती है तो भूतनी लगती है लेकिन मेकअप मैन उसके चेहरे को सुंदर बना देता है। शेर या सांप सामने आ जाए तो चेहरा भय से पीला पड़ जाता है। पुलिस को सामने देखकर चोर के मुंह पर हवाइयां उड़ने लग जाती हैं। लोग शीशे में अपना चेहरा देखते हैं। इसीलिए कहा गया है- दर्पण झूठ न बोले।’
लेख- चंद्रमोहन द्विवेदी के द्वारा